जुलाई 2025 PCE रिपोर्ट: महंगाई, अमेरिकी टैरिफ और फेड की नई नीति की पूरी तस्वीर

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जुलाई 2025 PCE रिपोर्ट: महंगाई के नए रुख, टैरिफ और फेड की अगली चाल

2025 की गर्मी में महंगाई फिर से चर्चा में है। जुलाई 2025 की PCE रिपोर्ट ने तस्वीर को साफ दिखाया, जिसमें मुख्य ब्याज दर 2.9% सालाना रही, जो फरवरी के बाद सबसे ऊँचा स्तर है। इस दौरान हेडलाइन महंगाई दर 2.6% रही और उपभोक्ता खर्च में 0.5% की तेज़ी दिखाई दी।

इन आँकड़ों ने न सिर्फ आम उपभोक्ता की जेब पर असर डाला, बल्कि ट्रैफिक टैरिफ और फेडरल रिज़र्व की नीति की दिशा भी ज़ाहिर कर दी। कई सेवाओं की कीमतें तेज़ी से बढ़ीं, जबकि ऊर्जा की कीमतों में हल्की गिरावट आई। इस समय, राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा लगाए नए टैरिफ और फेड के भीतर चल रहे राजनीतिक बदलाव ने आर्थिक माहौल को और अनिश्चित बना दिया है।

रिपोर्ट से यह साफ है कि महंगाई अब भी फेडरल रिज़र्व के 2% के लक्ष्य से दूर दिखाई देती है, जिससे ब्याज दरों में बदलाव के फैसले और भी अहम हो गए हैं।

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जुलाई 2025 की कोर PCE महंगाई के मुख्य आंकड़े

जुलाई 2025 की PCE (Personal Consumption Expenditures) रिपोर्ट के नंबरों ने महंगाई की जटिल तस्वीर सामने रखी। इस महीने कोर PCE वार्षिक 2.9% तक पहुंच गई, जो फरवरी के बाद सबसे ऊँचा स्तर है। मासिक आधार पर इसमें 0.3% की वृद्धि दर्ज हुई। इस दौरान हेडलाइन PCE वार्षिक 2.6% रही और इसमें 0.2% की मासिक वृद्धि देखी गई। इन आंकड़ों के आधार पर फेडरल रिज़र्व अब भी अपने 2% के लक्ष्‍य से ऊपर है और नीतिगत फैसलों के लिए दबाव में है।

कोर PCE बनाम हेडलाइन PCE: क्या अंतर है?

कोर PCE और हेडलाइन PCE दोनों महंगाई के अलग–अलग पहलू दिखाते हैं, लेकिन इनमें फर्क क्या है? इसका असली कारण है—कोर PCE में भोजन और ऊर्जा की कीमतों को शामिल नहीं किया जाता है।

भोजन और ऊर्जा की कीमतें साल भर में काफी बदलती रहती हैं, जैसे- कभी मौसम की वजह से डीज़ल महंगा हो जाता है, तो कभी अंतरराष्ट्रीय हालात से पेट्रोल के दाम अचानक गिर जाते हैं। अगर इन्हें शामिल कर लिया जाए, तो आंकड़े कभी ऊपर, कभी नीचे जाते रहेंगे और वास्तविक महंगाई की तस्वीर साफ़ नहीं मिल पाएगी।

  • कोर PCE: इसमें सिर्फ वे चीजें शामिल हैं, जिनकी कीमतें स्थिर रहती हैं। प्राथमिक रूप से यह उपभोक्ता खर्च के ट्रेंड की सही तस्वीर दिखाता है।
  • हेडलाइन PCE: इसमें खाने और ऊर्जा समेत सभी चीजें शामिल होती हैं, जिससे महंगाई के कुल स्तर का पता चलता है। लेकिन इसमें उतार–चढ़ाव ज़्यादा रहता है।

यही वजह है कि फेडरल रिज़र्व मुख्य रूप से कोर PCE को महत्व देता है। इससे उन्हें नीतिगत फैसले लेने में और मौद्रिक नीति के लिए लंबे समय के ट्रेंड समझने में मदद मिलती है। कोर PCE, जैसे ठंडी सड़क पर बिना फिसलन के सीधे रास्ते की तरह है, जबकि हेडलाइन PCE बर्फ़ से ढंकी पहाड़ी सड़क के जैसी है—जो कभी भी तेजी से मुड़ सकती है।

कुछ स्रोतों के अनुसार, कोर PCE जुलाई 2025 में 2.9% रही। वहीं, हेडलाइन PCE भी 2.6% वार्षिक स्तर पर रही

सेवाओं की कीमतें और वस्तुओं की कीमतें

जुलाई 2025 में सेवाओं की कीमतों में 3.6% की साल-दर-साल वृद्धि दर्ज हुई, जबकि वस्तुओं की कीमतें मात्र 0.5% से बढ़ीं। यह अंतर बताता है कि महंगाई कहाँ ज्यादा महसूस की जा रही है—आपको रेस्त्रां में खाना या घर किराए पर लेना महंगा लग सकता है, लेकिन रोज़मर्रा का सामान या इलेक्ट्रॉनिक्स की कीमत में ज्यादा बदलाव नहीं आया।

सेवाओं की कीमतें ज्यादा क्यों बढ़ीं? इसके पीछे कुछ मुख्य कारण हैं:

  • मजदूरी में बढ़ोतरी: सर्विस सेक्टर में कर्मचारियों की मांग बढ़ी, जिससे वेतन में इज़ाफा हुआ।
  • डिमांड का बने रहना: लोग रेस्त्रां जाना, यात्रा करना या अन्य सेवाएं लेना बंद नहीं कर रहे, जिससे मांग बनी हुई है।
  • सप्लाई-चेन चुनौतियाँ: कोविड और ग्लोबल राजनीतिक हालात के बाद अभी भी कुछ सेवाओं की सप्लाई में दिक्कतें आ रही हैं।

वहीं, वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहीं क्योंकि—

  • ऊर्जा की कीमतों में गिरावट: ऊर्जा की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 2.7% कम रहीं, जिससे रोज़ के सामान की लागत भी नियंत्रित रही।
  • आपूर्ति सामान्य होना: सप्लाई चेन दुरुस्त होते ही ज्यादातर वस्तुओं पर दबाव कम पड़ा है।

नवंबर की न्यूयॉर्क टाइम्स रिपोर्ट में भी इन असंतुलनों की चर्चा है।

अगर आसान भाषा में कहें, तो आज की अर्थव्यवस्था में ग्रॉसरी या मोबाइल जैसी चीज़ें खरीदना उतना भारी नहीं है, जितना बाल कटवाने या डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लेना हो गया है। यही वजह है कि सेवाओं की महंगाई ने फेड और आम आदमी दोनों के लिए अलार्म बजा दिया है।

ट्रैफिक नीति का महंगाई पर प्रभाव

2025 में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार ने 10% बेसलाइन टैरिफ लगाकर वैश्विक व्यापार बाजार में हलचल मचा दी। उसके बाद कई चुनिंदा उत्पादों पर और भी अधिक टैरिफ लागू हुए। इस टैरिफ नीति का सीधा असर आपके, मेरे और हर उपभोक्ता की जेब पर पड़ा। जब सरकार आयातित चीज़ों पर टैक्स बढ़ाती है, तो सिर्फ़ विदेशी व्यापारी ही नहीं, आम जनता की दैनिक ज़िंदगी भी महंगी हो जाती है। अब जानते हैं कि इन टैरिफ के कारण कीमतें कैसे बढ़ीं और किन क्षेत्रों में इसका सबसे गहरा असर देखा गया।

आयात लागत में वृद्धि और उपभोक्ता कीमतें: टैरिफ के कारण आयातित वस्तुओं की कीमतें कैसे बढ़ी, इसका उदाहरण दें और इसका असर उपभोक्ता खर्च पर कैसे पड़ा, इसे दर्शाएँ।

जब किसी चीज़ पर 10% या उससे ज़्यादा टैरिफ लगता है, तो उसके दाम सीधे ऊपर जाते हैं। ट्रम्प सरकार के नए नियमों के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, मोटरसाइकिल, और रोज़मर्रा की कई दूसरी उत्पादों के मूल्यों में अचानक बढ़ोतरी देखी गई। उदाहरण के लिए, अगर पिछले साल किसी स्मार्टफो़न की कीमत $500 थी, तो अब वही फोन टैरिफ के बाद $550 या उससे भी ज़्यादा में बिकने लगा।

  • सीधे असर:
    • मोबाइल, लैपटॉप, फ्रिज, मशीनरी जैसी चीज़ें महंगी हो गईं।
    • कई अमेरिकी सुपरमार्केट में रोज़ाना इस्तेमाल की जाने वाली चॉकलेट, कॉफी, चाय और अन्य आयातित सामानों के रेट बढ़ गए।
  • आंशिक असर:
    • उपभोक्ता को या तो बजट काटना पड़ा या कम गुणवत्तापूर्ण विकल्प चुनना पड़ा।
    • महीने के बजट में सामान्य घरों को $50–$100 तक अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ा।

टैक्स फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 के टैरिफ से हर अमेरिकी परिवार पर औसतन $1,300 सालाना अतिरिक्त खर्च बढ़ा है (Trump Tariffs: The Economic Impact of the Trump Trade War)। इस बढ़ी हुई लागत ने परिवारों के रोज़मर्रा के खर्च में साफ-साफ जगह बना ली।

टैरिफ के आर्थिक प्रतिक्रिया के संकेत: टैरिफ से व्यापारियों की लागत, लाभ और उपभोक्ता के बोझ में परिवर्तन को सरल शब्दों में समझाएँ।

व्यापारी जब टैरिफ का सामना करते हैं, तो उनके सामने सिर्फ़ दो रास्ते होते हैं: या तो वह बढ़ी हुई लागत खुद झेले, या उसे उपभोक्ता पर डाल दें। प्रैक्टिकल दुनिया में ज्यादातर व्यापारी ये भार ग्राहकों पर डालते हैं।

  • लागत में बढ़ोतरी: व्यापारी को आयात पर 10% का अतिरिक्त टैक्स देना पड़ा, जिससे उसकी हॉलसेल कीमतें बढ़ गईं।
  • मुनाफे का दबाव: कई छोटे और मझोले व्यापारियों का मुनाफा घट गया क्योंकि सभी लागत उपभोक्ता तक नहीं भेज पाए।
  • ग्राहक पर असर:
    • जैसे ही दुकानदारों ने दाम बढ़ाए, कई ग्राहकों ने खरीदारी कम कर दी।
    • किफायती प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ गई, जबकि प्रीमियम ब्रांडों की बिक्री घटी।
  • समग्र उपभोक्ता बोझ: हर सामान जो आयात से जुड़ा था, वह महंगा हो गया। अमेरिका में खुदरा मूल्य सूचकांक में औसतन 0.4% की अतिरिक्त बढ़ोतरी दर्ज की गई (US Tariffs: What’s the Impact? | J.P. Morgan Global Research)।

संक्षेप में, जब सरकार टैरिफ लगाती है, तो व्यापारी अपनी लागत निकालने के लिए कीमतें बढ़ाते हैं। आखिरकार असर आप पर, ग्राहक पर, सीधा पड़ता है। अगर कोई सोच रहा है कि टैरिफ सिर्फ देशों की आपसी राजनीतिक चाल है, तो उसे अपने घर की किराने की पर्ची को एक बार जरूर देखना चाहिए—हर बार की तुलना में आज ज्यादा लम्बी है।

फेड की मौद्रिक नीति और भविष्य की राह

2% की महंगाई दर फेडरल रिज़र्व का घोषित लक्ष्य रहता है, लेकिन जुलाई 2025 की कोर PCE (2.9%) इसे पार कर चुकी है। ऐसे माहौल में फेड की अगली चाल को लेकर हर किसी की नज़र सितंबर FOMC मीटिंग पर टिकी है। ब्याज दरों में बदलाव का सवाल सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि हर घर-व्यक्ति की जेब का भी मसला बन चुका है। फेड अध्यक्ष जेरोम पॉवेल, गवर्नर क्रिस्टोफर वॉलर और मोर्गन स्टेनली की मुख्य अर्थशास्त्री एलेन ज़ेंटर जैसे विशेषज्ञों के ताजा बयान सितंबर दर कट की संभावनाओं को लेकर ज्यादा साफ और दिलचस्प संकेत दे रहे हैं।

दर कट की संभावना और शर्तें: रोजगार बाजार में कमजोरी या महंगाई में गिरावट के आधार पर दर कट का आकार कैसे तय होगा, इसे स्पष्ट करें।

फेड की मौजूदा नीति बहुत ज़्यादा “डेटा पर निर्भर” रही है। जब तक महंगाई दर 2% के करीब नहीं आती या रोजगार बाजार में कोई ठोस कमजोरी नहीं दिखती, तब तक ब्याज दरों को बदलना जोखिम भरा हो सकता है। लेकिन अब, जुलाई 2025 की PCE रिपोर्ट में महंगाई का दबाव जारी दिखता है।

फेड चेयर पॉवेल के हालिया संकेत पूरी तरह स्पष्ट हैं—सितंबर में “फाइन-ट्यूनिंग” दर कट संभव है अगर आर्थिक आंकड़ें सही दिशा में जाते हैं। उन्होंने कहा, “अगर डेटा मजबूत रहता है और हायरिंग की रफ्तार सुस्त पड़ती है, तो रेट कट पर विचार किया जा सकता है।” (Powell Signals Possible Fed Rate Cut in September)

गवर्नर वॉलर की राय इसमें और रोशनी डालती है। उन्होंने कहा कि दर कट का आकार अर्थव्यवस्था की दिशा पर निर्भर करेगा:

  • रोजगार बाजार कमजोर होता है: बड़े रेट कट की संभावना क्योंकि उपभोक्ता खर्च और नौकरियों पर दबाव पड़ेगा।
  • महंगाई तेज़ी से गिरती है: छोटे और सीमित कट किए जा सकते हैं, ताकि ग्रोथ को सपोर्ट मिले, लेकिन बिना किसी डर के कि कीमतें फिर से दौड़ें।
  • कोई बड़ा बदलाव नहीं: तब शायद दर स्थिर रहें या सिर्फ छोटा बदलाव हो।

एलेन ज़ेंटर का कहना है कि फेड को स्थिति बहुत सूक्ष्मता से देखनी होगी, ताकि सारे कदम धीमे और समयबद्ध उठाए जाएं। उनकी नजर में सितंबर में दर कट लगभग तय है, जब तक अचानक कोई उल्टा आर्थिक झटका न लगे (Fed Chair Powell Keeps September Rate Cut On The Table)।

भविष्य के महंगाई संकेतक: भविष्य में किन डेटा को फेड प्रमुख मानता है और किन संकेतकों को देखेगा, इसका संक्षिप्त उल्लेख करें।

आने वाले महीनों में फेड के लिए दो सबसे अहम सवाल रहेंगे—महंगाई और रोजगार। फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) अपनी अगली मीटिंग में इन संकेतकों से सीधे दिशा लेगी (Federal Reserve issues FOMC statement)।

जो संकेतक फेड खासतौर पर देखती है, उनमें प्रमुख हैं:

  • कोर PCE और हेडलाइन PCE: कोर पीसीई में लगातार गिरावट और हेडलाइन आंकड़ों का स्थिर रहना सबसे जरूरी है।
  • नॉन-फार्म पेरोल रिपोर्ट: हर महीने नई नौकरियों की संख्या इंगित करती है कि बाजार में मजबूती या कमजोरी किस ओर जा रही है।
  • वेतन वृद्धि (Wage Growth): अगर मजदूरी तेजी से बढ़ती है, तो उसका असर महंगाई पर सीधा आ सकता है।
  • उपभोक्ता खर्च: महीने-दर-महीने खर्च घटता है या बढ़ता है, उस पर फेड खास ध्यान देता है।
  • व्यापारिक कॉन्फिडेंस इंडेक्स: क्या कारोबारी भविष्य को लेकर आशावादी हैं?

इन सारे संकेतकों का डेटा उभरकर सितंबर FOMC मीटिंग में सामने आएगा और उसके आधार पर फेड की दर कट या दर स्थिर रखने की चाल तय होगी। पूरी जानकारी के लिए आप Fed – Monetary Policy पर ताजा बैठक के रिकॉर्ड देख सकते हैं।

फेड की नीति जब-जब आर्थिक डेटा के हिसाब से “फाइन-ट्यून” होती है, तब-तब बाजार में नए रुझान दिखना लाजिमी है। इस बार भी, दर कट का फैसला कोई एक आंकड़ा नहीं, पूरे आर्थिक माहौल की तस्वीर देखकर ही लिया जाएगा।

बाजार प्रतिक्रिया और उपभोक्ता व्यवहार

जुलाई 2025 की PCE रिपोर्ट के खुलासे के तुरंत बाद, बाजार और उपभोक्ता दोनों ही एक अजीब सी जद्दोजहद में नजर आए। एक ओर महंगाई दर फेडरल रिज़र्व के लक्ष्य से ऊपर बनी रही, वहीं दूसरी ओर लोग अपनी जीवनशैली और खर्च की प्राथमिकताओं पर टिके रहे। इस हिस्से में जानेंगे कि बाजार की हलचल कैसे दिखी और उपभोक्ताओं का खर्च क्यों कम नहीं हुआ, जबकि जेब पर अतिरिक्त दबाव बढ़ा।

शेयर बाजार और बंधक दरें: बाजार में फ्यूचर्स की गिरावट और यील्ड के बढ़ने के कारण समझाएँ, सरल भाषा में

रिपोर्ट जारी होते ही शेयर बाजार फ्यूचर्स ने गिरावट दिखाई। इसका सीधा मतलब है कि बड़े निवेशक आगे मंदा या अस्थिरता देख रहे हैं। वहीं, अमेरिकी ट्रेज़री यील्ड (सरकार द्वारा ब्याज दर) अपनी बढ़त पर बनी रही, यानी निवेशकों को पैसा उधार देने के लिए और बेहतर रिटर्न की उम्मीद थी। इसकी दो मुख्य वजह थीं:

  • महंगाई का उच्च स्तर: जुलाई में मुख्य PCE महंगाई 2.9% तक पहुंच गई। जब महंगाई लगातार लक्ष्य से ऊपर रहती है, तो लोग मानते हैं कि फेडरल रिज़र्व को ब्याज दरों में बदलाव या कम करने में हिचकिचाहट होगी।
  • फेडरल रिज़र्व की नीतिगत अनिश्चितता: बाजार इस उलझन में था कि अगर महंगाई काबू से बाहर रही, तो फेड कितनी जल्दी कटौती करेगा? इसी वजह से स्टॉक फ्यूचर्स में गिरावट आई और यील्ड में स्थिरता या हल्की वृद्धि दिखी।

एक नज़र में देखें—

  • स्टॉक मार्केट फ्यूचर्स: रिपोर्ट के तुरंत बाद निगेटिव, क्योंकि निवेशक सतर्क हो गए।
  • ट्रेज़री यील्ड: ऊँचाई पर टिके रहे, यह दिखाता है कि महंगाई को लेकर अभी भी आशंका बनी हुई है।

सीएनबीसी रिपोर्ट अनुसार, इस डेटा के बाद निवेशकों में यह विचार बना रहा कि फेड कब और कितनी बड़ी कटौती करेगा।

उपभोक्ता खर्च में लचीलापन: उच्च कीमतों के बावजूद खर्च में स्थिरता के कारणों को उदाहरण देकर बताएं

महंगाई और कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद, जुलाई 2025 में उपभोक्ता खर्च में 0.5% की बढ़त दर्ज हुई। यही नहीं, लोगों की व्यक्तिगत आय में भी 0.4% की वृद्धि आई। आखिर, उंची कीमतों के बावजूद अमेरिकी उपभोक्ता खर्च से क्यों पीछे नहीं हटे? चलिए, इसकी वजहें दिखाते हैं—

  • मजबूत रोजगार बाजार: अधिकतर लोग अपनी नौकरी और सैलरी को लेकर आश्वस्त थे, जिससे वे खर्च करने में झिझके नहीं।
  • वेतन में वृद्धि: पिछले महीनों में मजदूरी बढ़ी है, जिससे जेब थोड़ी भर सी गई। इसका असर यह हुआ कि लोग छोटी-मोटी महंगाई की परवाह किए बिना ज़रूरत या शौक की चीज़ें खरीदते रहे।
  • लंबे समय तक ठहराव के बाद पेंट-अप डिमांड: कई लोग कोविड और आर्थिक अनिश्चितता के समय बड़े खर्च टालते रहे थे, लेकिन अब वो अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए खर्च बढ़ा रहे हैं– जैसे कार, रेफ्रिजरेटर, यात्रा वगैरह।
  • कई खर्च जरूरी: अस्पताल, बच्चों की स्कूल फीस, ग्रॉसरी जैसी जरूरतें, जिनके बिना कोई समझौता नहीं हो सकता।

एक उदाहरण लें:

  • सारा के परिवार ने गर्मियों में नई कार खरीदी, क्योंकि पुरानी गाड़ी ठीक से नहीं चल रही थी। भले ही कीमतें बढ़ीं, लेकिन रोजमर्रा की सुविधाओं के लिए उन्होंने यह खर्च किया।
  • जॉन और उनकी पत्नी ने बच्चों की ग्रूमिंग और डेंटल अपॉइंटमेंट्स टाले नहीं, भले ही सर्विसेज महंगी हुई हों।

रॉयटर्स की खबर में भी बताया गया है कि जुलाई का उपभोक्ता खर्च मार्च के बाद सबसे ज्यादा रहा। यह सब दर्शाता है कि जब तक लोगों को अपनी नौकरी, आमदनी और भविष्य का भरोसा है, वे रमजान की खरीदारी की तरह निर्भीक होकर बाजार में सक्रिय रहते हैं, भले ही महंगाई उन्हें थका दे।

इस रिपोर्ट ने ये भी साफ कर दिया कि अमेरिकी उपभोक्ता अभी खर्च के मामले में “हिम्मत नहीं हारेंगे”, और यही बात अर्थव्यवस्था में एक खास किस्म की जिजीविषा और लचीलापन डालती है।

निष्कर्ष

जुलाई 2025 की PCE रिपोर्ट ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था की जटिल चाल को उजागर किया है। महंगाई के ऊंचे आंकड़े, टैरिफ का दबाव और फेड की सतर्क नीति—तीनों ने बाजार की धड़कन और लोगों के खर्च को गहराई से प्रभावित किया।

फेड की दर कट के फैसले का इंतजार अब बाजार और उपभोक्ताओं, दोनों की सोच में बसा है। प्रमुख संकेतकों पर नजर रखना जरूरी होगा क्योंकि महंगाई और टैरिफ के असर का रिश्ता आगे भी बना रहेगा। अमेरिकी उपभोक्ता अब भी आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहे हैं, इस भरोसे के साथ कि अर्थव्यवस्था मजबूती दिखाएगी।

आगे बढ़ते हुए, यह देखना दिलचस्प रहेगा कि कौन से फैसले आम लोगों की जेब और रोजमर्रा की जिंदगी को और बेहतर बनाएंगे। अमेरिकी बाजार में बदलाव की यह लहर नए मौके और नई रणनीतियां तलाशने का इशारा देती है। पढ़ने के लिए धन्यवाद—अपने विचार जरूर साझा करें और आगे की ताज़ा आर्थिक खबरों के लिए हमारे साथ जुड़े रहें।

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