चीन विजय दिवस परेड 2025: बीजिंग में किम जोंग उन, पुतिन और शी जिनपिंग की ऐतिहासिक मुलाकात

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चीन विजय दिवस परेड 2025: बीजिंग में किम जोंग उन, पुतिन और शी जिनपिंग की ऐतिहासिक जुटान (कूटनीति और शक्ति प्रदर्शन का नया अध्याय)

3 सितंबर 2025 को बीजिंग की सड़कों पर जब चीन विजय दिवस परेड निकलेगी, तो इतिहास खुद को एक नई चमक के साथ दोहराएगा। यह परेड न केवल जापान पर जीत की 80वीं वर्षगांठ की याद दिलाएगी, बल्कि आज के बदलते राजनीतिक समीकरणों का भी सार्वजनिक प्रदर्शन बनकर उभरेगी।

इस परेड में उत्तर कोरिया के किम जोंग उन, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक ही मंच पर नजर आएंगे। तीनों नेताओं की मौजूदगी से यह आयोजन सीमाओं से परे कूटनीतिक शक्ति और आपसी संबंधों का संदेश देगा।

इस समारोह में शामिल होना किसी भी विश्वनेता के लिए साधारण बात नहीं है, खासकर जब पश्चिमी ताकतें इसमें भाग नहीं ले रही हैं। यह परेड चीन की सैन्य ताकत का सीधा प्रदर्शन है, जिसमें उसकी नई हथियार प्रणाली और बदलते सामरिक गठबंधन स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।

ऐसे इतिहास के पलों में अक्सर भविष्य की दिशा तय होती है। यह विजय दिवस परेड भी एशिया और दुनिया की राजनीति में नई रेखाएं खींचने जा रही है, जिसकी गूंज लंबे समय तक महसूस की जाएगी।

China Military Parade 2025 | Beijing Gears Up For Historic 80th War Parade With Putin Watching

चीन के विजय दिवस परेड का महत्व

3 सितंबर को बीजिंग की तियानआनमेन चौक पर आयोजित विजय दिवस परेड, चीन के इतिहास और वर्तमान शक्ति-संतुलन की गाथा बयाँ करती है। यह परेड केवल अतीत की घटनाओं का स्मरण नहीं है, बल्कि इसमें चीन अपनी रणनीतिक सोच, सैन्य प्रगति और विश्व मंच पर अपनी भूमिका का संदेश भी देता है। अब हम जानते हैं कि यह परेड क्यों ऐतिहासिक है, जापान की हार का इसमें क्या स्थान है, और इस वर्ष प्रदर्शित हुई नई हथियार प्रणालियों की अहमियत क्या है।

परेड की पृष्ठभूमि और इतिहास

Black and white photo of a ceremonial guard march in Tiananmen Square, Beijing.
Photo by 小和尚 温柔的

विजय दिवस परेड का इतिहास चीन की राजनीतिक पहचान से जुड़ा है। 1959 की पहली प्रमुख विजय दिवस परेड में उत्तर कोरिया के प्रतिनिधि की मौजूदगी देखी गई थी, जिससे चीन और उत्तर कोरिया के गहरे संबंधों की पुष्टि होती है। यह परेड तब सोवियत संघ और चीन की घनिष्ठता का भी प्रतीक बनी थी।

2015 में, परेड ने अपने आकार और वैश्विक असर में एक नया मुकाम हासिल किया। 70वीं वर्षगांठ के इस आयोजन में रूस के राष्ट्रपति, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति और कई अन्य देशों के प्रमुख शामिल हुए थे। बेकाबू तकनीकी प्रदर्शन, नए मिसाइल और सैन्य दमखम के साथ चीन ने स्पष्ट किया कि वह अब विश्व राजनीति में बड़ी ताकत बन चुका है। इस साल की परेड भी 2015 की परंपरा को नए स्तर पर लेकर गई है। 2015 चीन विजय दिवस परेड के बारे में जानें

80वीं वर्षगांठ और जापान की हार

2025 में यह परेड द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान पर चीन की जीत और औपचारिक आत्मसमर्पण की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित हो रही है। 2 सितंबर 1945 को जापान ने बीजिंग और बाकी सहयोगी देशों के सामने आत्मसमर्पण किया था, जिससे पूर्वी एशिया में सत्ता-संतुलन बदल गया। इस आयोजन से चीन न केवल अपनी ऐतिहासिक वेदना याद करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को शांति और न्याय की सीख भी देता है।

  • यह परेड “जापानी आक्रामकता के खिलाफ युद्ध” में मिली जीत और लाखों नागरिकों की कुर्बानी को राष्ट्रीय गर्व के साथ उभारती है।
  • फिल्मों, प्रदर्शनी और जन-जागरूकता अभियानों के ज़रिए चीन अपनी यादों को ताज़ा रख रहा है।
  • जापान के कुछ प्रयासों, जैसे यासुकुनी श्राइन पर श्रद्धांजली आदि, चीन को अब भी असंतुष्ट रखते हैं; इससे नई पीढ़ी में भी ऐतिहासिक स्मृतियों का असर दिख रहा है।

इस साल जापान की हार का प्रतीकात्मक महत्व परेड में कई तरह से देखने को मिला:

  • युद्ध के नायकों और शहीदों की झांकियां
  • राष्ट्रीय ध्वज और युद्धकालीन प्रतीकों का विशाल प्रदर्शन
  • विदेशी नेताओं की मौजूदगी, जिससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों का नया मंच बनता है

जानें चीन विजय दिवस परेड 80वीं वर्षगांठ का इतिहास

प्रदर्शित नई हथियार प्रणाली

इस बार परेड में चीन ने कई नई और अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों का प्रदर्शन किया, जो उसकी सैन्य सोच और तकनीकी मजबूती का परिचायक हैं। प्रमुख हथियार प्रणालियों की एक झलक नीचे दी जा रही है:

हथियार प्रणाली मुख्य विशेषताएँ सामरिक प्रभाव
हाइपरसोनिक मिसाइलें ध्वनि की गति से कई गुना तेज, परमाणु या पारंपरिक भूमिका मिसाइल डिफेंस को चकमा देने की क्षमता
इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग सिस्टम रेडार व सिग्नल को बाधित करना शत्रु के संचार को पंगु करता है
एंटी-ड्रोन सिस्टम ड्रोन पर निशाना साधने व निष्क्रिय करने की तकनीक हवाई क्षेत्र की सुरक्षा कई गुना मजबूत
टैंक व बख्तरबंद वाहन उन्नत गतिशीलता और स्वचालित हमला थल क्षेत्र में नियंत्रण
हाई-टेक विमान ईंधन क्षमता, स्टील्थ तकनीक त्वरित और अदृश्य हवाई हमले
  • हाइपरसोनिक मिसाइलें चीन को क्षेत्रीय ताकत के रूप में स्थापित करती हैं।
  • एंटी-ड्रोन सिस्टम से सीमा की सुरक्षा की नई परिभाषा मिलती है, खासकर बदलती युद्ध-strategy में।
  • इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग आधुनिक युद्ध के मैदान को बदल सकता है, जहाँ संचार ही सबसे अहम है।

इस तरह विजय दिवस परेड चीन की सामरिक नीति, तकनीक और इतिहास को एक मंच पर लाकर दुनिया को अपने इरादे स्पष्ट करती है। नई हथियार प्रणाली पर विस्तार से पढ़ें

किम जोंग उन की बीजिंग यात्रा

जब उत्तरी कोरिया के नेता किम जोंग उन 2025 के विजय दिवस परेड में बीजिंग पहुंचे, तो यह महज एक शिष्टाचार यात्रा नहीं थी। यह घटना वर्षों की शांति, तनाव और रणनीतिक समीकरणों का परिणाम थी। किम का यह दौरा नई राजनीतिक दिशा दिखाता है और चीन-उत्तर कोरिया संबंधों में ताजा हवा लेकर आया है, खासकर रूस और चीन जैसी महाशक्तियों की मौजूदगी में। यह यात्रा सिर्फ ताकत का प्रदर्शन नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का अगला अध्याय है।

पहली बार 1959 के बाद का आगमन

1959 के बाद पहली बार किसी उत्तर कोरियाई शासक की आधिकारिक चीन यात्रा बड़ी ऐतिहासिक थी। किम जोंग उन पिछले छह वर्षों में बीजिंग नहीं आए थे; आखिरी बार 2019 में चीन और उत्तर कोरिया के कूटनीतिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ पर उनकी चीन यात्रा हुई थी।

2018 और 2019 की यात्राओं में भी किम ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कई बार मुलाकात की थी, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध उतने सहज नहीं रहे। 2017 में परमाणु परीक्षणों के कारण चीन ने कई बार उत्तरी कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का समर्थन किया, जिससे दूरियाँ आईं।

अब, 2025 में किम की वापसी सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि बदलते एशिया की गूंज है। इस बार किम, पुतिन और शी जिनपिंग एक ही मंच पर आए, जो वैश्विक राजनीति में एक बड़ा संदेश देता है।

भौगोलिक और कूटनीतिक संकेत

चीन और उत्तर कोरिया के बीच रिश्ता हमेशा “भाई-भाई” की तरह मजबूत रहा है, लेकिन यह कभी-कभी सख्त भी हो जाता है। आर्थिक प्रतिबंधों, सीमा पर निगरानी और सैन्य सहयोग के उतार-चढ़ाव के बावजूद चीन, उत्तर कोरिया का सबसे अहम साझेदार है। उत्तर कोरिया के अधिकतर व्यापार और तेल की आपूर्ति चीन से ही होती है।

बीजिंग में किम की उपस्थिति चीन को तीन बड़े लाभ देती है:

  • राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन: परेड में किम का आना दिखाता है कि चीन, रूस और उत्तर कोरिया मिलकर पश्चिमी देशों को कड़ा जवाब देने की तैयारी में हैं। परेड में किम की मौजूदगी के असर के बारे में पढ़ें
  • आर्थिक सहयोग का संदेश: चीन, अपने पड़ोसी उत्तर कोरिया को खाद्य व ऊर्जा संकट से उबार सकता है, जिससे सीमावर्ती इलाके भी स्थिर रहते हैं।
  • रणनीतिक फोटो-ऑप: जब किम, पुतिन और शी एक साथ मंच साझा करते हैं, तो यह वैश्विक मंच पर चीन के नेतृत्व और सुरक्षा साझेदारी की नई तस्वीर बनाता है।

चीन, उत्तर कोरिया के लिए ढाल का काम करता है, जबकि किम की यात्रा बीजिंग के लिए राजनीतिक चक्रव्यूह को और मजबूत बनाती है।

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के साथ संभावित मुलाकात

इस बार की परेड के दौरान एक और चर्चा में रही- क्या किम जोंग उन, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे म्यॉंग के निमंत्रण का जवाब देंगे? ली ने किम को मिलने के लिए निमंत्रण भेजा था, लेकिन किम ने अब तक सीधा जवाब नहीं दिया।

अगर किम और ली दोनों बीजिंग में मिलते, तो यह मुलाकात कई मायनों में अहम साबित हो सकती थी:

  • संभावित द्विपक्षीय वार्ता: कोरियाई प्रायद्वीप पर तनाव कम करने के लिए बातचीत के दरवाजे खुल सकते थे।
  • शांति और आर्थिक पहल: सीमा पार व्यापार, मानवीय मुद्दों और सैन्य तनाव को लेकर नई राह बन सकती थी।
  • भविष्य के परिणाम: अगर दोनों नेता आमने-सामने बैठते, तो यह किसी शांति संधि, आपसी आदान-प्रदान या भरोसे के संकेत के तौर पर याद किया जाता।

दक्षिण-उत्तर कोरिया वार्ता की छोटी सी संभावना भी पूर्वी एशिया की राजनीति में बड़ी हलचल मचा देती है। फिलहाल, दोनों देशों के बीच औपचारिक बातचीत की राह खुली तो है, लेकिन किम का अगला कदम सभी की नजरों में है।

रूस, चीन, उत्तर कोरिया का त्रिकोण

विश्व राजनीति में जब व्लादिमीर पुतिन, शी जिनपिंग और किम जोंग उन एक साथ नजर आते हैं, तो वैश्विक मंच पर हलचल मच जाती है। चीन, रूस और उत्तर कोरिया के इस त्रिकोण का बनना केवल एक तात्कालिक नीति नहीं, बल्कि दीर्घकालीन रणनीति है। इनकी रणनीतिक साझेदारी वैश्विक संतुलन को बदलने की क्षमता रखती है। ये तीनों देश अपने-अपने हितों की रक्षा करते हुए एक दूसरे के लिए ढाल, साझीदार और रणनीतिक समर्थक बन गये हैं।

Vibrant close-up of a globe displaying the Eurasian continent, featuring countries like China and Russia.
Photo by Atlantic Ambience

पुतिन की भागीदारी और रणनीतिक गठबंधन: रूस-चीन-उत्तर कोरिया के व्यापक रणनीतिक साझेदारी की उत्पत्ति, सैन्य सहयोग और आर्थिक सहयोग के बिंदुओं को स्पष्ट करें

पुतिन की भूमिका इस त्रिकोण में सबसे अधिक सक्रियता वाली रही है। रूस, चीन और उत्तर कोरिया के रिश्ते पिछले कुछ वर्षों में नई ऊँचाइयों पर पहुंचे हैं। इसमें तीन प्रमुख स्तंभ हैं:

  • रणनीतिक उत्पत्ति: रूस और चीन ऐतिहासिक रूप से साम्यवादी सोच से जुड़े देश रहे हैं। सोवियत संघ के जमाने से ही दोनों के बीच एक रणनीतिक मित्रता विकसित हुई। उत्तर कोरिया, जो पड़ोसी है और रूस-चीन दोनों के साथ सीमाएँ साझा करता है, उस मित्रता में फिट होता है। Putin, Xi, and Kim set to unite at major military parade
  • सैन्य सहयोग: आज इन तीनों की सेनाएँ साथ में अभ्यास कर रही हैं। रूस, उत्तर कोरिया को रक्षा तकनीक, मिसाइल सिस्टम और साइबर सहायता देने वाला बड़ा साझेदार बना है। चीन अपनी सेना की ताकत दिखाते हुए सुरक्षा कवच देता है। बीजिंग की परेड में तीनों देशों की सेनाएँ कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति का प्रदर्शन होता है।
  • आर्थिक सहयोग: पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूस और उत्तर कोरिया दोनों अपनी अर्थव्यवस्था को नए साझेदारों के साथ खोल रहे हैं। चीन इन दोनों देशों के लिए सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है। रूस को ऊर्जा, अनाज और तकनीक की खपत के लिए नए बाजार चाहिए, वहीं उत्तर कोरिया के लिए कच्चा माल और खाद्य सुरक्षा जरूरी है। इस तरह तीनों देश एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा करते हैं। On the mend? Where China-North Korea relations are heading

पश्चिमी प्रतिबंधों का प्रभाव: संयुक्त राज्य और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के कारण इन देशों की एकजुटता, वैकल्पिक व्यापार मार्ग और सैन्य समर्थन की चर्चा करें

पश्चिमी प्रतिबंधों ने रूस, चीन और उत्तर कोरिया को एक साथ आने पर मजबूर किया है। संयुक्त राज्य और यूरोपीय संघ ने जब रूस पर यूक्रेन युद्ध के लिए कठोर आर्थिक और तकनीकी प्रतिबंध लगाए, तो रूस को वैकल्पिक बाज़ार की ज़रूरत पड़ी। उत्तर कोरिया पहले ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग था, और चीन से उसकी निर्भरता और बढ़ी।

इन प्रतिबंधों का असर कुछ अहम मामलों में दिखता है:

  • वैकल्पिक व्यापार मार्ग: अब रूस और उत्तर कोरिया, चीन के ज़रिए अपनी वस्तुओं, ऊर्जा और व्यापार को पश्चिमी बाजारों की बजाय, आपस में और एशिया में डायवर्ट कर रहे हैं। चीन इस त्रिकोण में मुख्य कड़ी के रूप में दोनों देशों के बीच लॉजिस्टिक और बैंकिंग सपोर्ट देता है।
  • सैन्य समर्थन और तकनीक: रूस, उत्तर कोरिया को मिसाइल, उपग्रह तकनीक और साइबर टेक्नोलॉजी में मदद करता है। बदले में उत्तर कोरिया रूस के लिए सस्ते श्रमिक, कच्चा माल, और संभावित सैन्य समर्थन उपलब्ध कराता है।
  • एकजुटता का संदेश: सैन्य परेड, संयुक्त अभ्यास और कूटनीतिक मंचों पर तीनों देशों की सक्रियता यह दिखाती है कि वे पश्चिम के आर्थिक व राजनीतिक दबाव का मिलकर सामना करने का इरादा रखते हैं। Russia-China-North Korea Relations: Obstacles to a trilateral axis

भविष्य की संभावनाएं और जोखिम: इस गठबंधन के दीर्घकालिक प्रभाव, संभावित सैन्य टकराव और कूटनीतिक समाधान की संभावना पर विचार प्रस्तुत करें

रूस-चीन-उत्तर कोरिया का त्रिकोण आने वाले वर्षों में वैश्विक संतुलन को चुनौती दे सकता है। इसकी कुछ प्रमुख संभावनाएं और जोखिम निम्नलिखित हैं:

  • दीर्घकालिक प्रभाव: यदि यह गठबंधन और मजबूत होता है, तो एशिया में सुरक्षा समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं। दक्षिण कोरिया, जापान और ताइवान जैसे देशों पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे अमेरिका और नाटो की सुरक्षा तैयारियों पर असर पड़ेगा।
  • संभावित सैन्य टकराव: तीनों देशों की सैन्य गतिविधियों और संयुक्त अभ्यासों से दक्षिण चीन सागर, कोरियाई प्रायद्वीप या सुदूर पूर्व में तनाव बढ़ सकता है। क्षेत्रीय विवाद एक बड़ी टक्कर की संभावना को जन्म दे सकते हैं।
  • कूटनीतिक समाधान की आशा: हालांकि सब कुछ टकराव की ओर नहीं जाता है। चीन की नीतियाँ अक्सर शांतिपूर्ण समाधान की ओर इशारा करती हैं। बातचीत, द्विपक्षीय-त्रिपक्षीय संवाद और वैश्विक संस्थाओं के माध्यम से भी स्थिरता लाई जा सकती है।

इस त्रिकोण की ताकत और जोखिम दोनों स्पष्ट हैं। यह गठबंधन एशिया में नए समीकरण रचने की क्षमता रखता है, लेकिन साथ ही युद्ध और शांति की बारीक रेखा पर भी चलता है। Russia Analytical Report, July 28-Aug. 4, 2025

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और अन्य प्रमुख अतिथि

इस ऐतिहासिक विजय दिवस परेड में कौन उपस्थित हुआ और कौन गायब रहा, इससे न केवल शक्ति संतुलन की दिशा दिखती है, बल्कि बड़े वैश्विक संदेश भी बनते हैं। हर मेहमान, हर देश की भागीदारी या अनुपस्थिति, चीन की कूटनीतिक रणनीति और उसके पड़ोसियों, पश्चिम और यूरोप के साथ उसके संबंधों की गहराई को दर्शाती है।

वेस्ट के देशों की अनुपस्थिति: अमेरिका, यूके, फ्रांस आदि के न आने के कारण, उनके सुरक्षा एवं मानवीय चिंताएँ और चीन के प्रति उनकी नीतियों का सारांश दें

इस साल बीजिंग परेड में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा जैसे प्रमुख पश्चिमी देश नदारद दिखाई दिए। यह कोई साधारण बात नहीं है, बल्कि राजनीतिक संदेश है। इन देशों की अनुपस्थिति के पीछे तीन प्रमुख कारण रहे:

  • सुरक्षा चिंताएँ: पश्चिमी देशों को चीन की सैन्य नीति और उसकी सैन्य ताकत के प्रदर्शन से जोखिम का आभास होता है। परेड में शामिल होना उनके सुरक्षा हितों के खिलाफ भी माना गया, खासकर जब अमेरिका और नाटो, इंडो-पैसिफिक में चीन के असर को संतुलित करना चाहते हैं।
  • मानवीय मुद्दे: पश्चिम कोई भी ऐसा मंच साझा नहीं करना चाहता जहां मानवाधिकार हनन और लोकतंत्र की समस्याएं छुपाई जाएं या भागीदारी से इन्हें वैधता मिलती दिखे।
  • चीन नीति: अमेरिका और यूरोपीयन यूनियन पहले ही चीन के खिलाफ कई आर्थिक प्रतिबंध और तकनीकी नियंत्रण लगा चुके हैं। वे चीन की सख्त विदेश नीति खासकर हांगकांग, ताईवान, साउथ चाइना सी जैसे मुद्दों पर असहमति रखते हैं।

इन देशों की दूरी, परेड को ‘पूर्व बनाम पश्चिम’ की छवि देती है और चीन, रूस, उत्तर कोरिया के त्रिकोण को और मजबूत दिखाती है। EU diplomats mull skipping China military parade over Putin’s attendance

दक्षिण एशियाई देशों की भागीदारी: इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर आदि के प्रतिनिधियों की उपस्थिति, उनके आर्थिक हित और चीन के साथ संबंधों को उजागर करें

इस बार दक्षिण-पूर्व एशिया के देश, जैसे इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, लाओस और म्यांमार, भारी प्रतिनिधित्व के साथ बीजिंग पहुंचे। उनकी मौजूदगी का अलग महत्व है:

  • आर्थिक हित: आसियान देशों की अर्थव्यवस्था चीन पर काफी निर्भर है। चाहे कच्चा माल हो या निर्यात, क्षेत्रीय सहयोग के कई रास्ते चीन से ही होकर गुजरते हैं।
  • रणनीतिक संबंध: इनके लिए चीन किसी भी सैन्य तनाव में एक साझेदार, प्रतिद्वंदी और बड़ा बाजार है। चीन द्वारा बेल्ट एंड रोड जैसी परियोजनाओं में विशाल निवेश इन्हें अपने करीब लाता है।
  • कूटनीतिक संतुलन: भले ही कई बार दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के चीन से विवाद होते हैं, पर वे खुला टकराव नहीं चाहते। वे कूटनीति के जरिए व्यापार, निवेश और सुरक्षा को संतुलित रखना चाहते हैं।

इसलिए इंडोनेशिया व मलेशिया के राष्ट्राध्यक्ष और कई मंत्री चीन पहुंचे और मंच साझा किया, जिससे दिखता है कि एशिया में चीन को पूरी तरह अलग-थलग करना संभव नहीं। Southeast Asian countries to send high-level dignitaries at China’s parade

यूरोपीय प्रतिनिधियों की सीमित उपस्थिति: स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रोबर्ट फ़िको की भागीदारी, अन्य यूरोपीय देशों की अनुपस्थिति के कारण और संभावित राजनीतिक संदेश का विश्लेषण करें

यूरोप से लगभग पूरी तरह बहिष्कार देखने को मिला, लेकिन स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रोबर्ट फ़िको ने इसमें भाग लिया। यह फैसला कई स्तर पर अहम है:

  • राजनीतिक साहस या अलगाव: फ़िको यूरोपियन यूनियन की मुख्यधारा नीति को चुनौती देते हुए बीजिंग पहुंचे। अधिकांश यूरोपीय नेता रूस-चीन के करीब जाने से बच रहे थे, लेकिन फ़िको का आना उनकी अपनी घरेलू और रूस-समर्थक नीति का हिस्सा है।
  • यूरोप का संदेश: स्लोवाकिया को छोड़कर बाकी यूरोपीय देशों ने चीन की परेड से दूरी बनाई। इस दूरी का सीधा अर्थ है— यूरोपीय एकजुटता, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ी टेंशन और चीन की सख्त नीति के खिलाफ साझा रुख। Slovak PM Robert Fico to attend China’s WWII commemorations amid EU tensions
  • स्वतंत्र विदेश नीति का संकेत: फ़िको का फैसला यह भी दर्शाता है कि कुछ यूरोपीय देश अब यूरोपियन यूनियन की मुख्यधारा नीति से इतर भी कदम उठाने लगे हैं। इससे EU के भीतर नीति निर्धारण और साझा दृष्टिकोण में भी विविधता स्पष्ट होती है।

इस सीमित उपस्थिति ने परेड को पूर्व-पश्चिम के अंतर और एशिया के केंद्र में चीन की भूमिका को और गहरा किया।

China’s WWII parade guest list: Southeast Asia, Europe, and global absentees, full details

निष्कर्ष

बीजिंग की 2025 विजय दिवस परेड ने महज इतिहास का सम्मान नहीं किया, बल्कि नई अंतरराष्ट्रीय धारा बनाई। किम जोंग उन की मौजूदगी, पुतिन और शी जिनपिंग के साथ तस्वीर में, एक अलग स्वर देता है—दूरी पर खड़े पश्चिम के देशों की परछाइयों के बीच देशज एकता का सार्वजनिक प्रदर्शन। इन नेताओं की एकजुटता ने रूस, चीन और उत्तर कोरिया के गहरे रिश्तों की तस्वीर साफ कर दी।

परेड में दिखा सैन्य कौशल और कूटनीतिक मजबूती, क्षेत्रीय राजनीति की नई लकीरें खींचता है। एशिया में ताकतवर गठबंधन उभर रहा है, जिसकी गूंज सिर्फ सैनिक टुकड़ियों या मिसाइलों में नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों की सोच में भी सुनाई देगी।

यह घटना याद दिलाती है कि इतिहास की झलकियां भविष्य की इबारत भी लिख सकती हैं। यही क्षण अंतरराष्ट्रीय रिश्तों और शांति की संभावनाओं के सवाल भी छोड़ जाता है। क्या यह शक्ति प्रदर्शन नई बातचीत और विश्व-संतुलन का रास्ता खोलेगा, या समीकरण और उलझ जाएंगे?

आपका समय देने के लिए धन्यवाद। अपने विचार साझा करें—क्या यह मिलन एशिया में स्थिरता लाएगा या नई चुनौतियां?

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