अमेरिकी अदालत का ट्रम्प टैरिफ पर फैसला: व्यापार, बजट, विदेश नीति पर 2025 का ताजा असर
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!ट्रम्प टैरिफ विवाद: अमेरिकी अदालत के फैसले का व्यापार, बजट और विदेश नीति पर गहरा असर (2025 अपडेट)
पिछले हफ्ते अमेरिकी फेडरल अपील कोर्ट ने ट्रम्प प्रशासन की अधिकतर वैश्विक टैरिफ नीतियों को अवैध करार दिया है। इस फैसले की जड़ें ‘IEEPA’ कानून तक जाती हैं, जिसके तहत राष्ट्रपति ने आपातकाल के नाम पर करोडों डॉलर के टैरिफ लागू कर दिए थे। कोर्ट ने साफ कहा है कि कर लगाने की असली शक्ति सिर्फ कांग्रेस के पास है, राष्ट्रपति के नहीं।
यह मामला सिर्फ एक कानूनी विवाद नहीं है। यह अमेरिकी व्यापार नीति, बजट और वैश्विक रिश्तों की दिशा तय करेगा। फैसले के बाद विश्व अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव बड़े स्तर पर महसूस हो सकता है, और अमेरिका के आगे भी कई चुनौतियां हैं। इस पोस्ट में जानेंगे टैरिफ विवाद की पृष्ठभूमि, कोर्ट के तर्क, और इसका सीधा असर आम व्यापार, निवेश और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर कैसे पड़ेगा।
YouTube वीडियो – Appeals court rules most of Pres. Trump’s tariffs are not legal
कोर्ट का फैसला और उसका कानूनी आधार
अमेरिकी अदालत के इस नए फैसले ने सिर्फ टैरिफ नीति को नहीं, बल्कि राष्ट्रपति की शक्ति और संविधान की मौलिक धाराओं को भी केंद्र में ला दिया है। यहाँ, हम देखेंगे कि अदालत ने IEEPA कानून को कैसे देखा, राष्ट्रपति की शक्तियों की क्या सीमा मानी, और संविधान ने टैक्स और टैरिफ पर क्या भूमिका दी है।
IEEPA का सार और राष्ट्रपति की सीमा
IEEPA (International Emergency Economic Powers Act) को 1977 में लागू किया गया था। इसका मकसद था, सरकार को राष्ट्रीय आपातकाल जैसे हालात में ‘विदेशी आर्थिक लेन-देन’ को नियंत्रित करने की कानूनी शक्ति देना। लेकिन यह कानूनी शक्ति अनंत नहीं है।
- IEEPA के तहत राष्ट्रपति: राष्ट्रपति विशेष आपातकाल में विदेशी कारोबार, निवेश या आयात-निर्यात पर रोक या नियंत्रण लगा सकते हैं। इसका मकसद देश की सुरक्षा को बचाना है, न कि आम व्यापार मुकदमा चलाना।
- सीमा निर्धारित: अदालत ने साफ कहा कि IEEPA संविधान के नियमों से बड़ा नहीं है। राष्ट्रपति के फैसले उन सीमाओं में रहकर ही लिए जा सकते हैं, जिन्हें संविधान और खुद IEEPA ने तय किया है।
- कोर्ट की राय: 7-4 के फैसले में अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति जब व्यापार या टैरिफ जैसी आर्थिक शक्ति का इस्तेमाल करते हैं तो उन पर IEEPA की स्पष्ट सीमाएँ लागू होती हैं। आपातकाल का मतलब यह नहीं कि सारी संसद की शक्तियाँ राष्ट्रपति को मिल गईं।
इस फैसले का मूल संदेश है कि कानून में जितना अधिकार लिखा है, उतना ही मान्य है। इस मामले ने साफ दिखाया कि ‘आपातकाल’ कोई खुला चेक नहीं है। राष्ट्रपति कॉंग्रेस के तय ढाँचे के बिना अतिरिक्त कर या टैरिफ लागू नहीं कर सकते।
संविधान में टैरिफ अधिकार
अमेरिकी संविधान का अनुच्छेद I, धारा 8 कांग्रेस को टैक्स, शुल्क और टैरिफ लगाने का अधिकार देता है। राष्ट्रपति के पास यह शक्ति नहीं है, बल्कि वे सिर्फ लागू कर सकते हैं, जैसा कि संसद तय करे।
- संविधान के शब्द: अनुच्छेद I, धारा 8 साफ कहता है, “कांग्रेस को टैक्स, शुल्क, एक्साइज और कर लगाने का अधिकार होगा…”। इसी आधार पर अदालत ने कहा, “कर और टैरिफों पर अंतिम फैसला केवल कांग्रेस ही ले सकती है, न कि कार्यपालिका।”
- कोर्ट की हिदायत: कोर्ट ने अपने फैसले में दोहराया कि जब तक कांग्रेस राष्ट्रपति को कोई विशेष शक्ति न सौंपे, तब तक राष्ट्रपति आर्थिक प्रतिबंध या टैरिफ लागू नहीं कर सकते।
यह फैसला संविधान की भावना की रक्षा करता है, जिसमें अलग-अलग शक्तियों का संतुलन बहुत जरूरी है। जैसा कि अदालत ने खुद कहा, असंतुलन की स्थिति में लोकतंत्र कमजोर होता है।
संक्षेप में, यह फैसला अमेरिकी व्यवस्था के बुनियादी उसूल पर लौट आया है—संसद ही कानून बनाती है और राष्ट्रपति उन्हीं सीमाओं के भीतर कदम उठा सकते हैं।
ट्रम्प के प्रमुख टैरिफ की विस्तृत जानकारी
साल 2025 में कोर्ट के नए फैसले के बाद ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ फिर चर्चा में हैं। जिन दो टैरिफों ने सबसे ज्यादा हलचल मचाई, वे हैं रेसिप्रोकल टैरिफ और ट्रैफिकिंग टैरिफ। इनकी दरें, दायरा, और न्यायिक बहसें न सिर्फ व्यापार जगत बल्कि आम उपभोक्ताओं और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों तक असर डालती हैं। आगे इन्हीं दोनों टैरिफ के अहम पहलुओं पर फोकस किया गया है।
रेसिप्रोकल टैरिफ: लगभग सभी देशों और आयातित वस्तुओं पर असर
रेसिप्रोकल टैरिफ सीधे-सीधे अमेरिका के वैश्विक व्यापार मॉडल को चुनौती थी। इसे राष्ट्रपति ट्रम्प ने 2 अप्रैल 2025 को “लिबरेशन डे” कहते हुए लागू किया। इस टैरिफ का मकसद था, वे देश जो अमेरिकी सामानों पर ऊँचे टैरिफ लगाते हैं, उन पर अमेरिका भी वैसी ही दरें लागू करे। यह नीति करीब-करीब सभी देशों और लगभग सभी कैटेगरी की आयातित वस्तुओं पर लागू थी।
- अधिसूचना और दरें: अधिकांश वस्तुओं पर टैरिफ दर तत्काल 10% से 50% तक रखी गईं। कुछ क्षेत्रों जैसे ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स पर उच्चतम दरें उपयोग में आईं।
- घोषणा व समय: राष्ट्रपति ने एक्जीक्यूटिव ऑर्डर 14257 जारी किया, जिसमें स्पष्ट रूप से रेसिप्रोकल टैरिफ के नियम बताए गए। इसकी घोषणा होते ही ट्रेड मार्केट्स में भूकंप सा आया और कई देशों ने तुरंत जवाबी कार्रवाई की रणनीति बनाई।
- विवाद और बहस:
- व्यापार जगत में यह नीति तुरंत विवादित बन गई क्योंकि कई देशों के साथ सौदेबाज़ी पर असर पड़ा।
- आयात महंगा होने से खुदरा व्यापारी और आम ग्राहक दोनों परेशान हुए।
- अदालत ने पाया कि इस टैरिफ का आकार और अभिप्राय संसद की वास्तविक मंजूरी के बिना कानून का उल्लंघन है।
- प्रमुख विदेशी व्यापारिक संगठन और अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इसे “सरल व्यापारिक नियमों का उल्लंघन” कहा।
नीचे सारांशित तालिका से प्रमुख पहलू स्पष्ट होते हैं:
| क्षेत्र | टैरिफ की दर | लागू देश | असर |
|---|---|---|---|
| ऑटोमोबाइल | 40%–50% | यूरोप, जापान | महंगी कारें |
| टेक्सटाइल | 25%–30% | चीन, भारत | ऊँचे दाम |
| इलेक्ट्रॉनिक्स | 15%–25% | एशिया | सप्लाई चेन धीमी |
संपूर्ण जानकारी के लिए Trump 2.0 टैरिफ ट्रैकर रिपोर्ट ने वैश्विक प्रतिक्रियाओं और कोर्ट में उठे प्रमुख सवालों को भी शामिल किया है।
ट्रैफिकिंग टैरिफ: तस्करी के विरोध में चुनींदा देशों पर वार
2025 के वसंत में ट्रम्प ने कनाडा, मेक्सिको और चीन से होने वाली फेंटेनिल तस्करी रोकने के नाम पर एक नया टैरिफ लागू किया। इसका लक्ष्य था दवाओं और उनसे जुड़े प्रोडक्ट्स की अवैध आवाजाही पर सख्ती बरतना। इस टैरिफ का क्षेत्रीय दायरा सीमित था, लेकिन आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव गहरा था।
- लक्ष्य और अवधि: यह टैरिफ तत्काल ही लागू हो गया, परंतु इसका दायरा कुछ उत्पादों और कुछ चुनींदा देशों तक सीमित रहा। खासतौर पर दवाइयों, केमिकल्स, और उनसे जुड़े रॉ मटेरियल्स पर 20%–35% तक अतिरिक्त टैक्स लगाया गया।
- कोर्ट की “असीमित” टिप्पणी: अमेरिकी अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह टैरिफ “असीमित” है, क्योंकि इसके पीछे राष्ट्रपति की सीमा स्पष्ट नहीं थी। कोर्ट के फैसले में यह कहा गया कि IEEPA के तहत ऐसी बड़ा टैरिफ बिना स्पष्ट संसदीय मंजूरी के लगाया जाना संविधान के विपरीत है।
- आर्थिक असर:
- सीमावर्ती सप्लाई चेन में देरी और लागत में उछाल।
- कनाडा और मैक्सिको जैसे साझीदार देशों के साथ तनाव।
- चीन ने अमेरिका के फैसले पर विरोध जताया और संयुक्त राष्ट्र में आवाज़ उठाई।
इस फैसले के बाद, उच्च न्यायालय में भी मामला गया और सरकार ने इस टैरिफ की वैधता को “राष्ट्रीय सुरक्षा” के नाम पर न्यायसंगत बताया, लेकिन अदालतें सहमत नहीं दिखीं। पूरी प्रक्रिया ने व्यापारिक माहौल में अनिश्चितता बढ़ा दी और कंपनियों की रणनीति को प्रभावित किया।
दोनों टैरिफ मॉडल ने केवल व्यापार नीति नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संतुलन, अंतरराष्ट्रीय रिश्ते और अर्थव्यवस्था की सेहत पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
कानूनी चुनौती और मुख्य तर्क
अदालत तक पहुंचने वाला यह विवाद सिर्फ व्यापार या राष्ट्रपति की नीति तक सीमित नहीं रहा। इसने कई राज्य सरकारों, सैकड़ों छोटे व्यवसायों और लंबी न्यायिक प्रक्रिया के रास्ते पर नया इतिहास रच दिया। आईए देखते हैं किस तरह अलग-अलग पक्षों ने अपनी-अपनी मजबूत दलीलें कोर्ट में रखीं और ट्रम्प प्रशासन ने IEEPA (International Emergency Economic Powers Act) के तहत अपने टैरिफ को न्यायोचित ठहराने की कोशिश की, और कोर्ट ने उनके तर्कों पर क्या फैसला दिया।
राज्य और छोटे व्यवसायों की शिकायतें: दायर किए गए दो अलग‑अलग मुकदमों, उनकी संयुक्त प्रकृति, और न्यायालय में प्रस्तुत मुख्य कानूनी तर्कों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करें
ट्रम्प के टैरिफ लागू होते ही कई राज्यों और हजारों छोटे व्यवसायों ने वित्तीय दबाव महसूस किया। न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया और इलिनॉय जैसे व्यापारिक केंद्रों ने सबसे पहले आवाज उठाई। इन राज्यों की सरकारों ने कोर्ट में दो मुख्य मुकदमे दायर किए। एक में राज्य सरकारें वाणिज्य पर प्रतिकूल असर का हवाला दे रही थीं, दूसरे मुकदमे में छोटे व्यवसायों की ओर से आर्थिक नुकसान, अनिश्चितता और “टैरिफ रिफंड” के सवाल उठाए गए।
- राज्य सरकारों की दलीलें:
- टैरिफ से व्यापार और रोज़गार पर सीधा असर।
- सचेत किया कि अरबों डॉलर की कीमत वाले निर्यात-आयात समझौते रुक गए हैं।
- संविधान के अनुच्छेद I, धारा 8 का हवाला— केवल कांग्रेस को टैक्स और टैरिफ लगाने का अधिकार है।
- व्यवसायों की शिकायतें:
- सप्लाई चेन में अवरोध, लागत का उछाल, बाज़ार में अस्थिरता।
- छोटे कारोबारियों के लिए अचानक बढ़े टैक्स से संचालन असंभव।
- कई व्यापार संगठनों ने टैक्स की “वसूली वापसी” यानी रिफंड की मांग की।
दोनों मुकदमों को बाद में एक ही सुनवाई में शामिल करते हुए मामलों को “इन री युनाइटेड स्टेट्स टैरिफ लिटिगेशन” नाम दिया गया। कोर्ट में मुख्य कानूनी तर्क था कि IEEPA में “टैरिफ” शब्द और प्रक्रिया कहीं उल्लेखित नहीं, और इतने व्यापक फाइनेंशियल फैसलों के लिए कांग्रेस की स्पष्ट मंजूरी जरूरी थी।
फैसले में अदालत ने माना कि “टैरिफ लगाने की शक्ति हमेशा से कांग्रेस के दायरे में रही है—इसे आपातकाल कहकर भी कार्यपालिका को नहीं दिया जा सकता।” अधिक जानकारी यहाँ देखें।
प्रशासन का बचाव और राष्ट्रीय आपातकाल का दावा: ट्रम्प की टीम ने IEEPA के तहत आपातकाल के आधार पर टैरिफ को वैध बताया। उनका तर्क, उपयोग किए गए प्रमाण और कोर्ट ने इन तर्कों को क्यों खारिज किया, इसे स्पष्ट करें।
ट्रम्प प्रशासन ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि IEEPA के तहत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल में विदेशों के साथ आर्थिक संबंधों को रोकने और सीमित करने का “पूर्ण अधिकार” है। ट्रम्प की कानूनी टीम ने तर्क दिया कि
- अमेरिका की आर्थिक सुरक्षा खतरे में है
- फेंटेनिल तस्करी, तकनीकी चोरी व व्यापार असंतुलन पर त्वरित नियंत्रण जरूरी था
- टैरिफ से सरकारी राजस्व में बड़ा इज़ाफा हुआ, जिससे बजट घाटा नियंत्रित हुआ
प्रशासन के वकीलों ने सरकारी रिपोर्टें और “नैशनल इमरजेंसी” नोटिफिकेशन पेश किए। उनका दावा था—राष्ट्रपति ने देशहित में IEEPA के तहत कदम उठाए, जो कार्यपालिका का संवैधानिक अधिकार माना जाना चाहिए।
कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज क्यों किया?
- अदालत ने देखा कि IEEPA में “टैरिफ” या “टैक्स” लगाने की सीधी अनुमति नहीं दी गई।
- फैसले में स्पष्ट कहा गया कि इतने बड़े फैसले के लिए “मेजर क्वेश्चन डॉक्ट्रिन” लागू होगी, यानी संसद (कांग्रेस) से स्पष्ट मंजूरी जरूरी है।
- 7-4 बहुमत से कोर्ट ने माना कि आपातकाल के नाम पर राष्ट्रपति की शक्तियां “अनियमित और अनंत” नहीं हो सकतीं।
यह भी सामने आया कि IEEPA की जो मूल भावना थी, वह विदेश नीति और आर्थिक प्रतिबंध तक सीमित थी, न कि रोजमर्रा के व्यापार को पुनर्परिभाषित करने तक। अदालत ने अपने फैसले में विस्तार से लिखा कि “IEEPA टैक्स अथॉरिटी का कानून नहीं है”। प्रशासन के दावों को कमजोर मानते हुए अदालत ने रोक जारी रखी और दो टूक कह दिया—अमेरिका में टैक्सिंग पॉवर का अंतिम केंद्र हमेशा कांग्रेस ही रहेगी।
राज्यों और छोटे कारोबारियों की जीत का यह निर्णय अब उच्चतम न्यायालय के सामने अंतिम चुनौती बनकर खड़ा है। परिणाम चाहे जो हो, इस पूरे मामले ने पावर के बैलेंस, अर्थव्यवस्था की दिशा और व्यापार जगत की उम्मीदों को नया रास्ता दिखाया है।
निर्णय के संभावित प्रभाव
टैरिफ नीति पर कोर्ट के इस निर्णायक फैसले से अमेरिकी अर्थव्यवस्था, बजट और विदेश नीति पर गहरे और कई स्तर के असर देखने को मिल सकते हैं। एक तरफ जहां बजट विभागों और वित्त मंत्रालय की रिपोर्टों में भारी राजस्व की बात कही गई, वहीं दूसरी तरफ देश के कारोबारी माहौल और वैश्विक साझीदारों की प्रतिक्रिया, अमेरिका के भविष्य की नीतियों को नया मोड़ दे सकती है। चलिए, देखते हैं किन-किन दिशाओं में यह निर्णय असर दिखा सकता है।
आर्थिक प्रभाव और बजट अनुमान: टैरिफ के राजस्व, CBO की भविष्यवाणी, और टैरिफ हटने से संभावित घाटा वृद्धि
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प की टैरिफ नीति, 2025 में लागू मूल दरों के साथ, सरकारी खजाने के लिए खासा मजबूत सहारा बन चुकी थी। कांग्रेसनल बजट ऑफिस (CBO) के अनुमान के अनुसार, 2025 से 2035 के बीच टैरिफ से राजस्व संग्रह और बजट घाटा में जबरदस्त अंतर देखने को मिला।
- CBO का अनुमान:
- टैरिफ से संभावित बजट घाटा कमी: $3.3 ट्रिलियन
- ब्याज लागत में अतिरिक्त कमी: $0.7 ट्रिलियन
- कुल बजटीय लाभ: $4 ट्रिलियन (2025–2035 के दशक में)
- ताजा राजस्व आँकड़े:
- अगस्त 2025 तक टैरिफ से हुई कमाई: $156 बिलियन
- पूरे साल का अनुमान: $300 बिलियन
- औसत प्रभावी टैरिफ दर: 18%
नीचे सारांशित तालिका दिखाती है कि टैरिफ हटने पर बजटीय असर कितना गहरा हो सकता है:
| अनुमान | टैरिफ लागू | टैरिफ हटने पर |
|---|---|---|
| बजट घाटा (2035 तक) | -$4 ट्रिलियन | +$4 ट्रिलियन |
| वार्षिक राजस्व | $300 बिलियन | $0 (टैरिफ हटने पर) |
CBO के मुताबिक, अगर ये टैरिफ अचानक हट जाते हैं, तो संघीय घाटा फिर तेज़ी से बढ़ सकता है। ओवरऑल प्रभाव, “One Big Beautiful Bill” जैसे महंगे घरेलू कानूनों की लागत को कवर करने में ये टैरिफ बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। CBO के ताज़ा बजट विश्लेषण में साफ बताया गया है कि मौजूदा टैरिफ हटते ही अमेरिका की वित्तीय स्थिति में एकदम बड़ा बदलाव आ सकता है।
विदेशी व्यापार और कूटनीति पर असर: टैरिफ हटने से संभावित व्यापार भागीदारों की प्रतिक्रिया, समझौते का पुनःविचार, और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पर संभावित प्रभाव
कोर्ट का यह फैसला सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि उसके प्रमुख वैश्विक व्यापारिक साझीदारों के लिए भी बड़ा संकेत है।
टैरिफ हटने की संभावना को लेकर, यूरोपीय संघ, जापान, चीन और अन्य देशों में नई वार्ताओं और रणनीतियों की तैयारी शुरू हो गई है।
- व्यापारिक प्रतिक्रिया:
- प्रमुख साझीदारों (यूरोप, जापान, कोरिया, मेक्सिको) ने तुरंत अंतरराष्ट्रीय समझौतों के पुनःमूल्यांकन और संभावित जवाबी कार्रवाई का संकेत दिया।
- “रिसिप्रोकल टैरिफ समझौतों” के कई बहुपक्षीय फैसलों पर अब संशय की स्थिति है। POLITICO की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संघ और एशियाई मित्र राष्ट्र इन समझौतों पर पुनर्विचार के लिए तैयारी कर रहे हैं।
- कूटनीतिक असर:
- कोर्ट का फैसला अमेरिका की “नेगोशिएटिंग पावर” को कम कर सकता है।
- चीन का विरोध पहले से ही मुखर रहा, इस फैसले के बाद वह WTO के जरिए नई शिकायतें दर्ज करा सकता है।
- मैक्सिको और कनाडा के साथ सीमा-पार सप्लाई चेन पर बने दबाव को हटाना मुश्किल हो सकता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर:
- राष्ट्रपति और ट्रम्प प्रशासन के मुताबिक, टैरिफ रणनीति का एक बड़ा हिस्सा “राष्ट्रीय सुरक्षा” की चिंता से जुड़ा था।
- कोर्ट के अनुसार IEEPA का उपयोग कर के लंबे समय तक व्यापारीक टैरिफ लगाना राष्ट्रहित के नाम पर भी कानूनन उचित नहीं।
- इससे अमेरिका की फेंटेनिल और संवेदनशील तकनीक की सुरक्षा नीति को झटका लग सकता है।
आगे आने वाले महीनों में, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, कारोबारी सौदे और विदेश नीति की दिशा बदल सकती है। अमेरिकी प्रशासन तथा कांग्रेस को अब बेहद सतर्क होकर कायदे-कानून और आर्थिक फायदे को संतुलित करना होगा।
पूरी कहानी के और गहरे संदर्भ सीएनबीसी की इस विशेष रिपोर्ट में पढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष
ट्रम्प के वैश्विक टैरिफ पर अदालत का फैसला, अमेरिकी व्यापार नीति और राष्ट्रपति की शक्तियों के संतुलन की असल तस्वीर सामने लाता है। कोर्ट ने साफ किया कि IEEPA के तहत दी गई शक्तियाँ सीमित हैं और संसद की मंजूरी के बिना इतने बड़े टैरिफ लागू नहीं किए जा सकते। इसके बाद नया टकराव अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर है, जहाँ यह लड़ाई और लंबी खिंच सकती है।
इस फैसले ने देश में लोकतंत्र की मजबूती, कानूनी प्रक्रियाओं की अहमियत और व्यापारिक भविष्य को लेकर बड़ा संदेश दिया है। अमेरिकी शासन को मजबूर कर दिया गया है कि वह नीति निर्माण और आर्थिक फैसलों में पारदर्शिता और संतुलन बनाए रखे। आगे, सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई सिर्फ व्यापार पर नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों और शक्ति के संतुलन पर भी असर डालेगी।
अब सभी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की ओर हैं, जहाँ से दिखेगा कि अमेरिकी नीति का अगला सफर किस दिशा में जाएगा। आपका नजरिया इस मसले पर क्या है? अपनी राय साझा करें और इस कानूनी मुकाबले के अगले अध्याय का इंतजार कीजिए।
आपका साथ और समय के लिए धन्यवाद।
