असम में CAA कट-ऑफ तिथि बढ़ी: 2025 की ताजा राजनीतिक बहस और वोट बैंक पर असर
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!असम में CAA कट-ऑफ तिथि बढ़ी: कांग्रेस-बीजेपी की वोट बैंक राजनीति पर नई बहस (2025 ट्रेंडिंग अपडेट)
असम में केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की कट-ऑफ तिथि बढ़ा दी है, जिससे राज्य की राजनीति में गर्मी आ गई है। अब अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोग 31 दिसंबर 2024 तक आने पर भारत में रह सकते हैं। असम कांग्रेस और कई क्षेत्रीय संगठनों ने खुले तौर पर इसका विरोध किया है।
यह मुद्दा असम के लिए बेहद संवेदनशील है क्योंकि इससे असमिया पहचान और असम समझौते का सवाल एक बार फिर चर्चा में आ गया है। विपक्ष और छात्र संगठनों का कहना है कि यह फैसला राज्य की जनसंख्या संरचना को बदल सकता है और चुनाव से पहले राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश है। वहीं, केंद्र सरकार का तर्क है कि यह कदम उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की मदद के लिए है, पर असम में यह कदम असंतोष का बड़ा कारण बनता जा रहा है।
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CAA कट-ऑफ तिथि बढ़ाने का निर्णय क्या है?
अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत उन अल्पसंख्यकों की कट-ऑफ तिथि को बढ़ा दिया है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आए हैं। पहले यह तिथि 31 दिसंबर 2014 थी, अब इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर 2024 किया गया है। यह फैसला खासकर असम जैसे सीमावर्ती राज्य में बहस का बड़ा कारण बन गया है, जहां जनसांख्यिकीय संतुलन और पहचान का मुद्दा हमेशा गर्माया रहा है।
विस्तार से: कट-ऑफ तिथि में हुआ बदलाव
सीएए के तहत जिन समुदायों को नागरिकता मिल सकती है, उनकी ‘भारत में प्रवेश की तिथि’ की सीमा अब 10 साल बढ़ा दी गई है। यानी अब हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग जो 31 दिसंबर 2024 तक भारत आ चुके हैं, उन्हें CAA के तहत राहत मिल सकती है। यह तिथि विस्तार केंद्र की ओर से आधिकारिक आदेश के साथ जारी की गई है।
- असम में यह सबसे बड़ा असर इसलिए डालता है, क्योंकि 1985 के असम समझौते के तहत अवैध प्रवासियों के लिए कट-ऑफ 24 मार्च 1971 था।
- नए CAA आदेश से यह कट-ऑफ अब सीधे-सीधे 53 साल आगे बढ़ गई, जिसने स्थानीय असमिया समुदाय की चिंता और विरोध को बल दिया है।
सरकार की दलीलें और विपक्ष की आपत्तियाँ
सरकार का कहना है कि यह फैसला उन्हीं लोगों के लिए है जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हैं और उनके पास वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज नहीं हैं। केंद्र ने यह भी साफ किया है कि इससे “किसी राज्य की पहचान या अधिकार पर समझौता नहीं किया जाएगा”।
लेकिन, असम की विपक्षी पार्टियां और क्षेत्रीय संगठन इस फैसले को ‘असमिया अस्तित्व के लिए खतरा’ मान रही हैं। वे इसे BJP की वोट बैंक स्ट्रैटेजी बता रहे हैं और राज्य सरकार से इसे लागू न करने की अपील कर रहे हैं। असम जातीय परिषद, कांग्रेस, और छात्र संगठन मानते हैं कि इससे ‘विदेशियों’ का बोझ और बढ़ेगा और स्थानीय लोगों का प्रतिनिधित्व घटेगा।
विरोध की प्रमुख वजहें
CAA कट-ऑफ तिथि विस्तार के कारण असम के लोगों में इन बातों को लेकर गहरी चिंता है:
- असम समझौते का उल्लंघन: असमिया लोगों का मानना है कि 1971 के बाद आए किसी भी प्रवासी को नागरिकता देना असम समझौते की आत्मा के खिलाफ है।
- संस्कृति और भाषा का खतरा: स्थानीय लोग डरते हैं कि बड़ी तादाद में बाहरी लोगों को नागरिकता देने से उनकी भाषा, संस्कृति और नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।
- राजनीतिक समीकरण: विपक्ष इसे आगामी चुनावों के मद्देनज़र बीजेपी की एक रणनीति के रूप में देखता है, जिससे हिंदू अल्पसंख्यकों का समर्थन हासिल किया जा सके।
निर्णय का मौजूदा असर एवं डेटा
खुद असम सरकार के मुताबिक, CAA लागू होने के बाद सिर्फ 12 लोगों ने आवेदन दिया, जिनमें से केवल 3 को नागरिकता मिली है। सरकार का दावा है कि इस फैसले से अब तक कोई बड़ा जनसांख्यिकीय बदलाव नहीं हुआ है। पर विरोधी कहते हैं कि यह शुरुआत है और आने वाले सालों में असर दिखेगा।
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सीधे कहें तो CAA की कट-ऑफ तिथि बढ़ाने का निर्णय न सिर्फ कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक लिहाज से असम के लिए ऐतिहासिक मोड़ बन गया है। स्थानीय लोग एवं राजनेता, दोनों अपने-अपने पक्ष में तर्क रख रहे हैं, जिससे यह बहस और तेज़ हो चुकी है।
असम कांग्रेस और विपक्ष की नाराजगी: मुख्य तर्क और विरोध
असम में CAA कट-ऑफ तिथि बढ़ाने के फैसले को लेकर असम कांग्रेस और विपक्ष ने जमकर विरोध जताया है। उनका मानना है कि यह निर्णय न सिर्फ असम समझौते की भावना के खिलाफ है, बल्कि इसे भाजपा की वोट-बैंक राजनीति के रूप में देखा जाना चाहिए। इस सेक्शन में हम विस्तार से समझेंगे कि असम कांग्रेस के मुख्य आरोप क्या हैं और नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने इस मामले में क्या प्रतिक्रिया दी है।
असम कांग्रेस के मुख्य आरोप: क्या असम को भाजपा ‘डंपिंग ग्राउंड’ बना रही है, NRC की अधूरी प्रक्रिया, अवैध नागरिकता और बीजेपी की वोट-बैंक राजनीति के तर्कों को सरल शब्दों में विस्तार से समझाएं
असम कांग्रेस का मानना है कि असम को अब भाजपा एक ‘डंपिंग ग्राउंड’ के रूप में इस्तेमाल कर रही है, यानी यहाँ अवैध प्रवासियों को लगातार नागरिकता दिलाकर स्थानीय समुदाय का हक खत्म किया जा रहा है। वे कहते हैं कि NRC की प्रक्रिया अधूरी और कमजोर है, जिससे अवैध प्रवासियों की पहचान सही ढंग से नहीं हो पाई और यह स्थिति असम की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान को कमजोर कर रही है।
मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- NRC की अधूरी प्रक्रिया: NRC के जरिये अवैध प्रवासियों को बाहर करने का काम पूरी तरह और पारदर्शिता से नहीं किया गया। इसके कारण कई अवैध प्रवासी अभी भी असम में रह रहे हैं।
- अवैध नागरिकता की संभावनाएं: नया CAA कट-ऑफ तिथि विस्तार ऐसे लोगों को नागरिकता दिला सकता है जो असल में असम समझौते के दायरे में नहीं आते।
- बीजेपी की वोट-बैंक राजनीति: विपक्ष का तर्क है कि भाजपा यह फैसला इसलिए कर रही है ताकि हिंदू अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मजबूत कर सके, और स्थानीय असमिया समुदाय को कमजोर किया जा सके।
यह आरोप सीधे भाजपा की नीतियों पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं कि कैसे राज्य की पहचान और स्थानीय लोगों के अधिकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है। कांग्रेस ने इसे असम की संवेदनशील सामाजिक-राजनीतिक संरचना पर खतरा बताया है।
यह तर्क इस रिपोर्ट में विस्तार से देखे जा सकते हैं, जो असम की जनता की भावनाओं को प्रमुखता देता है।
नेता प्रतिपक्ष की प्रतिक्रिया: ‘दूसरा CAA’ क्यों?: देबब्रत सैकिया के बयान पर फोकस करें कि कैसे नए आदेश से अवैध घुसपैठिए भी वैध नागरिक माने जायेंगे और असम समझौता कमजोर हो जाता है। तर्क को उदाहरणों के साथ समझाएं
नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने इस फैसले को असम समझौते के खिलाफ बताते हुए इसे “दूसरा CAA” कहा है। उनका तर्क है कि यह आदेश न केवल कट-ऑफ तिथि को आगे बढ़ाता है, बल्कि इससे अवैध घुसपैठिए भी वैध नागरिक माने जाने के रास्ते खुल जाएंगे।
उनके प्रमुख तर्क:
- अवैध घुसपैठिए वैध नागरिक बनेंगे: नई कट-ऑफ तिथि के बाद अब वे लोग जो बिना दस्तावेजों के आए थे, वे भी नागरिकता की मांग कर सकेंगे। इससे असम की पिछली पहचान पद्धति कमजोर हो जाएगी।
- असम समझौते की कमजोरी: 1971 के बाद आए प्रवासियों को नागरिकता न देने की नीति पर ठेस पहुंचेगी, जिससे असम की सामाजिक-राजनीतिक सुरक्षा कमजोर हो जाएगी।
- उदाहरण के तौर पर: सैकिया ने कहा कि ऐसे लोग भी नागरिकता के हकदार हो जाएंगे जो दस्तावेज खो चुके हैं या जिनकी स्थिति संदिग्ध है। इससे स्थानीय असमिया समुदाय की पहचान और अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे।
सैकिया का मानना है कि भाजपा की यह रणनीति चुनावों के पहले वोट बैंक के लिए बनाई गई है, जिससे सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ेगा और असम की स्थिरता प्रभावित होगी। उनका बयान यहाँ पढ़ा जा सकता है, जो इस मुद्दे पर उनके विचार स्पष्ट करता है।
यह प्रतिक्रिया इस बात को समझाती है कि क्यों असम के कुछ नेता इस फैसले को संवैधानिक और सामाजिक रूप से गंभीर खतरा मानते हैं। स्थानीय राजनीति में वास्तविकता और भावनाएं गहरी जुड़ी हैं, और इस प्रकार के निर्णय उनकी जड़ पर असर डालते हैं।
यह बहस दिखाती है कि असम में CAA कट-ऑफ तिथि विस्तार न केवल एक कानूनी मसला है, बल्कि यह सामाजिक पहचान, सांस्कृतिक सुरक्षा और राजनीतिक रणनीतियों का भी विषय बन चुका है। कांग्रेस और विपक्ष के तर्क इस विवाद की जटिलता को बखूबी बयान करते हैं, जो आगे चलकर राज्य की राजनीति पर बड़ा असर डाल सकता है।
CAA विस्तार के स्थानीय असर: असम की चुनौतियां
असम में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की कट-ऑफ तिथि बढ़ाने के फैसले ने स्थानीय हालात को काफी प्रभावित किया है। इस फैसले से न केवल जनसंख्या संरचना पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि राज्य की राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता भी चुनौती में दिख रही है। असम में NRC (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) की अधूरी प्रक्रिया, फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, तथा सिक्स्थ शेड्यूल के महत्व को समझना जरूरी है ताकि इस बदलाव के व्यापक असर की गहराई को परखा जा सके। साथ ही, AASU सहित अन्य संगठनों के विरोध और इसके आगे के स्वरूप भी असम की तस्वीर बताते हैं।
NRC, फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल और सिक्स्थ शेड्यूल में उलझन
असम में अनिवार्य खोज प्रक्रिया के रूप में NRC एक बड़ी कोशिश थी, लेकिन अभी तक पूरी नहीं हुई है। इसका मकसद अवैध प्रवासियों की पहचान करना था, जो असम के अस्तित्व के लिए एक चिंता मानी जाती है। पर ये प्रक्रिया अधूरी होने से अब तक कई ऐसे लोग असम में रह गए हैं जिन्हें बाहर नहीं किया जा सका।
फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, जो अवैध प्रवासियों को पहचानने और कार्रवाई करने के लिए हैं, उनकी कार्यप्रणाली और फैसले अक्सर विवादित रहे हैं। कई बार स्थानीय समुदाय को लगता है कि यह व्यवस्था प्रवासियों के पक्ष में जाती है, जिससे असम की पहचान खतरे में पड़ती है।
सिक्स्थ शेड्यूल भी असम की स्वायत्तता और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए अहम है। यह जनजातीय इलाकों को विशेष प्रशासनिक सुरक्षा देता है। परंतु आज स्थिति ऐसी है कि कट-ऑफ तिथि में बदलाव और CAA विस्तार के कारण इस संरक्षा की सीमा और प्रभाव दोनों पर सवाल उठ रहे हैं। सिक्स्थ शेड्यूल की व्यवस्था इनतनावों के बीच कमजोर महसूस हो रही है, जो असम की सामाजिक पहचान के लिए एक चिंता का विषय है।
अधिक जानकारी के लिए आप Tripura Times पर असम के विरोध पर रिपोर्ट देख सकते हैं।
AASU व अन्य संगठनों का विरोध
असम के सभी छात्र संगठन, खासकर AASU (ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन), इस CAA के विस्तार को राज्य की पहचान और सुरक्षा के खिलाफ मानते हैं। AASU ने इस फैसले के विरोध में राज्यव्यापी भूख हड़ताल शुरू कर दी है, साथ ही आने वाले दिनों में बड़ा विरोध प्रदर्शन भी प्लान किया गया है।
AASU का तर्क है कि CAA का यह विस्तार असम को अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से अलग करता है और इसे अनियंत्रित तरीके से अवैध प्रवासियों को वैध नागरिकता दिलाने का माध्यम बनाता है। उनका कहना है कि यह असम समझौते और NRC की अधूरी प्रक्रिया के खिलाफ है।
वर्तमान विरोध स्वरूप में शामिल हैं:
- 4 सितंबर 2025 से शुरू हुई 11 घंटे की भूख हड़ताल, जिसमें राज्य के सभी जिलों में प्रदर्शन हुए।
- आगामी 16 सितंबर को जिला स्तर पर, 20 सितंबर को Anchalik स्तर पर और 23 सितंबर को राज्यव्यापी सत्याग्रह योजना।
- CAA और उससे जुड़े नए “इमीग्रेशन एंड फॉरेनर्स (एक्सेम्पशन) ऑर्डर, 2025” के खिलाफ व्यापक आंदोलन।
स्थानीय अन्य संगठनों और आदिवासी समूहों ने भी इस विरोध में भागीदारी बढ़ाई है। वे इसे असम की सांस्कृतिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं। उनका कहना है कि इस फैसले से जनसंख्या परिवर्तन होगा, जिससे स्थानीय भाषा, संस्कृति, और नौकरी के अवसर प्रभावित होंगे।
अधिक जानकारी के लिए Assam Tribune की रिपोर्ट यहाँ पढ़ें।
ये मुद्दे असम के लिए न सिर्फ कानूनी सवाल हैं बल्कि यहां के लोगों की भावनाओं, संघर्षों और भविष्य की दिशा तय करने वाले महत्वपूर्ण विषय हैं। NRC, फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, और सिक्स्थ शेड्यूल की स्थिति बेहतरीन नहीं है, जो इस फैसले से जुड़ी ना केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक उलझनों को और गहरा करती है। AASU समेत कई संगठन अपने विरोध को तेज कर रहे हैं, जो इस मुद्दे की संवेदनशीलता को दिखाता है। इसी से असम के सामने आने वाली चुनौतियां समझी जा सकती हैं।
CAA विस्तार के पीछे राजनीति: ‘वोट-बैंक प्लॉय’ की बहस
CAA की कट-ऑफ तिथि बढ़ाने का फैसला असम में एक बार फिर राजनीति के गरमागरम मुद्दे में तब्दील हो गया है। यह केवल एक कानूनी या प्रशासनिक बदलाव नहीं बल्कि इसे लेकर जो चर्चाएं हो रही हैं, वे सीधे तौर पर राजनीतिक रणनीतियों और वोट बैंक गणित से जुड़ी हुई हैं। असम कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर सीधे आरोप लगाते हुए कहा है कि यह फैसला भाजपा की वोट-बैंक राजनीति का हिस्सा है, जिसका मकसद आगामी चुनावों से पहले अपने समर्थक समुदाय को बढ़ावा देना है। आइए इस बहस के प्रमुख पहलुओं को समझते हैं।
वोट-बैंक राजनीति का ताना-बाना
राजनीति में वोट बैंक का मतलब होता है किसी खास समुदाय या समूह का स्थायी समर्थन हासिल करना। CAA विस्तार को लेकर विपक्ष का मानना है कि भाजपा यह निर्णय इसलिए लेकर आई है ताकि सीमापार से आने वाले हिंदू अल्पसंख्यकों को राज्य में अधिक नागरिकता दी जा सके और उनका समर्थन पार्टी को मिले।
मुख्य बिंदु जो वोट बैंक को लेकर उठाए जा रहे हैं:
- CAA का लाभ मुख्यत: हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों को मिलता है, जो भाजपा के वोट बैंक के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।
- इस फैसले से असम में गैर-असमिया हिंदू आबादी बढ़ेगी, जिससे भाजपा को इस समूह का समर्थन सुरक्षित करने में मदद मिलेगी।
- स्थानीय असमिया समुदाय में सांस्कृतिक और राजनीतिक चिंताएं जताई जा रही हैं, जिन्हें विपक्ष पार्टी वोट बैंक के लिए भुनाने की कोशिश कर रही है।
यह बहस बारीकी से असम की सामाजिक संरचना और राजनीति के साथ जुड़ी है, जहां जनसंख्या परिवर्तन से चुनावी समीकरण बदले जा सकते हैं।
असम कांग्रेस की प्रतिक्रिया: ‘बीजेपी की चालाक रणनीति’
असम कांग्रेस ने केंद्र के इस फैसले को राज्य के लोगों के हितों के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि BJP राज्य को ‘वोट बैंक की मार्केट’ समझकर अपने फायदे के लिए CAA विस्तार कर रही है। कांग्रेस का आरोप है कि यह कदम असम समझौते के खिलाफ है, जो 1971 के बाद आने वाले लोगों को नागरिकता देने से रोकता है।
कांग्रेस प्रमुख तर्क:
- असम समझौते का उल्लंघन: कांग्रेस कहती है कि भाजपा की यह नीति असमियत को कमजोर करने की कोशिश है।
- जनसंख्या में बदलाव: यह निर्णय स्थानीय असमिया आबादी के राजनीतिक प्रभाव को कमजोर कर सकता है।
- चुनावी लाभ के लिए फैसले: भाजपा आगामी चुनावों से पहले गलतफहमियां और विभाजन को बढ़ावा दे रही है।
असम कांग्रेस की यह बात यहां पढ़ी जा सकती है।
विपक्ष और क्षेत्रीय संगठनों का समर्थन
असम की अन्य पार्टियां और छात्र संगठन भी कांग्रेस के साथ इस मुद्दे पर खड़े हैं। वे सभी इसे भाजपा द्वारा राजनीतिक फायदे के लिए किया गया कदम मानते हैं।
- असम जातीय परिषद, AASU जैसे संगठन इस फैसले को असम की पहचान और सुरक्षा के लिए खतरा बताते हैं।
- इनके अनुसार, CAA विस्तार से स्थानीय समस्याएं और बढ़ेंगी, क्योंकि अवैध प्रवासियों को नागरिकता मिलने से संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।
- ये संगठन सरकार से मांग कर रहे हैं कि असम को इस फैसले से पूरी तरह बाहर रखा जाए।
यह पूरा मुद्दा केवल CAA से जुड़ा नहीं, बल्कि असम की राजनीति में हिंदू-मुस्लिम और स्थानीय-प्रवासी के बीच लंबे समय से चली आ रही जटिलताओं का हिस्सा बन गया है। यह समझना जरूरी है कि CAA विस्तार की राजनीति का असर असम के मतदाताओं के मनोबल और चुनावी निर्णयों पर भी पड़ेगा।
राजनीतिक उठापटक और चुनावी नतीजे
CAA के इस फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि असम की राजनीति में कट-ऑफ तिथि विस्तार अब चुनावी मुद्दा बन चुका है। विपक्ष इस कदम को भाजपा के लिए ‘वोट बैंक बढ़ाने वाली चाल’ कह रहा है, जबकि सरकार इसे उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की मदद बताती है। परिणामस्वरूप:
- राजनीतिक पार्टियों के बीच जुबानी जंग तेज हुई है।
- स्थानीय मतदाता वर्ग इस मुद्दे को लेकर अधिक जागरूक और संवेदनशील हो गया है।
- आगामी चुनावों में इस मुद्दे पर विभिन्न दलों की रणनीतियाँ बनने लगी हैं, जो असम की राजनीति को प्रभावित करेंगी।
इस विवाद की तस्वीर और इसकी गंभीरता को बेहतर समझने के लिए आप अमर उजाला की रिपोर्ट भी देख सकते हैं।
असम में CAA विस्तार को लेकर हो रही यह राजनीतिक बहस दर्शाती है कि फैसले के पीछे क्या-क्या मकसद हो सकते हैं। कहा जा सकता है कि यह मामला केवल कानून का नहीं, बल्कि वोट बैंक और चुनावी रंजिश का भी प्रतीक बन चुका है।
निष्कर्ष
असम में CAA की कट-ऑफ तिथि बढ़ाने का फैसला राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर गहरा विवाद खड़ा कर चुका है। असम कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे भाजपा की वोट बैंक राजनीति मानते हैं, जो राज्य की पहचान और असम समझौते को कमजोर करता है। स्थानीय जनता और छात्र संगठन इस निर्णय को असम की सांस्कृतिक सुरक्षा के लिए खतरा समझ रहे हैं, खासकर तब जब NRC की प्रक्रिया अधूरी है।
इस मुद्दे ने असम की राजनीति को और गर्म कर दिया है, जहां जनसंख्या, पहचान और नागरिकता के सवाल सीधे चुनावी रणक्षेत्र में घुस चुके हैं। आगे की राह साफ नहीं, लेकिन यह तय है कि इस पर हो रहे विरोध और राजनीतिक बहस से असम की राजनीति लंबे समय तक प्रभावित रहेगी।
राज्यवासियों के लिए जरूरी होगा कि वे अपने अधिकारों और पहचान के प्रति जागरूक रहें और इस संवेदनशील मामले पर सटीक जानकारी के साथ साझा चर्चा करते रहें। राजनीति के लिए भी यह एक मौका है कि वे क्षेत्रीय भावनाओं को समझें और संवेदनशीलता के साथ निर्णय लें।
आपके विचारों का स्वागत है, इस महत्वपूर्ण विषय पर आप अपनी राय जरूर साझा करें।
