SCO शिखर सम्मेलन 2025: भारत-रूस ऊर्जा समझौता, मोदी-पुतिन वार्ता और यूक्रेन पर चर्चा
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!SCO शिखर सम्मेलन 2025: भारत-रूस ऊर्जा समझौते, मोदी-पुतिन मुलाकात और यूक्रेन कूटनीति (मुख्य बातें और आगे की दिशा)
1 सितंबर 2025 को तियानजिन में SCO शिखर सम्मेलन का माहौल बदला हुआ था। मोदी और पुतिन की द्विपक्षीय मुलाकात पर सबकी नजरें टिकी थीं, खासकर जब बात भारत-रूस ऊर्जा सहयोग और यूक्रेन संकट के हल की हो। दोनों नेताओं ने बैठक के दौरान द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को “विशेष” बताते हुए, वैश्विक स्थिरता और शांति में सहयोग की जरूरत को उजागर किया। मोदी ने ज़ोर देकर कहा कि भारत, रूस के साथ ऊर्जा क्षेत्र में गहरे सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है और यूक्रेन में शांतिवार्ता के प्रयासों का समर्थन करता है।
पुतिन ने पश्चिम पर यूक्रेन युद्ध की ज़िम्मेदारी डालते हुए, भारत और चीन की मध्यस्थता को सराहा। SCO घोषणा में आतंकवाद के खिलाफ कड़ी भाषा, अफगानिस्तान में समावेशी सरकार की जरूरत और मानवाधिकार संकटों पर चिंता जाहिर की गई। इन अहम मुद्दों और उद्धरणों को समझना आज के क्षेत्रीय और वैश्विक संतुलन को जानने के लिए जरूरी है। इसी संदर्भ में, भारत की भूमिका, ऊर्जा सहयोग और SCO के सदस्य देशों के साझा हित चर्चा के केंद्र में रहे।
YouTube वीडियो: SCO Summit 2025: President Putin To Discuss Ukraine With Turkiye’s Erdogan | WION
भारत-रशिया ऊर्जा सहयोग की मुख्य बातें
भारत और रूस की ऊर्जा साझेदारी बीते वर्षों में लगातार मजबूत हुई है। मौजूदा वैश्विक भू-राजनीतिक हालात, पश्चिमी प्रतिबंधों, और नई आपूर्ति शृंखलाओं के चलते दोनों देश अपने रिश्तों को नई दिशा दे रहे हैं। यहां हम इस सहयोग की मौजूदा तस्वीर, चुनौतियां और भविष्य की योजनाओं पर विस्तार से नज़र डालेंगे।
ऊर्जा व्यापार की वर्तमान स्थिति: रशिया से आयातित तेल और गैस की मात्रा, भारत के भुगतान संरचनाएं, और US टैरिफ का प्रभाव
भारत आज रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल आयात कर रहा है। 2022 के बाद से रूस, भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। भारतीय रिफाइनरियां, खासतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां, रियायती दरों पर तेल खरीदने में रूचि दिखा रही हैं। मासिक आंकड़े देखें तो 2024 के मध्य में भारत कुल आयात का 35 फीसदी तक कच्चा तेल रूस से खरीद रहा था। गैस के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ रहा है लेकिन उसका स्तर फिलहाल तेल जितना नहीं है।
भुगतान संरचनाओं की बात करें तो, कई बार अमेरिकी डॉलर आधारित भुगतान पर पाबंदियां व प्रतिबंध आड़े आ रहे हैं। भारत और रूस ने इस चुनौती का हल निकालने के लिए रुपये-रूबल ट्रांजैक्शन, और भारतीय बैंकों के माध्यम से भुगतान जैसे मॉडल अपनाए हैं।
अमेरिका द्वारा हाल ही में लगाए गए टैरिफ ने भारतीय ऊर्जा कारोबार पर असर डाला है। जैसे The Federal की रिपोर्ट बताती है, 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगने से न केवल तेल की लागत बढ़ी है बल्कि भारत की आपूर्ति चेन में भी अस्थिरता आई है। दूसरी तरफ, लाइव हिंदुस्तान के मुताबिक, भारत को रूस से सस्ता तेल मिलने का सालाना शुद्ध लाभ तकरीबन 2.5 अरब डॉलर है, जो पिछले अनुमानों से कम जरूर है लेकिन अब भी रणनीतिक रूप से अहम है।
ऊर्जा सुरक्षा और आपूर्ति श्रृंखला: सप्लाई चेन में विविधीकरण, वैकल्पिक रूट्स, और भारत की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति
तेल और गैस के क्षेत्र में भारत की प्राथमिक चिंता ऊर्जा सुरक्षा और आपूर्ति शृंखला की स्थिरता है। रूस से आयात के बावजूद भारत अपने सप्लायर बेस में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है, ताकि किसी एक देश पर निर्भरता घातक न हो।
चलिए देखें भारत की मौजूदा रणनीति के मुख्य बिंदु:
- बहुस्तरीय फ्यूल सप्लाई चेन: भारत पश्चिम एशिया, अफ्रीका और रूस से कच्चा तेल मंगवाता है। इससे सप्लाई बाधित होने की स्थिति में alternate routes खुले रहते हैं।
- लीक्विड नेचुरल गैस (LNG) टर्मिनल्स का विस्तार: समुद्री रास्तों से विविध स्रोतों से आयात को बढ़ावा देने के लिए भारत ने कई नए LNG टर्मिनल्स लॉन्च किए हैं।
- ऊर्जा सुरक्षित भंडारण: भारत ने रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व्स की स्थापना की है, जिससे अचानक आयात में रुकावट के दौरान देश का भंडारण मजबूत है।
- भविष्य के लिए हरित ऊर्जा: रूस के साथ हाइड्रोजन, न्यूक्लियर पावर और हरित ऊर्जा तकनीक पर भी साझेदारी बढ़ाई जा रही है।
इन कवायदों से भारत जहां रूस पर खास संबंध गहरा रहा है, वहीं दूसरे विकल्प भी खुले रखता है।
भविष्य के अनुबंध और निवेश: आगामी अनुबंध, संयुक्त प्रोजेक्ट, और दोनों पक्षों के निवेश के अवसर
कई प्रमुख अनुबंध और परियोजनाएँ दोनों देशों में पाइपलाइन में हैं। 2025 तक भारत और रूस के बीच ऊर्जा क्षेत्र में 10 अरब डॉलर से अधिक के निवेश समझौते संभावित हैं। इनमें कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति बढ़ाने, LNG संयंत्र स्थापना, और न्यूक्लियर पावर परियोजनाएँ शामिल हैं।
- रूसी कंपनियों का भारत में निवेश: रूस की सबसे बड़ी एनर्जी कंपनियां, जैसे रोसनेफ्ट, पहले ही भारत में रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्ट्स में हिस्सेदारी ले चुकी हैं।
- भारत की रूसी परियोजनाओं में भागीदारी: भारतीय सार्वजनिक और निजी कंपनियां रूस के यमल, सखालिन और आर्कटिक क्षेत्रों में तेल-गैस एक्सप्लोरेशन प्रोजेक्ट्स में निवेश कर रही हैं।
- मुल्टी-इयर लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट: लंबी अवधि के लिए फिक्स्ड प्राइस एवं फिक्स्ड वॉल्यूम अनुबंध तेजी से किए जा रहे हैं, जिससे सप्लाई स्थिर रहती है।
ये रणनीतिक परियोजनाएं दोनों देशों की ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार और अर्थव्यवस्था को नया आयाम दे रही हैं। आने वाले वर्षों में यह साझेदारी न केवल तेल-गैस तक सीमित रहेगी, बल्कि परमाणु, हाइड्रोजन और हरित ऊर्जा क्षेत्रों में भी फैलेगी।
SCO में भारत की भूमिका
SCO (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन) में भारत की भूमिका समय के साथ तेजी से बढ़ी है। प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार यह जताया है कि भारत इस मंच को सिर्फ एक क्षेत्रीय संगठन नहीं, बल्कि सुरक्षा, कनेक्टिविटी और आर्थिक अवसरों के एक साझा मंच के रूप में देखता है। SCO की नीतियों और रणनीतियों में भारत सक्रिय भागीदारी निभा रहा है। यहाँ जानते हैं भारत के योगदान और नीति के तीन प्रमुख स्तंभों के बारे में।
सुरक्षा पहल और भारत का योगदान: सदस्य देशों के बीच सीमा सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग और भारत के प्रमुख कदमों को दर्शाएं
SCO में सुरक्षा को शीर्ष प्राथमिकता दी जाती है। क्षेत्रीय सीमाओं की रक्षा, चरमपंथ और आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीतियां भारत की नीति में प्रमुख हैं।
- भारत ने RATS (Regional Anti-Terrorist Structure) में सहयोग बढ़ाकर इन्फॉर्मेशन और इंटेलिजेंस शेयरिंग पर ज़ोर दिया है।
- संयुक्त सैन्य अभ्यासों में भारत ने सक्रिय भाग लिया है, जिससे सीमा सुरक्षा और समन्वय में मजबूती आई।
- भारत ने अफगानिस्तान और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आतंकवाद विरोधी ढांचे को वैज्ञानिक आधार देने की वकालत की है।
- साइबर सुरक्षा, ड्रग ट्रैफिकिंग और संगठित अपराध पर घेराबंदी के लिए भारत तकनीकी सहायता और साझा टूलकिट विकसित करने में भी जुटा है।
इस तरह, भारत न सिर्फ अपनी सीमाओं की सुरक्षा बढ़ा रहा है, बल्कि पूरे SCO क्षेत्र की स्थिरता और शांति में ठोस भूमिका निभा रहा है।
कनेक्टिविटी और आर्थिक अवसर: इन्फ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल कनेक्टिविटी, व्यापार corridors और भारत के निवेश योजनाओं को स्पष्ट करें
SCO का असली फायदा तभी निकलता है जब सदस्य देशों के बीच सीधा और प्रभावी संपर्क हो।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर: भारत अंतरराष्ट्रीय ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर्स (जैसे INSTC) में निवेश बढ़ा रहा है, जिससे मध्य एशिया के बाज़ारों तक पहुंच आसान होती है।
- डिजिटल कनेक्टिविटी: ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी योजनाओं से भारत ने साइबर कनेक्टिविटी बढ़ाई है। इससे डिजिटल ट्रांजैक्शन और इंटरकनेक्टेड ई-गवर्नेंस सिस्टम्स में साझेदारी संभव हुई।
- व्यापार Corridors: चाबहार पोर्ट, उत्तर–दक्षिण गलियारा और अश्गाबात समझौते के जरिए भारत ने नए व्यापार मार्ग खुलवाए हैं।
- निवेश योजनाएं: भारत ने SCO देशों में ऊर्जा, आईटी, इनफ्रास्ट्रक्चर, और फूड प्रोसेसिंग में निवेश को मंजूरी दी है, जिससे लाखों लोगों को रोजगार के नए अवसर मिले हैं।
ये प्रयास पूरे क्षेत्र के लिए win-win मॉडल तैयार करते हैं, जहां सिर्फ अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि प्यार और भरोसा भी विकसित होता है।
सुरक्षा, कनेक्टिविटी, अवसर – मोदी की तीन स्तम्भ: इन तीन स्तम्भों को कैसे भारत के विदेश नीति में एकीकृत किया गया है, इसका विश्लेषण प्रदान करें
प्रधानमंत्री मोदी ने SCO के मंच से बार-बार स्पष्ट किया है कि भारत की नीति तीन मुख्य बिंदुओं पर आधारित है: सुरक्षा, कनेक्टिविटी और अवसर।
- सुरक्षा: भारत हर मंच पर सीमा पार आतंकवाद, साइबर खतरों और संगठित अपराध के खिलाफ साझा लड़ाई की बात करता है। यह न सिर्फ SCO के भीतर, बल्कि भारत की व्यापक विदेश नीति में प्राथमिकता है।
- कनेक्टिविटी: ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ और ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी के जरिए भारत भौगोलिक और डिजिटल जुड़ाव को आगे बढ़ा रहा है। देश ने व्यवस्था की है कि हर स्तर पर लोग, बाजार और विचार आपस में जुड़ सके।
- अवसर: भारत ने बिजनेस समिट, शिक्षा, स्वास्थ्य, नवाचार और कौशल विकास के क्षेत्रों में SCO देशों को साझेदारी के बेहतरीन अवसर दिए हैं। इसका फायदा नई पीढ़ी को सीधा मिल रहा है।
इन तीन स्तंभों की झलक प्रधानमंत्री मोदी के हालिया बयान में भी साफ दिखती है। आप PM’s statement during the 25th SCO Summit, Tianjin के माध्यम से विस्तार से पढ़ सकते हैं, जिसमें उन्होंने बताया कि यह स्तंभ न सिर्फ SCO के लिए, बल्कि भारत की विदेश नीति के DNA का हिस्सा हैं।
इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए Amar Ujala की इस रिपोर्ट को भी जरूर देखें, जिसमें सुरक्षा, कनेक्टिविटी, और अवसर के मौजूदा मुद्दों के उदाहरण दिए गए हैं।
भारत की यही स्पषट नीति SCO के भविष्य को दिशा दे रही है।
रशिया‑भारत‑चीन त्रिपक्षीय संबंधों की नई दिशा
भारत, रूस और चीन के बीच रिश्ते हमेशा चर्चा में रहे हैं, लेकिन हालिया SCO शिखर सम्मेलन के बाद इन तीनों के सहयोग को लेकर एक नई गति देखने को मिल रही है। तियानजिन में मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग की मुलाकातों ने साफ कर दिया कि इनके संबंध सिर्फ कूटनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रहने वाले हैं, बल्कि बहुपक्षीयता और एशिया के शक्ति संतुलन में ठोस बदलाव लेकर आ सकते हैं। आइये जानते हैं आखिर ये त्रिपक्षीय समीकरण किस ओर बढ़ रहा है और इसका क्षेत्रीय और वैश्विक असर क्या होगा।
पुतिन और शी की टिप्पणी: उन्हों ने भारत‑रशिया संबंधों को “प्रिय मित्र” कहा और बहुपक्षीय सहयोग के बारे में क्या कहा, इसे उद्धृत करें
रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, दोनों ने अपने संबोधन में भारत के साथ रिश्तों को ‘विशेष’ और ‘प्रिय मित्र’ बताया। तियानजिन बैठक के दौरान पुतिन ने कहा,
“भारत हमारे पुराने साझेदार हैं। आज भी, वैश्विक अस्थिरता और संकीर्ण राजनीति के बीच, रूस-भारत की दोस्ती बहुपक्षीयता और स्थिरता की सबसे सशक्त मिसाल है।”
शी जिनपिंग ने मॉडर्न मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर की पैरवी करते हुए स्पष्ट किया,
“भारत, चीन और रूस को अपने-अपने हित एक साथ साधने चाहिए। बहुपक्षीय सहयोग ही लोकतांत्रिक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की गारंटी देगा।”
उनका बयान था, “दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों को एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि भागीदार मानना चाहिए।” इन विचारों की चर्चा SCMP की रिपोर्ट में विस्तार से की गई है।
दोनों नेताओं ने संयुक्त रूप से यूक्रेन संकट, आतंकवाद और पश्चिमी अर्थव्यवस्था के बहिष्कार के मुद्दे पर एक जैसी राय रखी। उनका कहना था कि वैश्विक तनाव में संतुलन और स्थिरता की सबसे बड़ी उम्मीद इसी त्रिकोणीय दोस्ती से है।
बहुपक्षीय सहयोग का मॉडल: नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, मल्टीपोलरिटी और SCO के माध्यम से सहयोग के मॉडल की चर्चा करें
तीनों देश अब बहुपक्षीय सहयोग के ज़रिए नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाने की बात कर रहे हैं। उनका मानना है कि एशिया-पैसिफिक और यूरेशियन स्पेस में “मल्टीपोलरिटी” ही विकास, शांति और सतत प्रगति का रास्ता है।
SCO इसका बेहतरीन उदाहरण है, जहाँ सदस्य देशों के बीच
- सुरक्षा
- व्यापार
- संस्कृति
की साझेदारी एक संयुक्त एजेंडा पर चलती है, और कोई एक सदस्य अपने आर्थिक या राजनीतिक हितों को थोप नहीं सकता।
इस नई व्यवस्था में,
- आर्थिक निर्भरता साझा होगी,
- तकनीकी नवाचार मिलकर होंगे,
- क्षेत्रीय संकटों के समाधान में एक-बजट, एक-समझौते वाली सोच से आगे बढ़ा जाएगा।
चीनी राष्ट्रपति शी ने रेयटर्स की रिपोर्ट में साफ किया कि एक मजबूत, निष्पक्ष और भागीदारी आधारित SCO पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श मॉडल बन सकता है।
भारत यहां से अपनी आवाज अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने और चीन-रूस के साथ ‘ट्रस्ट से ट्रेड’ का नया समीकरण बना रहा है। ताकतवर पश्चिमी गठबंधन की तुलना में, यह “ईस्टर्न उम्मीद की नई धुरी” बनती दिखती है।
भौगोलिक और रणनीतिक प्रभाव: एशिया‑पैसिफिक में शक्ति संतुलन, सुरक्षा गठबंधन और आर्थिक मार्गों पर संभावित प्रभावों का विश्लेषण दें
रशिया‑भारत‑चीन की नई तिकड़ी, एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के शक्ति संतुलन में बड़ा बदलाव ला सकती है।
- जहाँ पहले अमेरिकी गठबंधन का दबदबा था, अब भारतीय-रूसी-चीनी जुड़ाव से चीन साउथ चाइना सी, रूस यूरोप और भारत इंडो-पैसिफिक में अपना दायरा बढ़ा सकता है।
- सामरिक दृष्टि से, भारत को रूस के डिफेंस सिस्टम्स और चीन के टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म्स का बड़ा फायदा मिलता है।
- वहीं, रूस को भारत के बाजार और चीन के संस्थान मिलते हैं, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को पश्चिमी प्रतिबंधों से कुछ हद तक राहत मिलती है।
आर्थिक रूट्स की बात करें तो,
- नए ट्रेड कॉरिडोर्स (जैसे INSTC, चाबहार-अश्गाबात मार्ग) इस त्रिपक्षीयता का हिस्सा बन चुके हैं।
- ऊर्जा गलियारे, कृषि एक्सपोर्ट्स, आईटी और स्टार्टअप सेक्टर से जुड़े निवेश प्रोजेक्ट्स पहले से ज्यादा तेज गति से लागू हो रहे हैं।
सुरक्षा गठबंधन के तहत,
- जानकारी साझा करने, सीमा पार आतंकवाद पर एक जैसी कार्रवाई और साइबर-सुरक्षा में डेटा साझा करने का मॉडल तेज़ी से अपनाया जा रहा है।
- इससे पर्सिस्टेंट व थ्रेट्स जैसे बॉर्डर हिंसा, सी क्राइम्स और जियोपॉलिटिकल संकटों पर बेहतर नियंत्रण बन सकता है।
इन सबका असर इतना गहरा है कि अब यह त्रिपक्षीय प्रयोग पश्चिमी वर्ल्ड ऑर्डर के एक विकल्प के रूप में उभर सकता है। इससे जुड़े ताज़ा अपडेट के लिए CNN की SCO समिट रिपोर्ट देखी जा सकती है।
संक्षेप में, शक्ति संतुलन, सुरक्षा और आर्थिक पारदर्शिता के इस ब्लॉक से न सिर्फ एशिया, बल्कि पूरी दुनिया के लिए नई संभावनाएं खुलती दिखाई दे रही हैं।
निष्कर्ष
SCO शिखर सम्मेलन 2025 में भारत‑रूस ऊर्जा सहयोग, सुरक्षा साझेदारी और त्रिपक्षीय रिश्तों की मजबूत नींव सामने आई। मोदी‑पुतिन की मुलाकात ने ऊर्जा व्यापार, रणनीतिक साझेदारी और यूक्रेन कूटनीति को आगे बढ़ाने का इशारा दिया है। सदस्य देशों की एकजुटता से आतंकवाद का मुकाबला, व्यापार और आपूर्ति चेन का विस्तार, और नई वैश्विक व्यवस्था की तलाश तेज हो गई है।
यूक्रेन मुद्दे पर बातचीत और शांति प्रयासों के साथ अब भारत, रशिया और चीन का यह गठबंधन एशिया के शक्ति संतुलन की तस्वीर बदल सकता है। ऊर्जा और आर्थिक समाधान से आगे बढ़कर, भारत ने SCO के मंच पर स्थिरता और विकास के स्पष्ट संकेत दिए हैं।
क्षेत्रीय सहयोग, नया निवेश और साझा हितों के चलते अगला दशक भारत‑रशिया‑चीन साझेदारी के लिए निर्णायक हो सकता है। आप भी बताएं, इतने बड़े बदलाव में भारत को अब कौन-सी नई भूमिका अपनानी चाहिए? पढ़ने के लिए धन्यवाद, अपने विचार ज़रूर साझा करें।
