अनुच्छेद 370: जम्मू कश्मीर का इतिहास, सुप्रीम कोर्ट सुनवाई और 2025 की ताज़ा अपडेट्स
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!अनुच्छेद 370: इतिहास से सुप्रीम कोर्ट तक, जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा और उसके बाद का सफर
कश्मीर का विशेष दर्जा बंटवारे के बाद से ही विवाद का विषय रहा है। अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को कुछ खास अधिकार दिए, लेकिन 2019 में इसका कलम 370 हटना देश की राजनीति और व्यवस्था में नई चुनौतियां लेकर आया। इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई शुरू हुई, जिसमें इस मुद्दे की संवैधानिकता पर बहस जारी है। हाल की ताज़ा खबरों में अदालत ने कई महत्वपूर्ण दलीलें सुनी हैं, जो आगे के फैसले की दिशा तय करेंगी। यह मामला न सिर्फ क़ानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद संवेदनशील है।
यह ब्लॉग उन मुख्य पहलुओं को समझाएगा जो अनुच्छेद 370 की जटिलताओं को परिभाषित करते हैं और सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान सुनवाई की प्रगति पर प्रकाश डालता है। इससे आपको इस विवाद की मूल वजहों और भविष्य की संभावनाओं का साफ़ और सटीक ज्ञान मिलेगा।
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अनुच्छेद 370 का इतिहास और महत्व
अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को भारत के बाकी राज्यों से अलग एक खास दर्जा दिया। यह खास दर्जा भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच की रिश्तेदारी की एक झलक था, जो उस समय की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों को दर्शाता है। यह अनुच्छेद केवल कानून का हिस्सा नहीं था, बल्कि एक संवैधानिक समझौता भी था, जिसने राज्य को अपनी पहचान और सीमित स्वायत्तता दी। आइए इसके इतिहास और विशेषताओं को विस्तार से समझें।
उत्पत्ति और मूल उद्देश्य
1950 के दशक में अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में जोड़ा गया। बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर की स्थिति अलग और संवेदनशील थी। महाराजा हरी सिंह ने 1947 में भारत के साथ संधि (Instrument of Accession) पर दस्तखत किए, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना, लेकिन इस संधि के साथ राज्य को अपनी कुछ स्वायत्तता बनाए रखने की अनुमति दी गई।
इस अनुच्छेद को संविधान सभा द्वारा 1949 में स्वीकार किया गया। इसका मूल उद्देश्य था:
- जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए उसे कुछ हद तक स्वायत्त अधिकार देना।
- राज्य को अपनी अलग पहचान और प्रथा को बनाए रखने की छूट देना।
- भारत के साथ एक सशक्त रिश्ते का निर्माण करना, जिसमें सहमति और सम्मान दोनों शामिल हो।
इस तरह, अनुच्छेद 370 भारत‑जम्मू-कश्मीर संबंधों को एक खास संवैधानिक आधार प्रदान करता था, जो उस समय के राजनीतिक अस्थिरता और जटिलताओं से उभरने में मददगार था।
विशेष दर्जा और अधिकार
अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को कई अहम विशेष अधिकार दिए। ये अधिकार राज्य की पहचान को बनाए रखने और स्थानीय प्रशासन को मजबूत करने के लिए थे। मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- स्वतंत्र संविधान: जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान था, जो भारतीय संविधान के अतिरिक्त राज्य की नीतियों और नियमों को निर्धारित करता था।
- अपने ध्वज का अधिकार: राज्य का अलग झंडा होने का अधिकार था, जो उनकी खास पहचान को दर्शाता था।
- भूमि अधिकार: केवल राज्य के स्थायी निवासियों को ही राज्य में अपनी जमीन खरीदने या बेचने का अधिकार था। बाहरी लोग यहां भूमि संपत्ति के मालिक नहीं बन सकते थे।
- नागरिकता नियम: राज्य के स्थायी निवासियों को ही राज्य की योजनाओं और नौकरियों का लाभ मिलता था। अन्य भारतीय नागरिकों के लिए यह सीमित था।
- केंद्र सरकार की सीमित शक्तियां: भारतीय संसद के कानून राज्य में तभी लागू होते थे जब राज्य की विधानसभा उसकी मंजूरी देती। इसने राज्य को केंद्र से एक स्वतंत्र इकाई जैसा दर्जा दिया।
संक्षेप में, अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को भारत के भीतर एक स्वायत्त राज्य बनाता था, जहां स्थानीय परंपराएं, प्रशासन और अधिकार प्राथमिकता पर थे। यह बातचीत, समझौते और संवैधानिक सहमति का परिणाम था जिसे समय और परिस्थितियों ने आकार दिया।
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केंद्र के 2019 के निर्णय की प्रक्रिया
अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने का जो निर्णय लिया, वह संवैधानिक और प्रशासनिक दोनों ही दृष्टिकोणों से खास था। इस फैसले की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण कानूनी कदम और आदेश शामिल थे, जिनका असर जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक और सामाजिक संरचना पर गहरा हुआ। आइए इस प्रक्रिया के मुख्य पहलुओं को समझते हैं।
निर्णय की पृष्ठभूमि: राष्ट्रपति आदेश, संसद की भूमिका, और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विकास के कारणों को संक्षेप में रखें
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देता था, जिसके कारण वहां केंद्र सरकार के कई कानून सीधे तौर पर लागू नहीं होते थे। 2019 में केंद्र सरकार ने यह मानते हुए कि यह विशेष दर्जा राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा, और विकास के लिए बाधक बन रहा है, इसका पुनरीक्षण करने का निर्णय लिया।
इसके लिए सबसे पहले राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370(1)(d) को हटाने के लिए राष्ट्रपति आदेश जारी किया। इस आदेश (CO 273) का आधार संविधान के अनुच्छेद 370 की धारा 370(3) थी। राष्ट्रपति के इस आदेश के जरिए जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने का रास्ता साफ किया गया।
सरकार ने संसद को इस बदलाव को कानूनी मान्यता देने के लिए शामिल किया। संसद ने “जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019” पास किया, जिसके तहत राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला हुआ। ये कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास के व्यापक उद्देश्य को ध्यान में रखकर की गई।
यह निर्णय जम्मू-कश्मीर की सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता को कम करने और वहां के विकास को तेजी से बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिया गया था। इसके साथ ही केंद्र सरकार का यह भी तर्क था कि राज्य के विशेषाधिकार हटाने से देश का एकीकरण मजबूत होगा।
प्रमुख कदम और आदेश: आदेश क्रमांक 273, जम्मू-कश्मीर का दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन, और अन्य संवैधानिक परिवर्तन की सूची
2019 के अगस्त में लिए गए मुख्य निर्णय और आदेश इस प्रकार हैं:
- आदेश क्रमांक 273 (C.O. 273) जारी करना
5 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति ने इस आदेश के माध्यम से अनुच्छेद 370 की धारा 370(3) का प्रयोग करते हुए जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने का कानूनी रास्ता तैयार किया। इस आदेश में जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान की सारी धाराएँ शामिल कर दी गईं, जिससे यह केंद्र के बाकी हिस्सों के समान हो गया। - अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निरस्त करना
6 अगस्त को जारी नए राष्ट्रपति आदेश से अनुच्छेद 370 की अधिकांश धाराएं निष्प्रभावी हो गईं, केवल अनुच्छेद 370 का एक छोटा हिस्सा बचा रहा, जो बाद में पूरी तरह से खत्म किया गया। - जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019
संसद ने इस अधिनियम को मंजूरी दी जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य को तोड़कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए –- जम्मू और कश्मीर (सीसीटी में)
- लद्दाख (व्यवस्थापिका के बिना)
- अनुच्छेद 35A और अन्य विशेष धाराओं का खत्म होना
राज्य के निवासियों को विशेष अधिकार देने वाली अनुच्छेद 35A भी खत्म कर दी गई, जिससे अब कोई भी भारतीय नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीद सकता है और यहां सामान्य नागरिक के रूप में व्यवहार किया जाएगा। - सामरिक और प्रशासनिक सुधार की शुरुआत
इन संवैधानिक परिवर्तनों के साथ केंद्र ने जम्मू-कश्मीर में विकास परियोजनाओं और सुरक्षा उपायों को पूरी ताकत से लागू करने की रणनीति बनाई।
यह सारे कदम संविधान के प्रावधानों के तहत लिए गए, जिसने सरकार को यह अधिकार दिया कि वह किसी समय विशेष स्थिति का पुनरीक्षण कर सके। अगर आप इस प्रक्रिया के बारे में विस्तृत जानकारी लेना चाहते हैं, तो यहाँ देख सकते हैं।

Photo by KATRIN BOLOVTSOVA
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं की सुनवाई
अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिसमें इस संवैधानिक संशोधन के वैधता, इसके प्रभाव और उससे जुड़ी अन्य सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियों पर बहस हुई। 28 अगस्त 2019 को हुई सुनवाई ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को सामने रखा, जिनमें याचिकाकर्ताओं के तर्क, संचार प्रतिबंधों की वैधता, और न्यायाधीशों के विचार शामिल थे। इस सेक्शन में हम उन याचिकाकर्ताओं और सुनवाई के मुख्य मुद्दों पर नजर डालेंगे, जो इस मामले को आगे बढ़ा रहे थे।
प्रमुख याचिकाकर्ता और उनके तर्क
सुप्रीम कोर्ट में इस संवैधानिक सवाल को लेकर कई याचिकाएं दायर की गईं। इनमें सबसे प्रमुख नाम हैं:
- एम.एल. शर्मा: जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 हटाने को गैर संवैधानिक बताते हुए उन्होंने इसे केंद्र सरकार की शक्तियों के दुरुपयोग के रूप में पेश किया। उनका तर्क मुख्य रूप से राष्ट्रपति आदेश और संसद की भूमिका के विधिक दायरे पर था। शर्मा ने कहा कि इस संशोधन से जम्मू-कश्मीर की संविधानिक स्वायत्तता खत्म हो गई है।
- मोहम्मद अकबर लोन: नेशनल कांफ्रेंस के नेता के रूप में लोन ने भी संविधान की मूल संरचना और जम्मू-कश्मीर के अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया। उनका कहना था कि अनुच्छेद 370 का हटाना राज्य की अस्मिता और जनादेश के खिलाफ है, जो आम लोगों की उम्मीदों से मेल नहीं खाता।
- हसनैन मसूदी: पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मसूदी ने मीडिया की भूमिका और प्रेस स्वतंत्रता के मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र सूचना प्रवाह पर लगाई गई रोक न्यायिक प्रक्रिया के सामने एक चुनौती है।
- शहा फैसल: कश्मीर के पूर्व आईएएस अधिकारी फैसल ने भी इस फैसले के राजनीतिक और सामाजिक परिणामों पर चिंता जताई। उनकी याचिका में जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों और विकास की दिशा पर सवाल खड़ा किया गया।
ये सभी याचिकाएं संविधान के मौलिक अधिकारों, केंद्र व राज्य सरकार के बीच शक्तियों की सीमाओं, और अनुच्छेद 370 के महत्व को लेकर विस्तृत दलीलें पेश करती हैं। इनके कारण सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई लंबी और जटिल होती जा रही है।
सुनवाई की मुख्य बिंदु
28 अगस्त की सुनवाई मुख्य रूप से इन मुद्दों पर केंद्रित रही:
- संचार प्रतिबंध: जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं पर लगी पाबंदियों की वैधता पर चर्चा हुई। याचिकाकर्ता इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हैं, जबकि केंद्र सरकार का तर्क था कि ये प्रतिबंध राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।
- पत्रकारों की स्वतंत्रता: मीडिया की स्वतंत्रता को बनाए रखने की जरूरत पर जोर दिया गया। अदालत के सामने यह सवाल भी था कि सूचना तक आम जनता और पत्रकारों की पहुंच कैसे सीमित की गई और यह कितना न्यायसंगत है।
- संवैधानिक अधिकारों के मुद्दे: अनुच्छेद 370 हटाने की संवैधानिक वैधता पर बहस हुई। याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया जबकि केंद्र ने इसे एक कानूनी अधिकार बताते हुए इसके निरस्त करने के लिए राष्ट्रपति आदेश का हवाला दिया।
- न्यायाधीश रंजन गोगोई की टिप्पणी: मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इस मामले के जटिल और संवेदनशील स्वभाव को स्वीकार किया और कहा कि यह मामला संविधान की गहरी समझ मांगता है। उन्होंने सुनवाई को संविधान पीठ के पास भेजने के इशारे दिए ताकि व्यापक और गहन निर्णय लिया जा सके।
यह सुनवाई संविधान की बुनियादी संरचना और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को चुनौती दे रही है। इसने देश के न्यायिक तंत्र में महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं, खासकर उन सीमाओं को लेकर जो केंद्र और राज्यों के अधिकारों के बीच तय करनी होती हैं। समीक्षा की जा रही याचिकाओं की फाइलें आज़ाद भारत के न्यायिक इतिहास में इस संवेदनशील मुद्दे को दर्शाती हैं।
अगर आप इस मुद्दे की संवैधानिक बहस और सुनवाई के विस्तृत तथ्य जानना चाहते हैं, तो आप आज़तक पर अनुच्छेद 370 की सुप्रीम कोर्ट सुनवाई रिपोर्ट पढ़ सकते हैं।
संभावित परिणाम और भविष्य की दिशा
अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद, देश में कानूनी और सामाजिक स्तर पर बड़े बदलाव की संभावनाएँ बन रही हैं। इस फैसले का नतीजा न्यायिक मान्यताओं से लेकर आम जनता की भावनाओं को गहराई से प्रभावित करेगा। इस सेक्शन में हम संभावित न्यायिक निर्णय और उनके सामाजिक‑राजनीतिक प्रभाव का विश्लेषण करेंगे ताकि आपको पूर्ण तस्वीर समझ आ सके।
संभावित न्यायिक निर्णय: रद्द करने को कायम रखने, सीमित करने या पुनः समीक्षा की संभावना पर चर्चा करें
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर तीन प्रमुख संभावनाएँ सामने हैं, जो देश के संवैधानिक ढांचे और न्यायिक सिद्धांतों पर निर्भर करेंगी:
- अनुच्छेद 370 के हटाए जाने को कायम रखना
यदि न्यायालय सरकार के पक्ष में फैसला करता है, तो यह माना जाएगा कि केंद्र ने संविधान के तहत उचित प्रक्रिया अपनाई है। ऐसा निर्णय जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और विशेष दर्जे के हटाने को कानूनी मजबूती देगा, जिससे केंद्र सरकार की नीति को शक्ति मिलेगी। इससे संघीय ढांचे में केंद्रीय नियंत्रण को प्राथमिकता मिल सकती है और राज्य के सीमित स्वायत्तता वाले अधिकार स्थायी रूप से समाप्त हो जाएंगे। - फैसले को सीमित करना या कुछ प्रावधानों को चुनौती देना
न्यायालय यह तय कर सकता है कि अनुच्छेद 370 को पूरी तरह नहीं, बल्कि कुछ सीमित प्रावधान ही हटाए जा सकते हैं। इसमें कुछ स्थानीय अधिकार या विशेष अधिकार बनाए रखने की सिफारिश हो सकती है। यह रास्ता संवैधानिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश होगी, जो केंद्र और राज्य के बीच अधिकारों के ठीक बंटवारे को सुनिश्चित करेगा। - फैसले की पुनः समीक्षा की संभावना
जांच के दौरान अगर कोर्ट यह पाता है कि प्रक्रिया में कोई संवैधानिक त्रुटि या विधिक खामियां हैं, तो आदेश को रद्द करने या पुनः समीक्षा के लिए लौटा सकता है। इस विकल्प में प्रशासनिक कार्रवाई पर रोक लग सकती है या सुधार के निर्देश दिए जा सकते हैं।
इन संभावित निर्णयों में से जो भी दिशा चुनी जाए, उसका असर सिर्फ जम्मू-कश्मीर तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि अन्य राज्यों और केंद्र-राज्य संबंधों पर भी पड़ेगा। आप इस संवैधानिक मसले की विस्तृत समझ विकिपीडिया के इस पेज पर देख सकते हैं।
सामाजिक और राजनैतिक प्रभाव: जम्मू कश्मीर में शांति, चुनाव, विकास, और राष्ट्रीय एकता पर संभावित प्रभाव को सरल भाषा में दर्शाएँ
अनुच्छेद 370 हटने का सबसे बड़ा असर जम्मू-कश्मीर की सामाजिक ताने-बाने और राजनीतिक माहौल पर पड़ा है। इसके बाद से जहां कुछ सकारात्मक उम्मीदें जगी हैं, वहीं कई चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। आइए समझते हैं इसके मुख्य प्रभाव:
- शांति और सुरक्षा का सवाल
शांति की स्थापना जम्मू-कश्मीर की मुख्य जरूरत है। विशेष दर्जा हटने के बाद ऐसा माना गया कि आतंकवाद और हिंसा पर अंकुश लगेगा। हालांकि, अस्थिरता के शोर अब भी जारी हैं। इससे सुरक्षा बलों की भूमिका बढ़ी है और संवेदनशीलता का स्तर ऊँचा रहा है। लेकिन लंबे समय तक शांति के लिए सामाजिक समावेशन और स्थानीय सहमति जरूरी है। - चुनाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया
राज्य पुनर्गठन के बाद चुनाव प्रक्रिया में बदलाव आया है। नए केंद्र शासित राज्यों में लोकतांत्रिक संस्थानों की मजबूती और भागीदारी की दिशा में काम हो रहा है। चुनावों में भागीदारी बढ़ाने और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार के लिए केंद्र सरकार प्रयास कर रही है ताकि वहां की जनता की आवाज असरकारक बने। - विकास और बुनियादी ढांचे की वृद्धि
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में निवेश बढ़ने की उम्मीद है। इससे बेहतर सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर उभर रहे हैं। हालांकि, संवेदनशीलता की वजह से विकास की प्रक्रिया धीमी भी होती रही है। निवेशकों की रुचि और सुरक्षा में सुधार यह तय करेगा कि विकास की कहानी कितनी लंबी चले। - राष्ट्रीय एकता और पहचान का असर
विशेष दर्जा हटाने का तर्क यह था कि इससे राष्ट्र की एकता मजबूत होगी। जम्मू-कश्मीर को भारत के दूसरे हिस्सों के समान बनाने का प्रयास किया गया। यह कदम जब तक सभी समुदायों की भावनाओं को ध्यान में रखकर नहीं किया जाएगा, तब तक राष्ट्रीय एकता पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाएगी।
यह सभी असर गहरे रूप में सामाजिक जीवनी को प्रभावित करते हैं। जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर इन प्रभावों में बढ़ोतरी या कमी हो सकती है। यदि आप इस विषय पर और जानना चाहते हैं, तो BBC की रिपोर्ट पढ़ना उपयोगी रहेगा।

Photo by Markus Winkler
निष्कर्ष
28 अगस्त 2025 की ताज़ा खबरें देश और दुनिया दोनों में गहरे बदलावों का आईना हैं। राष्ट्रीय स्तर पर अनुच्छेद 370 जैसे संवेदनशील मुद्दे की सुनवाई अभी भी जारी है, जो भारत की संवैधानिक और राजनीतिक दिशा तय करेगी। अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर अमेरिका, चीन, रूस जैसी प्रमुख शक्तियों के बीच तनाव बढ़ रहा है, जिसका असर भारत सहित पूरे क्षेत्र पर दिखाई देगा।
यह समय जागरूक रहने और सूचित निर्णय लेने का है। राजनीतिक घटनाएं और विदेशी नीतियाँ रोज हमारे जीवन से जुड़ी हुई हैं। इसलिए जरूरी है कि हम खबरों को न केवल पढ़ें बल्कि उनके प्रभाव को समझें।
आगे बढ़कर इन विषयों पर और अधिक जानकारी लें, विश्लेषण पढ़ें, और अपने आस-पास के बदलावों को आत्मसात करें। आपकी समझ और भागीदारी समाज और राष्ट्र की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
आपके समय के लिए धन्यवाद, अपनी राय साझा करना न भूलें।
