जुलाई 2025 भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात रिपोर्ट: बढ़त, गिरावट और बाजार विश्लेषण
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!जुलाई 2025 में भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात: कहाँ चमके, कहाँ पिछड़े (आँकड़ों और बाज़ार-विश्लेषण के साथ)
जुलाई 2025 में भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात ने कुल US$10.43 बिलियन का आंकड़ा छुआ, जो पिछले साल की तुलना में 13.81% ज्यादा था। अप्रैल से जुलाई तक निर्यात में 6.1% की बढ़त भी देखी गई, जिससे साफ है कि भारतीय इंजीनियरिंग सेक्टर मजबूत बना हुआ है।
हालांकि, इस अच्छी प्रगति के बीच कुछ खास बाजारों में निर्यात में तेज गिरावट आई है। तुर्की, यूएई, सऊदी अरब और सिंगापुर जैसे बड़े देश जुलाई में निर्यात कम होने की वजह से प्रभावित हुए हैं। खास कर विमान, अंतरिक्ष यान और जहाज जैसे उत्पादों का निर्यात घटा है।
ये आंकड़े भारत के निर्यात मार्ग और वैश्विक व्यापार के बदलते माहौल को भी बयां करते हैं, जहां बढ़ते टैरिफ और नीतिगत अनिश्चितता भारतीय इंजीनियर्स के लिए नए चैलेंज लेकर आई है। फिर भी, घरेलू इंजीनियरिंग क्षेत्र ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 28% तक पहुंचाई है, जो निर्यात में इसकी बढ़ती अहमियत को दर्शाता है।
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प्रमुख बाजारों में वृद्धि
जुलाई 2025 में भारत के इंजीनियरिंग निर्यात ने कई प्रमुख बाजारों में शानदार बढ़त दिखाई है। इस समय के दौरान कुछ देशों में निर्यात की बढ़त ने भारतीय इंजीनियरिंग क्षेत्र की ताकत और विश्वसनीयता को और भी मजबूत किया है। आइए जानते हैं कि किन बाजारों में किस तरह की वृद्धि हुई और इसके पीछे क्या कारण हैं।
संयुक्त राज्य में 19 % वृद्धि: US$1.81 बिलियन तक पहुँचा, मुख्य उत्पाद समूह और कारण बताएं।
संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात में 19 प्रतिशत की तेजी देखने को मिली है, जो कुल US$1.81 बिलियन हो गया। यह बढ़ोतरी इस क्षेत्र के लिए खास है क्योंकि अमेरिका भारतीय इंजीनियरिंग उत्पादों का सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है।
मुख्य उत्पाद समूहों में मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, और ऑटोमोटिव पार्ट्स शामिल हैं। इन उत्पादों की मांग में सुधार का मुख्य कारण अमेरिकी उद्योगों में पुनरुद्धार है, साथ ही भारत की प्रतिस्पर्धात्मक लाभ जैसे उच्च गुणवत्ता, लागत प्रभावशीलता और समय पर डिलीवरी ने निर्यात को बढ़ावा दिया।
इसके अलावा, अमेरिका में टैरिफ नीति में स्थिरता और दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों के मजबूत होने ने भी निर्यात को बढ़ने में सहायता की। इस वृद्धि ने भारतीय इंजीनियरिंग क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया है।
यूरोप में उछाल (जर्मनी, यूके): जर्मनी में 37.8 % और यूके में 46.5 % वृद्धि, संक्षिप्त कारणों के साथ।
यूरोप के दो बड़े बाजारों, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम में भारतीय इंजीनियरिंग उत्पादों की मांग में भारी उछाल आया है। जर्मनी में निर्यात में 37.8% की वृद्धि हुई है, जबकि यूके में यह बढ़त और भी बढ़कर 46.5% तक पहुँच गई है।
यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से जर्मन और ब्रिटिश औद्योगिक सेक्टर में तकनीकी उन्नयन और बुनियादी ढांचे के विस्तार की वजह से है। इसके अतिरिक्त, इन देशों की ऊर्जा और परिवहन परियोजनाओं में भारतीय इंजीनियरिंग उपकरणों की बढ़ती मांग ने निर्यात को बढ़ावा दिया।
भारत की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य ने यूरोपीय खरीदारों को आकर्षित किया है, साथ ही व्यापार नीतियों में सुधार और बेहतर लॉजिस्टिक नेटवर्क ने भी निर्यात में तेजी लाने में मदद की।
एशिया‑पैसिफिक में मजबूत प्रदर्शन (जापान, चीन, ब्राज़ील): जापान 55.2 %, चीन 35.8 %, ब्राज़ील 26.4 % वृद्धि के आँकड़े और उनके महत्व को जोड़ें।
एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात ने जबरदस्त बढ़त दिखाई है। जापान में निर्यात 55.2% तक, चीन में 35.8%, और ब्राज़ील में 26.4% की वृद्धि हुई है।
जापान की यह सबसे बड़ी वृद्धि वहां के पुनर्निर्माण और औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार से जुड़ी है। चीन में बढ़ती निर्माण परियोजनाएं और औद्योगिक मशीनरी की मांग निर्यात में इजाफे का कारण बनीं। ब्राज़ील में भी इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और कृषि उपकरण की आवश्यकता निर्यात बढ़ाने में मददगार रही।
ये आंकड़े बताते हैं कि भारतीय इंजीनियरिंग उद्योग ने एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है, जो आर्थिक विविधता के साथ निर्यात के लिए नई संभावनाएं खोलता है।
इन सभी बाजारों में निर्यात वृद्धि भारत की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में गहरी पैठ का परिचायक है और आगे भी निर्यात के रास्ते चौड़े होने की उम्मीद जगाती है।
भारत के इन निर्यात आंकड़ों और बाजारों की विस्तृत जानकारी के लिए आप यहाँ देख सकते हैं।
गिरते हुए बाजार: निर्यात में देखी गई कुछ चुनौतियाँ
जुलाई 2025 में भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात ने कुल मिलाकर 13.81% की बढ़त दर्ज की, लेकिन कुछ खास बाजारों में निर्यात में तेज गिरावट भी आई है। खास तौर पर टर्की, यूएई, सऊदी अरब और सिंगापुर जैसे देशों में निर्यात कम होने से ये क्षेत्र चिंता का विषय बन गए हैं। इन बाजारों में गिरावट का सीधा असर भारतीय निर्यातकों की रणनीतियों और वैश्विक व्यापार की स्थिति पर पड़ता है। आइए, इन बाजारों में आई गिरावट के पीछे के आंकड़ों और कारणों को समझते हैं।
टर्की में 31 % गिरावट: US$183.1 मिलियन तक घटा, तनाव के कारण संक्षिप्त विवरण
टर्की के साथ भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात जुलाई 2025 में लगभग 31% की गिरावट के साथ US$183.1 मिलियन तक सीमित रह गया। यह इतना बड़ा बदलाव भू-राजनीतिक तनावों और वैश्विक व्यापार में अनिश्चितताओं का प्रत्यक्ष परिणाम है। टर्की के साथ भारत का ट्रेड वॉल्यूम खासा प्रभावित हुआ है क्योंकि वहां की राजनीतिक स्थिति और व्यापारिक नीतियां अभी स्थिर नहीं हैं।
इसके अलावा, टर्की में बढ़े हुए टैरिफ और वित्तीय दबाव ने भी निर्यातकों के लिए माहौल कठिन कर दिया है। इसके कारण, विमान, अंतरिक्ष यान और जहाज जैसे महंगे इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात विशेष रूप से गिरा है। इस तरह की गिरावट केवल टर्की तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसके पड़ोसी और अन्य महत्वपूर्ण बाजार भी इससे प्रभावित हुए।
UAE, सऊदी अरब, सिंगापुर में गिरावट: संक्षिप्त आँकड़े और संभावित कारण बताएं
यूएई, सऊदी अरब और सिंगापुर जैसे बाजारों में भी भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात में कमी देखी गई है। जबकि इनके लिए समान तौर पर विस्तृत आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है कि ये गिरावट निम्न कारणों से हुई है:
- UAE में गर्म तेल की कीमतों और क्षेत्रीय राजनीतिक तनाव के प्रभाव से निवेश और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में अनिश्चितता बढ़ी है। यह भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात को प्रभावित करता है क्योंकि इन परियोजनाओं के लिए उपकरणों की मांग कम हुई है।
- सऊदी अरब ने हाल के वर्षों में अपने आर्थिक पुनर्गठन और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा दिया है। इसका असर उस विदेशी इंजीनियरिंग उपकरणों पर पड़ा है जिन्हें पहले निर्यात के माध्यम से भेजा जाता था। खासतौर पर बड़े उद्योगों में स्वदेशी उत्पादन की नीति ने निर्यात को ठहराव में डाला।
- सिंगापुर भी एक ट्रांसशिपमेंट हब होते हुए वैश्विक व्यापार में मंदी के चलते भारतीय इंजीनियरिंग उत्पादों की मांग कम हुई है। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और बढ़ते टैरिफ भी इस क्षेत्र के निर्यात पर दबाव बनाए हुए हैं।
इन तीन प्रमुख देशों में गिरावट से यह स्पष्ट है कि राजनीतिक अनिश्चितताएं और व्यापार नीतियों में बदलाव भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात के लिए नए संकट खड़े कर रहे हैं। यही वजह है कि निर्यातकों को स्थानीय और वैकल्पिक बाजारों की ओर अपना ध्यान बढ़ाना आवश्यक हो गया है।
यहाँ आप इंजीनियरिंग निर्यात के जुलाई 2025 के आँकड़ों और विश्लेषण को विस्तार से पढ़ सकते हैं।
इन गिरती हुई निर्यात दरों से निपटना भारतीय उद्योग के लिए चुनौती भरा है, लेकिन सही रणनीतियों से यह झटका सहन किया जा सकता है।
उत्पाद पैनल का प्रदर्शन
जुलाई 2025 में भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात के उत्पाद पैनल ने मिश्रित तस्वीर पेश की है। कुल 34 में से 29 पैनलों में निर्यात बढ़त दर्ज हुई, जबकि 5 पैनलों में गिरावट आई। यह बताता है कि भारतीय इंजीनियरिंग उद्योग कई क्षेत्रों में मजबूती से खड़ा है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। नीचे बढ़ते और घटते पैनलों का विश्लेषण मिलेगा जो इस बदलाव की कहानी बयां करता है।
बढ़ते पैनल: वर्ष‑दर‑वर्ष बढ़त वाले प्रमुख पैनल
जुलाई 2025 में अधिकांश उत्पाद पैनलों ने निर्यात में स्थिर या मजबूत वृद्धि दिखाई। इनमें से कुछ मुख्य पैनल हैं:
- औद्योगिक मशीनरी: भारी उद्योगों और निर्माण क्षेत्रों में मांग बढ़ने के कारण निरंतर बढ़त। यह पैनल भारत के निर्यात में मेरुदंड की तरह काम कर रहा है।
- इलेक्ट्रिकल उपकरण: घरेलू तथा विदेशी बाजारों में बिजली से जुड़े उपकरणों की मांग में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई। ऊर्जा क्षेत्र में विस्तार ने इस पैनल को विशेष मजबूती दी है।
- ऑटोमोटिव पार्ट्स: वैश्विक वाहन उत्पादन में बढ़ोतरी ने भारतीय ऑटो पार्ट्स की मांग भी बढ़ाई है। गुणवत्ता और लागत की प्रतिस्पर्धात्मकता ने निर्यात को गति दी।
- प्रेशर वेसल, बॉयलर और टैंकों के पुर्जे: भारी उद्योग और ऊर्जा उत्पादन के लिए ये उत्पाद निर्यात में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
- पाइपलाइन पाइप्स: ऊर्जा और पेट्रोकैमिकल सेक्टर में बड़े प्रोजेक्ट्स के चलते निर्यात में तेजी देखी गई।
ये पैनल भारतीय निर्यात की स्थिरता और क्षमता को दर्शाते हैं। निर्यात में बढ़त के ये 29 पैनल संकेत देते हैं कि तकनीकी गुणवत्ता, कीमत और समय पर डिलीवरी जैसे फायदे भारतीय उत्पादकों को वैश्विक बाजार में पहचान दिला रहे हैं।
घटते पैनल: विमान‑अंतरिक्ष, शिपिंग, जिंक उत्पादों की गिरावट
जहां अधिकांश पैनलों ने अच्छी बढ़त दिखाई, वहां कुछ खास पैनलों ने निर्यात में गिरावट का संकेत दिया। इनमें निम्न शामिल हैं:
- विमान-और अंतरिक्ष उपकरण: इस पैनल में जुलाई 2025 में निर्यात में गिरावट का मुख्य कारण टर्की, यूएई और सऊदी अरब जैसे बाजारों में राजनीतिक तनाव और परियोजना निषेध हैं। इन देशों में बड़े विमान और अंतरिक्ष संबंधित प्रोजेक्ट पर असर पड़ा है।
- शिपिंग उपकरण: वैश्विक शिपिंग इंडस्ट्री की मंदी और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते जहाज निर्माण और मरम्मत से जुड़े उत्पादों का निर्यात कम हुआ।
- जिंक उत्पाद: वैश्विक आधार पर जिंक की कीमतों में उतार-चढ़ाव और मांग में कमी के कारण इसके निर्यात में गिरावट दिखी।
ये पांच घटते पैनल भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात के लिए चेतावनी हैं। इन्हें देख सुधारात्मक नीतियां और वैकल्पिक बाजार खोजने की आवश्यकता है। खास करके विमान और शिपिंग जैसे तकनीकी उत्पाद जहां नवाचार और वैश्विक मांग में बारीक बदलाव निर्यात को प्रभावित कर रहे हैं।

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इन आंकड़ों और निर्यात प्रवृत्तियों के बारे में और जानकारी के लिए आप इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट भी पढ़ सकते हैं।
यह प्रदर्शन बताता है कि भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात विविधता लिए हुए है और कुछ क्षेत्र जहां चुनौतियां हैं उनका आकलन कर सही रणनीति बनाना जरूरी है।
भविष्य की चुनौतियाँ और रणनीति
भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात के लिए भविष्य अब और भी जटिल हो गया है। जुलाई 2025 में कुछ बाजारों में गिरावट इसका संकेत दे रही है। वैश्विक स्तर पर बढ़ते हुए टैरिफ, खासकर अमेरिका द्वारा लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ ने हालात को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। इसके अलावा, राजनीतिक अस्थिरता और बाजार विविधीकरण की जरूरत भी निर्यातकों के सामने बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। आइए इस परिस्थिति को गहराई से समझें और सम्भावित समाधान खोजें।
अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव
अमेरिका ने हाल ही में कई भारतीय इंजीनियरिंग उत्पादों पर नए 25% टैरिफ लगाए हैं। यह कदम भारतीय निर्यातकों के लिए भारी असर डाल रहा है।
- मूल्य वृद्धि: इन टैरिफों से उत्पाद की लागत बढ़ जाती है, जिससे भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाते हैं। परिणामस्वरूप खरीदार सस्ते विकल्प खोजने लगते हैं।
- प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर: अमेरिकी टैरिफों के साथ भारत की प्रतिस्पर्धात्मक ताकत कम होती है। टैरिफ से न केवल मूल्य बढ़ता है, बल्कि आपूर्ति श्रृंखला में देरी और अप्रत्याशित व्यापार नियमों का असर भी सामने आता है।
- निर्यात में अनिश्चितता: निर्यातकों को भविष्य की योजना बनाने में दिक्कतें होती हैं क्योंकि टैरिफ नीति में निरंतर बदलाव हो रहा है। यह अस्थिरता निवेश को हतोत्साहित कर सकती है।
ऐसे में निर्यातकों को चाहिए कि वे अपने उत्पादों की गुणवत्ता और नवाचार को बढ़ाएं ताकि मूल्य वृद्धि का प्रभाव कुछ हद तक कम किया जा सके। साथ ही, अमेरिकी बाजार में अपनी उपस्थिति को बनाए रख पाने के लिए कीमत को संतुलित करना ज़रूरी होगा।
अमेरिकी टैरिफ नीति और उसके प्रभावों के बारे में और जानकारी के लिए आप यहाँ देख सकते हैं।
बाजार विविधीकरण की जरूरत
एक सीमित बाजार पर निर्भरता, खासकर उन बाजारों में जहाँ टैरिफ और नीतिगत जोखिम अधिक हैं, निर्यातकों के लिए खतरा बन गई है। इसलिए बाजार विविधीकरण अब अनिवार्य हो गया है।
- नए बाजारों की खोज: निर्यातकों को दक्षिण पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका, और अफ्रीका जैसे विकासशील या नए उभरते बाजारों की ओर ध्यान देना चाहिए। ये क्षेत्र बढ़ती मांग और कम टैरिफ वाले विकल्प प्रदान कर सकते हैं।
- उत्पाद वैरायटी में वृद्धि: केवल पारंपरिक इंजीनियरिंग उत्पादों पर निर्भर रहना जोखिमपूर्ण है। नई तकनीकों और उन्नत उत्पादों को अपनाकर उत्पाद पैनल में विविधता लाना जरूरी है। यह न केवल बाजार के जोखिम को कम करेगा, बल्कि नए ग्राहकों को भी आकर्षित करेगा।
- क्रेडिट और वित्तीय सहायता: बाजार विस्तार के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना भी बड़ा कारक है। सरकार और वित्त संस्थान निर्यातकों को आसान क्रेडिट, सब्सिडी और बीमा सुविधाएं प्रदान करके उनकी क्षमता बढ़ा सकते हैं।
व्यापारिक साझेदारियों, स्थानीय एजेंसियों और कस्टमाइज्ड मार्केटिंग स्ट्रेटेजी के माध्यम से कंपनियां अपने कारोबार को ज्यादा टिकाऊ और मुनाफ़ा देने वाला बना सकती हैं।
मौजूदा वैश्विक व्यापार की ताजा स्थितियों को समझने के लिए आप यह रिपोर्ट पढ़ सकते हैं।
यह साफ है कि भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात को टिकाऊ बनाने के लिए केवल विशेष बाजारों पर निर्भर रहना कम पड़ जाएगा। निरंतर बदलाव के हिसाब से नई रणनीति अपनाना ही सफलता की कुंजी है।
निष्कर्ष
जुलाई 2025 के आंकड़े दिखाते हैं कि भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात ने नए ऊंचाई छुई हैं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण बाजारों में गिरावट के संकेत भी साफ हैं। टर्की, यूएई, सऊदी अरब और सिंगापुर में निर्यात की कमी ने भारत के लिए सतत विकास की चुनौतियां बढ़ा दी हैं।
यह समय मांगता है कि निर्यातक अपनी रणनीतियों में विविधता लाएं और नए बाजार तलाशें, ताकि वैश्विक दबावों और टैरिफ बढ़ोतरी के प्रभाव को कम किया जा सके। भारत के लिए घरेलू मजबूती और नीति समर्थन भी उतने ही जरूरी हैं, ताकि उद्योग निरंतर प्रतिस्पर्धा में बने रह सके।
इंजीनियरिंग निर्यात के इस बदलाव में अवसर और जोखिम दोनों हैं, जहां बाजार विस्तार और उत्पाद नवाचार को प्राथमिकता देना सफलता की कुंजी होगी। क्या आपकी कंपनी तैयार है इस बदलती आर्थिक दिशा में कदम बढ़ाने के लिए? इस सवाल पर विचार करते हुए, निरंतर सीखना और ढालना ही आगे बढ़ने का रास्ता है।
आपके समय और ध्यान के लिए धन्यवाद। कृपया अपने विचार साझा करें और इस चर्चा को आगे बढ़ाएं।
