नेतन्याहू का यूएन बयान: गाजा में ‘काम पूरा करना ज़रूरी’

Netanyahu tells UN that Israel ‘must finish the job

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नेतन्याहू का यूएन में बयान: गाजा में ‘काम पूरा करना ज़रूरी’, प्रतिनिधियों ने किया वॉकआउट

26 सितंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ कहा कि इज़राइल को गाजा में हमास के खिलाफ “काम खत्म करना” है. उनके बोलते ही दर्जनों प्रतिनिधि हॉल से बाहर चले गए, माहौल तनावपूर्ण हो गया.

यह बयान क्या संकेत देता है, युद्ध कितना लंबा चलेगा, और गाजा का भविष्य कैसा दिखेगा. क्या यह कदम संघर्ष विराम की उम्मीदों को और दूर धकेलता है, या नए दबाव पैदा करता है. आगे आप जानेंगे कौन साथ खड़ा है, कौन विरोध में है, और इससे क्षेत्र की राजनीति कैसे बदलेगी.

अगर आप घटना को जल्दी देखना चाहते हैं, यह वीडियो देखें:

नेतन्याहू ने क्या कहा: गाजा में ‘काम पूरा करने’ का संकल्प

नेतन्याहू यूएन स्पीच का सबसे तीखा संदेश साफ था, गाजा में हमास के खिलाफ युद्ध तब तक चलेगा जब तक “काम पूरा” नहीं हो जाता. उन्होंने मंच से कहा कि हमास के बचे हुए लड़ाके फिर हमला करना चाहते हैं, इसलिए सैन्य कार्रवाई रुक नहीं सकती. भाषण के दौरान कई प्रतिनिधि वॉकआउट कर गए, फिर भी उन्होंने लहजे में कोई नरमी नहीं दिखाई. सीएनएन की लाइव कवरेज के अनुसार, उन्होंने इसे अस्तित्व और सुरक्षा की लड़ाई कहा.

हमास के खिलाफ युद्ध को तेजी से समाप्त करने का वादा

नेतन्याहू ने कहा कि लक्ष्य समयबद्ध है, पर शर्तें कड़ी हैं. उनका फ्रेमवर्क चार बातों पर टिका दिखा:

  • हमास का उन्मूलन: नेतृत्व, सुरंग नेटवर्क, रॉकेट क्षमता और वित्तीय ढांचे को तोड़ना.
  • बंधकों की रिहाई: उन्होंने दोहराया कि बंधक लौटे बिना लड़ाई खत्म नहीं होगी.
  • गाजा का विमिलीटरीकरण: ऐसी सुरक्षा व्यवस्था जो इज़राइल पर रॉकेट या छापों की गुंजाइश न छोड़े.
  • सीमा सुरक्षा: गाजा की सीमाओं और समुद्री पहुँच पर कड़ा नियंत्रण.

उन्होंने जोड़ा कि अंतरराष्ट्रीय दबाव तेज है, पर इज़राइल अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए पीछे नहीं हटेगा. उनके शब्दों में, “अगर हम पीछे हटे तो 7 अक्टूबर जैसे हमले लौटेंगे.” इसी तर्क को जोर देने के लिए उन्होंने दृश्य सहायक दिखाए, जिनमें एक कथित ‘the CURSE’ शीर्षक वाला मानचित्र और 7 अक्टूबर हमलों के पिन शामिल थे, ताकि नुकसान और हमास के नेटवर्क का विस्तार एक नज़र में समझ आए.

कुछ प्रमुख संदेश उन्होंने स्पष्ट भाषा में रखे:

  1. “हथियार डालो और बंधक छोड़ो, तभी बचोगे. अन्यथा, हम तुम्हें ढूंढेंगे.”
  2. “हम युद्ध को जितना संभव हो उतना जल्दी खत्म करेंगे, पर आधे रास्ते नहीं रुकेंगे.”
  3. “गाजा सिटी में बचे धड़े खत्म होने तक अभियान जारी रहेगा.”

यूएन हॉल में वॉकआउट के बावजूद, उन्होंने कहा कि यह रणनीति पीछे नहीं हटेगी और अमेरिकी समर्थन सुरक्षा सहयोग के केंद्र में है. उनके अनुसार, यह साझेदारी आतंकवाद-विरोधी खुफिया और रक्षा आपूर्ति दोनों में दिखती है.

आलोचकों पर हमला और इजरायल का बचाव

नेतन्याहू ने आलोचकों पर सीधा वार किया. उन्होंने आरोप लगाया कि इज़राइल की हर कार्रवाई को नैतिक बराबरी पर रखने वाले, या खुलेआम हमास का नाम लेने से बचने वाले, यहूदी-विरोध को हवा देते हैं. कई पश्चिमी सहयोगियों को उन्होंने घेरा, खासकर उन सरकारों को जिन्होंने हाल के महीनों में फिलिस्तीन को मान्यता देने की दिशा में कदम बढ़ाए. रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उनका कहना था कि ऐसी मान्यता से “गलत संदेश” जाता है, जैसे यह बताना कि हिंसा से राजनीतिक इनाम मिल सकता है.

उनका बचाव तर्क तीन स्तंभों पर टिका दिखा:

  • नैतिक दावा: इज़राइल नागरिकों की ढाल बनता है, हमास नागरिकों को ढाल बनाता है. इस फर्क को नजरअंदाज करना अन्याय है.
  • कानूनी आधार: बंधकों की रिहाई, आत्मरक्षा का अधिकार, और सीमा सुरक्षा को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कानून के ढांचे में रखा.
  • रणनीतिक वास्तविकता: उनके शब्दों में “जंगली दुश्मन” केवल इज़राइल के नहीं हैं, वे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा हैं.

साथ ही, उन्होंने कहा कि कुछ नेता सार्वजनिक मंच पर विरोध करते हैं, पर निजी तौर पर इज़राइल की खुफिया और तकनीकी मदद पर निर्भर रहते हैं. उनकी दलील यह थी कि यूएन के वॉकआउट से नीति नहीं बदलती, सुरक्षा चिंताएं प्राथमिक रहती हैं. इस पृष्ठभूमि में, उन्होंने अमेरिकी समर्थन को निर्णायक बताया, चाहे वह डिटरेंस हो, मिसाइल रक्षा हो, या क्षेत्रीय साझेदारियों की छतरी.

प्रतिनिधियों का वॉकआउट: विरोध की लहर

नेतन्याहू के भाषण की शुरुआत होते ही संयुक्त राष्ट्र महासभा हॉल में एक अप्रत्याशित घटना घटी। दर्जनों देशों के प्रतिनिधि अपनी सीटों से उठे और बाहर चले गए। यह वॉकआउट एक स्पष्ट संदेश था, जो नेतन्याहू की गाजा नीति के प्रबल विरोध को दर्शा रहा था। हॉल का माहौल तनावपूर्ण हो गया। कुछ प्रतिनिधियों ने नारे लगाए, जबकि कुछ ने चुपचाप विरोध जताया। इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर गहरे मतभेदों को उजागर कर दिया। द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, 50 से अधिक देशों के 100 से ज्यादा राजनयिकों ने इस वॉकआउट में हिस्सा लिया। यह दृश्य दिखाता है कि इजरायल की कार्रवाई पर वैश्विक राय कितनी विभाजित है।

किन देशों ने विरोध जताया

वॉकआउट में शामिल होने वाले देशों में मुख्य रूप से कई मुस्लिम-बहुल देश थे। इनमें तुर्की, इंडोनेशिया, मलेशिया, पाकिस्तान और फिलिस्तीन के प्रतिनिधि शामिल थे। अरब लीग के सदस्य देशों ने भी सामूहिक रूप से विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। कुछ लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देश भी इस आंदोलन में शामिल हुए। सीबीएस ऑस्टिन की रिपोर्ट बताती है कि फ्रांस जैसे देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता देने का समर्थन किया है, हालांकि उनके प्रतिनिधि वॉकआउट में शामिल नहीं हुए। दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटेन जैसे कुछ पश्चिमी देशों ने निचले स्तर के राजनयिकों को भेजा, जो एक सतर्क रुख दिखाता है। इस वॉकआउट ने इजरायल के खिलाफ बढ़ते अंतरराष्ट्रीय अलगाव का संकेत दिया।

वॉकआउट के पीछे के कारण

वॉकआउट के मुख्य कारण गाजा में चल रहे युद्ध और फिलिस्तीन राज्य की मान्यता से जुड़े हैं। कई देश गाजा में मानवीय स्थिति को लेकर गहराई से चिंतित हैं। उनका मानना है कि इजरायल की सैन्य कार्रवाई अनुपातहीन है और नागरिकों को नुकसान पहुंचा रही है। दूसरा प्रमुख कारण फिलिस्तीन राज्य की औपचारिक मान्यता का मुद्दा है। बीबीसी की लाइव कवरेज के अनुसार, नेतन्याहू ने फिलिस्तीन की मान्यता को ‘शर्मनाक’ बताया, जिसने कई देशों में रोष पैदा किया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बात पर विभाजित है कि हिंसा को रोकने के लिए राजनयिक समाधान या सैन्य दबाव कौन सा रास्ता बेहतर है। यह विभाजन यूएन हॉल में साफ दिखाई दिया।

इस घटना का व्यापक प्रभाव: मध्य पूर्व संघर्ष पर नजर

नेतन्याहू के यूएन भाषण ने केवल कूटनीतिक हॉल को नहीं, क्षेत्रीय समीकरणों को भी हिला दिया। 7 अक्टूबर 2023 के हमास हमलों और उसके बाद गाजा में शुरू हुए युद्ध ने पूरे मध्य पूर्व को अशांत रखा है। इस बयान के बाद समर्थन और विरोध की रेखाएं और स्पष्ट दिखीं, जिससे शांति प्रयासों की पटरी और कठिन लगने लगी।

Gaza emergency worker praying on a street amid conflict Photo by Musa Alzanoun | موسى الزعنون

अमेरिका का समर्थन और अन्य देशों की प्रतिक्रिया

अमेरिका ने हॉल में मौजूद रहकर संदेश दिया कि इज़राइल के सुरक्षा हित उसके लिए प्राथमिक हैं। सैन्य सहायता, मिसाइल रक्षा और खुफिया साझेदारी पहले से मजबूत है, और यह रुख भाषण के बाद भी बदलता नहीं दिखा। यूएन में वॉकआउट के बीच अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का बने रहना, साझेदारी की निरंतरता का संकेत माना गया। वॉकआउट की व्यापक तस्वीर के लिए देखें द गार्जियन की लाइव कवरेज जिसमें “काम पूरा करना” लाइन और कक्ष के खाली होने का वर्णन है।

अन्य प्रमुख शक्तियों की प्रतिक्रिया मिश्रित रही। कुछ बिंदु इसे साफ करते हैं:

  • यूरोपीय संघ के भीतर मतभेद हैं, कुछ देश फिलिस्तीन मान्यता के पक्ष में हैं, कुछ सुरक्षा तर्क पर इज़राइल के साथ हैं। यह विभाजन यूएन हॉल की सीटिंग और बयानबाजी में झलकता है।
  • तुर्की, कतर और मिस्र जैसे देश सार्वजनिक रूप से संघर्ष विराम और बंधक सौदे पर जोर देते हैं, पर बैक-चैनल में गाजा रसद और मध्यस्थता पर काम जारी रखते हैं।
  • कई अरब और मुस्लिम बहुल देशों ने वॉकआउट से सख्त असहमति दिखाई। एनबीसी की रिपोर्ट दर्जनों प्रतिनिधियों के निकलने और माहौल की तल्खी को रिकॉर्ड करती है।
  • रूस और चीन कूटनीतिक समाधान, तत्काल संघर्ष विराम और अंतरराष्ट्रीय जांच जैसे मुद्दों पर जोर देते हैं, ताकि क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रहे और वाशिंगटन की रेखा को संतुलित किया जा सके।

इस माहौल में नेतन्याहू की टोन ने समर्थकों को और दृढ़, विरोधियों को और मुखर किया। परिणाम, कूटनीति के लिए जगह छोटी और दबाव ज्यादा।

गाजा युद्ध का वर्तमान हाल

युद्ध की जमीन पर तस्वीर भारी है। उत्तर और मध्य गाजा में लड़ाई के बादल छंटते नहीं। नागरिकों की आवाजाही, भोजन, पानी और ईंधन तक पहुंच असंगत है। संयुक्त राष्ट्र मंचों पर इसे “मानवीय तबाही” कहा जा रहा है। यूएन विशेष समन्वयक के अद्यतन के मुताबिक अकाल की पुष्टि और आगे फैलने का खतरा दर्ज है, विवरण देखें ReliefWeb का अपडेट। सुरक्षा परिषद की चर्चाएं भी इसी चेतावनी को दोहराती हैं, हालिया बहस का सार यूएन प्रेस सारांश में उपलब्ध है।

शांति वार्ताएं ठहरी हुई हैं। समय-समय पर बंधक अदला-बदली के प्रस्ताव और सीमित मानवीय ठहराव चर्चा में आते हैं, पर स्थायी संघर्ष विराम पर सहमति नहीं बन पाती। भरोसा टूटा है, हताहत बढ़े हैं, और राजनीतिक पूंजी घट रही है। इस गैप के बीच, जमीनी हकीकत कुछ तरह दिखती है:

  • बंधक मुद्दा हर मध्यस्थता का केंद्र है, पर शर्तें टकराती हैं।
  • सीमा सुरक्षा और गाजा के बाद की गवर्नेंस पर कोई साझा खाका सामने नहीं।
  • सहायता काफिलों की रफ्तार जरूरत के सामने बहुत कम है, जिससे आक्रोश और निराशा बढ़ती है।

आगे की राह दो ध्रुवों के बीच अटकी है, एक तरफ “पूर्ण विजय” का एजेंडा, दूसरी तरफ तत्काल संघर्ष विराम और राजनीतिक रोडमैप। जब तक कोई विश्वसनीय सुरक्षा ढांचा और गाजा के प्रशासन का व्यावहारिक मॉडल सामने नहीं आता, दोनों ध्रुव दूर ही रहेंगे। फिलहाल, गोलीबारी की आवाजें बातचीत की आवाज से ऊंची हैं।

निष्कर्ष

नेतन्याहू का यूएन में दिया गया भाषण उनकी कड़ी सैन्य रणनीति को साफ दिखाता है। गाजा में “काम पूरा करना” और प्रतिनिधियों के वॉकआउट ने तनाव को और बढ़ा दिया। अब मुश्किल सवाल यह है कि क्या यह एकतरफा दृष्टिकोण युद्ध समाप्त कर पाएगा या नए जोखिम पैदा करेगा।

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