बिहार SIR विवाद 2025: 89 लाख कांग्रेस शिकायतें, महिला वोटर्स डिलीशन और चुनाव आयोग का जवाब
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!बिहार SIR में कांग्रेस की 89 लाख शिकायतें: चुनाव आयोग की अस्वीकृति, विवाद और आगे का रास्ता
बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के दौरान 89 लाख शिकायतें दर्ज कराने का कांग्रेस का दावा सामने आया है। पवन खेरा ने कहा, पार्टी के पास इन शिकायतों की रसीदें हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने सभी शिकायतों की अस्वीकृति की बात कही है। चुनाव आयोग का कहना है कि कांग्रेस ने तय प्रक्रिया, जरूरी फार्म और घोषणा-पत्र के साथ आपत्तियां नहीं दीं, जिस वजह से शिकायतें मान्य नहीं मानी गईं।
इस मसले ने बिहार की राजनीति में गहरी हलचल पैदा कर दी है। कांग्रेस ने जो आंकड़े सामने रखे हैं, उनमें महिला वोटर्स का नाम बड़ी संख्या में काटा गया, ये बेहद चिंताजनक है। आयोग के जवाब के बाद सवाल उठ रहे हैं—क्या शिकायतें सही तरीके से दर्ज हुई थीं, या क्या ये वोटर लिस्ट में पारदर्शिता से जुड़ी बड़ी चुनौती है? इस विवाद पर आगे की कार्रवाई और अदालतों की नजरें भी टिकी हुई हैं।
YouTube लिंक: Bihar SIR: Congress Seeks Fresh Voter Roll Revision, Alleges 89 Lakh Complaints Ignored by EC
SIR प्रक्रिया और महत्व
भारत के चुनावी ढांचे में वोटर लिस्ट की शुद्धता लोकतंत्र की पहली शर्त है। वोटिंग प्रक्रिया में केवल वही लोग हिस्सा लें, जिनका नाम वाकई सही है, यह पक्का करना जरूरी है। यहीं पर SIR यानी विशेष तीव्र पुनरावृत्ति (Special Intensive Revision) की भूमिका सामने आती है। इस सेक्शन में हम SIR का असल मतलब, इसकी प्रक्रिया और बिहार में हुए ताजा अनुभवों को आसान शब्दों में समझेंगे।
SIR क्या है?: विशेष तीव्र पुनरावृत्ति की परिभाषा, कब और क्यों की जाती है, तथा यह सामान्य रोल अपडेट से कैसे अलग है
विशेष तीव्र पुनरावृत्ति (Special Intensive Revision या SIR) चुनाव आयोग द्वारा कराई जाने वाली एक विशेष प्रक्रिया है, जिससे वोटर लिस्ट को संपूर्ण रूप से अद्यतन और साफ‑सुथरा बनाया जाता है। इसका मुख्य मकसद एकदम ताज़ा फिजिकल वेरिफिकेशन के जरिए पुराने, दोहरे, गलत या मृत वोटरों के नाम हटाना और नए योग्य नाम जोड़ना होता है।
- कब की जाती है: SIR तब कराई जाती है जब चुनाव आयोग को लगता है कि नियमित या वार्षिक अपडेट से अधिक गहन सफाई और सत्यापन जरूरी है। उदाहरण के लिए, आबादी में बड़े बदलाव, गांव/शहरों में बड़ा माइग्रेशन, या पिछली वोटर लिस्ट में भारी गड़बड़ी मिलने पर SIR होती है।
- कैसे अलग है: सामान्य वार्षिक रिवीजन में बस कुछ फॉर्म भरकर हल्का‑फुल्का वेरिफिकेशन होता है। लेकिन SIR में BOOTH LEVEL OFFICERS (BLO) घर‑घर जाते हैं, वोटरों से फोटो व डॉक्युमेंट लेकर फॉर्म भरते हैं और हर नाम/एंट्री की पुष्टि करते हैं।
- महत्त्व: इससे फर्जी, दोहरे नाम बनाम असल वोटर की पहचान साफ हो जाती है। इससे चुनावी प्रक्रिया की साख बनी रहती है और किसी को गलत ढंग से वोट डालने से रोका जा सकता है।
SIR की पूरी प्रक्रिया और मूल बातें यहां Electoral Roll FAQs पर देख सकते हैं।
ड्राफ्ट रोल की सार्वजनिक जांच: ड्राफ्ट रोल कब प्रकाशित होते हैं, कौन‑कौन से हितधारक (इलेक्टर्स, पार्टियां, BLAs) किस तरह से आपत्ति दर्ज कर सकते हैं, इस प्रक्रिया के चरणों की रूपरेखा
SIR के पूरा होने के बाद चुनाव आयोग ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी करता है। यह लिस्ट आम जनता, राजनीतिक दलों और उनके एजेंट्स के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होती है, ताकि कोई भी व्यक्ति या संगठन अगर अपनी या किसी दूसरे की जानकारी में गड़बड़ी पाए, तो उस पर आपत्ति दर्ज कर सके।
ड्राफ्ट रोल की जांच प्रक्रिया कुछ मुख्य स्टेप्स में होती है:
- ड्राफ्ट रोल का प्रकाशन: सभी पोलिंग बूथों और आयोग की वेबसाइट पर वोटर लिस्ट जारी होती है, जिसका उदाहरण बिहार SIR 2025 ड्राफ्ट रोल नोटिस में दिखता है।
- आपत्ति/दावा दर्ज करना:
- वोटर्स अपने नाम, पते, आयु या लिंग में गलती पाए तो फॉर्म में सुधार के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- राजनीतिक पार्टियाँ और उनके BLAs (Booth Level Agents) सामूहिक गड़बड़ी या गलत नाम जोड़ने‑हटाने पर ऑब्जेक्शन फाइल कर सकते हैं।
- सोशल ग्रुप्स या NGOs भी सामूहिक रूप से शिकायत दाखिल कर सकते हैं।
- समयसीमा: आमतौर पर ड्राफ्ट रोल जारी होने के दिन से 30 दिन का वक्त आम जनता और पार्टियों के लिए खुला रहता है।
- डिस्पोजल/सुनवाई: चुनाव अधिकारी हर शिकायत/दावे पर व्यक्तिगत या सामूहिक तरीके से सुनवाई करते हैं। जरूरत पड़ने पर फिजिकल वेरिफिकेशन भी दोबारा हो सकता है।
- फाइनल रोल पब्लिशिंग: सभी आपत्तियों और दावों का निपटारा होने के बाद आख़िरी वोटर लिस्ट जारी होती है। इसी लिस्ट पर चुनाव होते हैं।
यह प्रक्रिया पारदर्शिता को बढ़ावा देती है और वोटर लिस्ट की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में मदद करती है। ड्राफ्ट रोल में गड़बड़ियों की सबसे पहले यहीं पकड़ बनती है।
पिछले SIR के अनुभव: बिहार में पहले हुए SIR के परिणाम, प्रमुख समस्याएँ और सुधारों का संक्षिप्त उल्लेख
बिहार में हुए हालिया SIR ने साफ दिखाया है कि यह प्रक्रिया जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण भी। 2025 की SIR में कई बड़ी बातें सामने आईं:
- डुप्लिकेट वोटर: 34392 डुप्लिकेट केस सामने आए, जहाँ एक ही व्यक्ति दो अलग पहचान के साथ वोटर लिस्ट में मौजूद था।
- नाम हटाने‑जोड़ने की बहस: SIR के दौरान करीब 56 लाख से ज्यादा नाम लिस्ट से हट गए और प्रमुखता से मुस्लिम बहुल जिलों में हटाने की दर ज्यादा रही, जिससे पक्षपात का सवाल उठा। वहीं आयोग ने 7 लाख दोहरे नाम हटाने का दावा किया।
- तकनीकी और पारदर्शिता पर सवाल: डेटा एक्सेस कम करना, ‘डाटा पार्सिंग’ सीमित करना और बाहरी ऑडिटरों को जांच में मुश्किल पैदा करना, ऐसी शिकायतें उठीं जो पारदर्शिता पर असर डालती हैं।
- ग्राउंड‑लेवल मुश्किलें: ग्रामीण इलाकों में जानकारी की कमी, फॉर्म भरने में असुविधा, दस्तावेजों की मांग आदि समस्याएँ दिखाई दीं। कई मतदाताओं को लगता है कि उनके नाम बिना सूचना के काट दिए गए।
- सुधार और आगे की राह: सुप्रीम कोर्ट ने SIR को ‘शामिल करने वाली प्रक्रिया’ मानते हुए सुझाव दिया कि किसी का नाम हटाने में सावधानी बरती जाए। आगे सुधार के लिए तकनीक और जनता की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है।
इस तरह SIR एक जरूरी प्रक्रिया है, लेकिन इसकी निष्पक्षता और पारदर्शिता बरकरार रखना वक्त की मांग है। वहीं, बिहार CHEO वेबसाइट जैसे रिसोर्स पर भी लोग अपने वोटर स्टेटस की जानकारी ले सकते हैं। SIR के हालिया अनुभव यह बताते हैं कि जागरूक नागरिक और पारदर्शी सिस्टम मिलकर ही लोकतांत्रिक ताकत बढ़ा सकते हैं।
कांग्रेस द्वारा दायर 89 लाख शिकायतें: आंकड़े, प्रक्रियाएं और महिला वोटर्स पर असर
बिहार SIR के दौरान कांग्रेस ने जो 89 लाख शिकायतें चुनाव आयोग को सौंपीं, वे खुद अपने आप में एक रिकॉर्ड हैं। शिकायतों का यह विशाल आंकड़ा बताता है कि मतदाता सूची की शुद्धता और निष्पक्षता पर जनता और पार्टियों को कितनी चिंता है। खासकर जब महिलाओं, प्रवासी मतदाताओं और अलग-अलग जनसंख्या समूहों के नाम बड़ी संख्या में हटाए गए हैं. आइए जानते हैं, इन शिकायतों में क्या-क्या मुद्दे थे, कांग्रेस के बूथ लेवल एजेंटों ने इन्हें कैसे पेश किया और इनका सामाजिक महत्व क्या रहा।
शिकायतों की वर्गीकरण: डिलीट किए गए 65 लाख नामों का विभाजन
जब वोटर लिस्ट से नाम हटते हैं, तो हर नाम के पीछे कोई वजह होती है। कांग्रेस ने अपने दावे में लगभग 89 लाख शिकायतों की बात की, जिनमें से 65 लाख डिलीट किए गए नामों का विस्तृत वर्गीकरण सामने आया।
एक नजर आंकड़ों पर:
| श्रेणी | हटाए गए नामों की संख्या (लाख में) |
|---|---|
| प्रवासन (Migration) | 25 |
| मृत (Dead) | 22 |
| अनुपलब्ध (Absent) | 9.7 |
| अन्य/ज्ञात नहीं | शेष |
इन आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा नाम प्रवासी (माइग्रेशन) की वजह से हटाए गए, इसके बाद मृत मतदाताओं की गिनती आती है। इन श्रेणियों में बड़ी जनसंख्या बगैर पर्याप्त जाँच के डिलीट हुई, ऐसा कांग्रेस का आरोप है। इस विषय पर विस्तृत रिपोर्टिंग The Hindu ने भी प्रकाशित की है, जिसमें ECI द्वारा सार्वजनिक किए गए डिलीशन आंकड़े शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, ECI ने सभी डिलीटेड नाम ऑनलाइन और जिला कार्यालयों पर जारी कर दिए जिससे कोई भी पारदर्शिता की कमी का मुद्दा देख सके। फिर भी विवाद यह है कि इन डिलीशनों में जन-सुनवाई और फील्ड वेरिफिकेशन की गंभीरता कितनी थी।
BLAs की कार्रवाई: फॉर्म 6 और फॉर्म 7 की प्रक्रिया
किसी भी गड़बड़ी को पकड़ने और सही करने में बूथ लेवल एजेंट (BLA) की जिम्मेदारी सबसे महत्वपूर्ण होती है। कांग्रेस के हज़ारों BLAs ने वोटर लिस्ट की जांचकर फॉर्म 6 (शामिल करने) और फॉर्म 7 (नाम हटाने/आपत्ति) के जरिए आपत्तियां दर्ज की।
- फॉर्म 6: इसका इस्तेमाल नए वोटर जोड़ने के लिए होता है
- फॉर्म 7: इस फॉर्म से किसी नाम के हटाने या ग़लत जोड़ पर आपत्ति जताई जा सकती है (पूरा फॉर्म 7 देखें)
कांग्रेस ने दावा किया कि उसके एजेंट्स ने साक्ष्य सहित यानी फोटो, दस्तावेज और वोटर के सिग्नेचर के साथ फॉर्म जमा किए, लेकिन आयोग ने फार्मेट या डिक्लेयरेशन की कमी बताकर अधिकतर आवेदन अस्वीकृत कर दिए। इस पर कांग्रेस का कहना है कि BLAs ने स्थानीय स्तर पर लोगों की शिकायतें दर्ज करके पक्के दस्तावेज भी दिए। चुनाव आयोग के मुताबिक नियमों के मुताबिक आपत्ति सिर्फ संबंधित व्यक्ति या परिवार ही दे सकते हैं, जबकि कांग्रेस ने सामूहिक शिकायतें कीं, जिससे प्रक्रिया पर विवाद बना रहा।
इस पूरी प्रक्रिया पर, NDTV की खबर में भी गहराई से जानकारी दी गई है। आयोग ने BLA द्वारा किए गए मेल-केंद्रित या प्रार्थना-पत्र आधारित दावों को मान्यता नहीं दी, जिससे कांग्रेस नाराज़ हुई है।
लिंग आधारित विसंगतियाँ: महिला नामों की बड़ी संख्या में डिलीशन
Bihar SIR की सबसे बड़ी चिंता यह सामने आई कि डिलीटेड नामों में महिलाओं की हिस्सेदारी काफी अधिक रही। महिला वोटर्स का डिलीट होना सिर्फ संख्या नहीं, लोकतांत्रिक भागीदारी की दिशा में बड़ा झटका है।
- 70% से अधिक महिला नामों वाले बूथ: कुल 7,613 ऐसे बूथ मिले जहाँ हटाए गए नामों में 70% या ज्यादा महिलाएँ थीं।
- प्रवासी (Migration) श्रेणी में महिला नाम: प्रवासन के आधार पर 635 ऐसे बूथ थे जहाँ हटे हुए नामों में 75% या उससे ज्यादा महिलाओं के नाम मिले।
इससे साफ है कि प्रवासी और महिला वोटर्स, दोनों ही सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के कारण सिस्टम से बाहर होते जा रहे हैं। कई बार महिलाओं को पति के गाँव या शहर बदलने पर वोटर लिस्ट में बदलाव नहीं कर पाना महंगा पड़ जाता है। ऐसी विसंगतियों की वजह से वे दोहरी नागरिकता का अनुभव करती हैं–न पुराने घर में पहचान बचती है, न नए ठिकाने पर नाम जुड़ पाता है।
इस विषय को विस्तार से The Hindu की इस रिपोर्ट में समझाया गया है। आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के नाम काटने की रफ्तार पुरुषों के मुकाबले ज्यादा रही, खासकर युवा उम्र वर्ग में और उन इलाकों में जहाँ माइग्रेशन ज्यादा है।
अंततः, यह सिर्फ एक तकनीकी गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक अधिकारों से जुड़ा मसला है, जिस पर ना सिर्फ बिहार बल्कि देश भर में गंभीर बहस की जरूरत है।
चुनाव आयोग (EC) का जवाब
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया ने बिहार SIR में कांग्रेस द्वारा दायर 89 लाख शिकायतों के दावे पर ध्यान आकर्षित किया है। आयोग ने सीधे-सपाट शब्दों में यह साफ किया कि शिकायतों की प्रक्रिया, डॉक्युमेंटेशन और फॉर्मेट को लेकर गंभीर खामियां रहीं। यहां हम समझेंगे कि शिकायतों के अस्वीकार के प्रमुख कारण क्या थे, ड्राफ्ट रोल की अस्थायी प्रकृति आयोग के शब्दों में क्यों जरूरी है, और डुप्लिकेट मतदाता सूची की जांच के पीछे कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाती है।
शिकायतों का स्वरूप और अस्वीकार: EC का कहना कि शिकायतें नियत फॉर्म में नहीं थीं, व्यक्तिगत आवेदन की आवश्यकता, तथा प्रारंभिक ‘कोई शिकायत नहीं’ बयान की पुनःव्याख्या
कांग्रेस ने जिन 89 लाख आपत्तियों का दावा किया है, चुनाव आयोग की दलील है कि ये आपत्तियाँ तय फॉर्मेट और कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक दायर नहीं हुईं। आयोग के मुताबिक, नाम हटाने या एडिट करने संबंधी हर आवेदन के लिए फॉर्म 7 जरूरी होता है जिसमें व्यक्तिगत डिक्लेयरेशन/घोषणा (श्यपथ पत्र) संलग्न होनी चाहिए।
आयोग की इस साफ स्थिति को आप Economic Times की रिपोर्ट में पढ़ सकते हैं, जिसमें कहा गया है कि राज्य निर्वाचन अधिकारी ने सिर्फ व्यक्तिगत, सही प्रारूप में आए फॉर्म्स की स्वीकार्यता को उचित माना। सामूहिक, मेल-केंद्रित या राजनैतिक पार्टी के हस्ताक्षरयुक्त आवेदन नियमों के अनुरूप स्वीकार नहीं किए जाते।
इस पूरे विवाद के बीच, आयोग ने अपनी शुरूआती “कोई शिकायत नहीं मिली” टिप्पणी की भी फिर से व्याख्या की—वह सिर्फ तकनीकी रूप से मान्य दावों और निर्धारित दस्तावेज़ों वाले आवेदनों की गिनती थी। पार्टी के बड़े स्तर पर दिए गए सादे पत्र, रसीदें या समूह आवेदन किसी व्यक्तिगत मतदाता या परिवार के प्रमाणित दावे के बिना अमान्य करार दिए गए।
ड्राफ्ट रोल का खुला मंच: ड्राफ्ट रोल सार्वजनिक जांच के लिए कैसे खुला है, कौन‑कौन से सुधार संभव हैं, और अंतिम रोल प्रकाशित होने से पहले की प्रक्रिया पर प्रकाश डालें
ड्राफ्ट रोल लोकतंत्र में पारदर्शिता की बुनियाद हैं। जब आयोग ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी करता है, तो वह किसी भी व्यक्ति, पार्टी, संगठन को अपनी आपत्ति, सुझाव या सुधार फॉर्म 6/7/8 के जरिए दर्ज कराने का मौका देता है।
- सार्वजनिक उपलब्धता: वोटर लिस्ट आयोग की वेबसाइट और बूथ पर उपलब्ध रहती है।
- सुधार और आपत्तियां: कोई भी वोटर अपने नाम, पते, लिंग या उम्र में गड़बड़ी पाए तो सुधार के आवेदन कर सकता है। पार्टियां सामूहिक ऑब्जेक्शन भी दे सकती हैं, लेकिन हर दावे के साथ व्यक्ति या परिवार का स्पष्ट प्रमाण जरूरी है।
- चरणबद्ध प्रक्रिया:
- ड्राफ्ट रोल के प्रकाशन के साथ 30 दिन की सुविधा आम नागरिक के लिए खुलती है।
- इस दौरान सभी आपत्तियों, दावों की सुनवाई संबंधित अधिकारी द्वारा होती है।
- इसके बाद, फील्ड वेरिफिकेशन और आवश्यक जांच पूरी करके ही अंतिम वोटर लिस्ट प्रकाशित की जाती है।
intimes of India रिपोर्ट के मुताबिक, अंतिम पब्लिशिंग से पहले हर आपत्ति की पड़ताल होती है, जिससे फर्जी, दोहरे नाम या अवांछित डिलीशन रुक सके।
डुप्लिकेट वोटर की जाँच: EC के ERONET 2.0 सॉफ्टवेयर द्वारा डेमोग्राफिकली सिमिलर एंट्रीज़ (DSE) की पहचान, फील्ड वैरिफिकेशन और डिलीशन के मानदंड समझाएँ
डेमोग्राफिकली सिमिलर एंट्रीज़ (DSE) यानी नाम, पिता का नाम, उम्र या पता समान होने पर कई बार डुप्लिकेट मतदाता लिस्ट में सामने आते हैं। इस चुनौती का समाधान खोजने के लिए चुनाव आयोग ERONET 2.0 नामक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता है, जो पूरे जिले या राज्य की वोटर लिस्ट स्कैन कर संभावित डुप्लिकेट एंट्रीज की लिस्ट तैयार करता है।
- DSE पहचानने का प्रोसेस:
- सॉफ्टवेयर नाम, लिंग, उम्र, माता/पिता का नाम, पते को मैच करता है।
- संभावित डुप्लिकेट नाम BLO के पास भेजे जाते हैं।
- BLO घर जाकर फील्ड वेरिफिकेशन करता है और मालिकाना और पहचान की पुष्टि के बाद रिपोर्ट देता है।
डिलीशन का मानक है कि अगर कोई वोटर दो जगह एक साथ पंजीकृत पाया गया या उसके नाम पर पर्याप्त दस्तावेज़ और फोटो तुलना से पुष्टि हुई, तो उसके नाम को एक जगह से हटाया जाता है।
The Hindu की इस रिपोर्ट में आयोग ने साफ किया है कि बिहार जैसे राज्यों में समान नाम और माता-पिता के नाम आम हैं, जो अकेले डुप्लिकेशन का आधार नहीं बन सकते; फील्ड वेरिफिकेशन अनिवार्य है।
- विशेष बिंदु: डुप्लिकेट डिलीशन सिर्फ साफ और मजबूत फील्ड प्रूफ के बाद की जाती है। हर डिलीशन की लिखित सूचना दी जाती है, जिससे मतदाता कोर्ट या आयोग के पास अपील कर सके।
पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए आयोग ने फील्ड वेरिफिकेशन और तकनीकी जाँच दोनों पर बराबर जोर दिया है। इससे मतदाता सूची की विश्वसनीयता तो बढ़ती ही है, साथ में गड़बड़ियों से बचाव भी होता है।
कानूनी पहलू और सुप्रीम कोर्ट का आदेश
बिहार SIR (Special Intensive Revision) में जबरदस्त विवाद और असंतोष के बाद यह मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट का 22 अगस्त 2025 का आदेश मतदाता सूची में नाम जोड़ने, हटाने और सुधार की प्रक्रिया में एक अहम मोड़ लाता है। कोर्ट के हस्तक्षेप से न सिर्फ प्रक्रिया की पारदर्शिता पर ज़ोर बढ़ा, बल्कि राजनीतिक दलों की भूमिकाएँ भी और ज़िम्मेदार हो गईं। इस सेक्शन में आपको सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, फॉर्म 6 और 7 की वैधता और SIR के भविष्य पर आने वाले बदलावों की पूरी जानकारी मिलेगी।
SC आदेश का सारांश: ऑर्डर के मुख्य बिंदु: सूचना प्रस्तुत करने की प्रक्रिया, ERO की जिम्मेदारियां, और कार्रवाई का समय‑सीमा
22 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने SIR को लेकर कई बड़े निर्देश दिए। आयोग, राजनीतिक दलों और मतदाताओं सभी की जिम्मेदारी तय कर दी गई:
- राजनीतिक दलों की भूमिका: सुप्रीम कोर्ट ने 12 प्रमुख राजनीतिक दलों से साफ तौर पर कहा कि उनके बूथ लेवल एजेंट (BLA) हर संभावित प्रभावित मतदाता की मदद करें। अब दावा, आपत्ति या नाम जुड़वाने की प्रक्रिया में BLAs की भागीदारी ज़रूरी हो गई।
- दस्तावेज की मंजूरी: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नाम जोड़ने (या आपत्ति करने) के लिए सिर्फ आधार कार्ड नहीं, कोई भी 11 और निर्धारित दस्तावेज भी पर्याप्त हैं।
- सूचना प्रस्तुत करने की प्रक्रिया: कोर्ट ने कहा, सभी पार्टियां अपने BLAs के जरिए मतदाताओं के क्लेम और ऑब्जेक्शन सही फॉर्मेट (फॉर्म 6/फॉर्म 7) में ही दाखिल करें।
- ERO की जिम्मेदारी: Electoral Registration Officer (ERO) को निर्देश मिला कि हर वैध दावा/आपत्ति का रिकॉर्ड बनाए और सुनवाई पूरी तरह ऑन-रिकॉर्ड हो।
- समय-सीमा: सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा, अगर नाम हटाने या जोड़ने के दावों की संख्या बहुत ज्यादा हो, तो ज़रूरत पड़ने पर दावे/आपत्ति दाखिल करने की अंतिम तारीख बढ़ाई जाएगी। The Hindu के इस लाइव अपडेट्स में कोर्ट के पूरे आदेशों का विस्तार मिलता है।
इन निर्देशों के चलते चुनाव आयोग को सभी 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को नोटिस जारी कर उनके कार्रवाई की स्टेटस रिपोर्ट मांगनी पड़ी और आगे की सुनवाई के लिए नई तारीख घोषित की गई।
फॉर्म 6 और फॉर्म 7 की वैधता: इन फॉर्मों के कानूनी महत्व, किसे भरना चाहिए, और कांग्रेस द्वारा दावे किए गए फॉर्मों की स्थिति पर चर्चा करें
SIR में नाम दर्ज करवाने या आपत्ति/डिलीशन के पूरे प्रोसेस की आत्मा हैं- फॉर्म 6 और फॉर्म 7। सुप्रीम कोर्ट ने इनकी वैधता को दोबारा सुदृढ़ किया:
- फॉर्म 6: किसी भी नागरिक को वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाना है, नया नामांकन कराना हो या युवक-युवतियों को पहली बार लिस्ट में आना हो – फॉर्म 6 ज़रूरी है।
- फॉर्म 7: नाम हटाने या गलत/फर्जी एंट्री के खिलाफ आपत्ति दर्ज करनी हो, इसके लिए फॉर्म 7 भरना अनिवार्य है।
कानूनी महत्व
इन फॉर्म्स का चुनाव कानून में सीधा उल्लेख है, और ये न मान्य होने पर आयोग दावे/शिकायत को अमान्य कर सकता है। आयोग सिर्फ उन्हीं दावों को मान्य करता है जिनमें संबंधित व्यक्ति या अधिकृत परिवारजन ने विधिवत फॉर्म, समर्थन डॉक्युमेंट और पहचान/sigature संलग्न किया हो।
कांग्रेस द्वारा दावे किए गए फॉर्म
कांग्रेस ने दावा किया था कि उसके BLAs ने लाखों की संख्या में फॉर्म 6 और फॉर्म 7 आयोग के पास जमा किए। लेकिन चुनाव आयोग ने अस्वीकृति का कारण दिया कि:
- बहुत-सी शिकायतें निर्धारित फॉर्मैट (Form 6/7) में नहीं थीं;
- उनमें व्यक्तिगत घोषणा/डिक्लेयरेशन या जरूरी दस्तावेज संलग्न नहीं थे,
- बहुत-सी सामूहिक याचिकाएं सिर्फ पार्टी की ओर से या group-based थीं, व्यक्तिगत ई-साक्ष्य या हस्ताक्षर नहीं थे।
इस कारण अधिकांश शिकायतें/ दावे अमान्य घोषित किए गए। Economic Times की रिपोर्ट में इसी बिंदु को विस्तार से उठाया गया है।
भविष्य के कदम: यदि शिकायतें मान्य पाई जाती हैं तो SIR को पुनः संचालित करने की संभावना, EC के संभावित सुधार और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने के उपायों की रूपरेखा बनाएं
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई ने भविष्य के लिए कई रास्ते खोल दिए हैं:
- डेडलाइन विस्तार: कोर्ट ने अपनी सुनवाई में साफ कहा था कि अगर बहुत बड़ी संख्या में क्लेम या आपत्तियां दोबारा दाखिल होती हैं, तो आयोग को आवश्यकता अनुसार क्लेम/ऑब्जेक्शन की निर्देशक अंतिम तिथि बढ़ाना होगा। RJD व अन्य दलों द्वारा डेडलाइन बढ़ाने की याचिका इसी संदर्भ में दायर की गई है।
- SIR की पुनरावृत्ति की संभावना: यदि बहुत-सी अमान्य शिकायतें या सामूहिक डिलीशन वाले नाम कोर्ट या आयोग के सामने सही साबित होते हैं, तो SIR प्रक्रिया को आंशिक या पूर्ण रूप से दोबारा संचालित किया जा सकता है।
- चुनावी पारदर्शिता के नए कदम:
- हर दावा/ऑब्जेक्शन की डिजिटल ट्रैकिंग;
- सभी नाम हटाने/जोड़ने की लिखित सूचना सार्वजनिक पोर्टल पर;
- महिला, प्रवासी व युवा वोटर्स की डिजिटल जांच और ऑडिटिंग;
- हर नाम @आधार आधारित verify, जिससे डुप्लिकेट, प्रवासन या अवैध नामों का पता लगे;
- राजनीतिक दलों की जिम्मेदार भागीदारी: BLAs अब सिर्फ आपत्ति भरने वाले नहीं, बल्कि हर परिवार को फॉर्म के अधिकार, सही दस्तावेज और प्रक्रिया सिखाने के लिए काम करेंगे।
- सतत समीक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि ERO, आयोग और मान्यता प्राप्त पार्टियाँ लगातार निगरानी करें कि कोई भी वास्तविक मतदाता लिस्ट से बाहर न रहे।
इन सभी पहलुओं के साथ आगे के चुनावी चरणों की पारदर्शिता, विश्वसनीयता और सहभागिता का स्तर और ऊपर जाएगा। कोर्ट के हस्तक्षेप से बिहार जैसी चुनौतिपूर्ण सियासत में हर मतदाता की पहचान और अधिकार के लिए एक मजबूत प्लेटफार्म तैयार हो रहा है।
SC Observer की इस रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों, वोटर सूची सुधार, और BLAs की जिम्मेदारी का बारीकी से वर्णन किया गया है, जो आगे की चुनावी प्रक्रियाओं के लिए मिसाल बनेगा।
निष्कर्ष
बिहार SIR में कांग्रेस द्वारा दायर 89 लाख शिकायतों और चुनाव आयोग की अस्वीकृति ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर ज़रूरी सवाल खड़े किए हैं. मतदाता सूची में गड़बड़ी की आशंका, राशि के मुताबिक डिलीशन, और महिला वोटर्स के नाम हटाने जैसे मुद्दों ने पारदर्शिता की अहमियत को फिर से उजागर किया है.
इस घटनाक्रम से साफ है कि प्रक्रिया की जटिलता, दस्तावेज़ी औपचारिकताएं और सही फॉर्मेट में आवेदन की अनिवार्यता आम नागरिक की भागीदारी पर सीधा असर डालती है. सुप्रीम कोर्ट और आयोग के दखल के बाद उम्मीद है कि शिकायतों पर निष्पक्ष और फील्ड-आधारित फैसला लिया जाएगा.
आगे आने वाले चुनावों के लिए जरूरी है कि सभी दलों, नागरिकों और आयोग के बीच संवाद व सहयोग बढ़े. मतदाता अधिकार की रक्षा और लिस्ट की शुद्धता के लिए सजग नागरिक बनें, अपनी वोटिंग जानकारी जांचें, और किसी गड़बड़ी पर समय रहते प्रतिक्रिया दें. आपकी भागीदारी बिहार ही नहीं, लोकतंत्र को भी मजबूत बनाती है.
पढ़ने के लिए धन्यवाद. आप अपने अनुभव या सुझाव कमेंट में साझा करें और इस चर्चा को आगे बढ़ाएं.
