भारत में युवा आंदोलन 2025: नई पीढ़ी कैसे बदल रही है स्थानीय सरकार, ताज़ा उदाहरण
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Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!भारत में युवा आंदोलन: कैसे नई पीढ़ी स्थानीय सरकार को बदल रही है (2025 के ताज़ा उदाहरणों सहित)
भारत की युवा आबादी आज के समय में सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है। देश की करीब 70% जनसंख्या 35 साल से कम उम्र की है, और लगभग हर तीसरा व्यक्ति 18 साल से छोटा है। यह आंकड़ा ही दिखाता है कि जितनी युवा शक्ति भारत में है, उतनी शायद ही किसी और देश में मिले।
आज के युवा आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया या सड़कों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि स्थानीय सरकारों में भी उनकी भागीदारी बढ़ रही है। कई जगहों पर बच्चों की विधानसभा, बाल संसद जैसी पहलें युवाओं को निर्णय प्रक्रिया और अपने काम की जवाबदेही का असली अनुभव दे रही हैं। इससे न सिर्फ वे छोटी समस्याओं की पहचान करना सीख रहे हैं, बल्कि खुद ही उसके समाधान की राह भी तलाश रहे हैं।
इन भागीदारीपूर्ण प्रयासों की वजह से स्थानीय संस्थाएं ज्यादा जवाबदेह और पारदर्शी बन रही हैं। साथ ही, युवाओं का आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है क्योंकि अब उनकी आवाज को वाकई अहमियत मिल रही है। भारत के युवा अब नीतियों और योजनाओं के केंद्र में हैं और उनके सुझावों पर सीधे अमल हो रहा है। यही नई सोच और ऊर्जा आगे चलकर भारत के विकास को दिशा देगी।
युवा आंदोलन की उत्पत्ति और विकास

भारतीय युवा पीढ़ी हमेशा से बदलाव की ताकत रही है। चाहे बात 20वीं सदी की आज़ादी की लड़ाई की हो या आज के सोशल मीडिया अभियानों की, युवाओं ने हर समय नई सोच, ऊर्जा और साहस के साथ भागीदारी निभाई है। यह यात्रा प्री-स्वतंत्रता आंदोलन से शुरू होकर आज के डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तक पहुंची है। आइए जानते हैं, किस तरह युवाओं की सक्रियता में समय के साथ बदलाव आया है और उन्होंने समाज और सरकार को लगातार नई दिशा दी है।
प्री-स्वतंत्रता काल में युवा सक्रियता: स्वतंत्रता संग्राम में छात्र और युवा संगठनों की भूमिका, प्रमुख घटनाएँ और परिणाम
भारत की आज़ादी की लड़ाई में छात्रों और युवाओं ने जानदार भूमिका निभाई। 1920 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा कई युवा और छात्र संगठनों का गठन हुआ, जिन्होंने आज़ादी की आवाज़ को हर गली और मोहल्ले तक पहुंचाया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के युवक-युवतियों ने विदेशी वस्त्र बहिष्कार, असहयोग आंदोलन, स्वदेशी की अपील और नमक सत्याग्रह जैसे अभियानों में अग्रणी भाग लिया।
- महत्वपूर्ण छात्र संगठन: ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (AISF), 1936 में बनी देश की पहली छात्र संघ थी। इसने हर आंदोलन में भागीदारी दिखाई।
- प्रमुख घटनाएँ: असहयोग आंदोलन (1920), सविनय अवज्ञा (1930), भारत छोड़ो आंदोलन (1942), जिसमें हजारों छात्रों ने जेलें भरीं और अंग्रेज़ी सत्ता के खिलाफ प्रदर्शन किए।
- परिणाम: युवाओं की राजनीतिक समझ और देशप्रेम का स्तर बेहद बढ़ा, और अंग्रेज़ सरकार को दमनकारी कानून बनाकर इन्हें रोकना पड़ा। इन आंदोलनों का ताज़ा इतिहास Indian independence movement और विस्तृत जानकारी History Of Student Movement In India (1920-1947) में देखी जा सकती है।
स्वतंत्रता के बाद सामाजिक परिवर्तन में भूमिका: 1950‑1970 के दशक में छात्र आंदोलन, सामाजिक न्याय और अधिकारों के लिए अभियानों का उल्लेख
आजादी के बाद युवाओं की ऊर्जा केवल राजनीति तक सीमित नहीं रही। 1950 से 1970 के दशक के बीच देश में शिक्षा, रोजगार, समाजिक न्याय और अधिकारों के लिए बड़े-बड़े छात्र आंदोलन हुए।
- समाजिक परिवर्तन के अभियान: दलित अधिकार, पिछड़े वर्ग के आरक्षण, महिला शिक्षा, बेरोज़गारी विरोधी आंदोलन, और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान।
- मुख्य छात्र आंदोलन: 1960-70 में बिहार आंदोलन, गुजरात नव निर्माण आंदोलन, पंजाब में भाषाई आंदोलन, अघोषित आपातकाल के खिलाफ छात्र सड़कों पर उतरे।
- परिणाम: युवा वर्ग की वजह से कई राज्यों में सरकार बदली, नीतियों में बदलाव आया और सामाजिक समावेशन को बल मिला। इन वर्षों में छात्र संगठनों का प्रभाव समाज के हर स्तर पर बढ़ गया, जिसे The Undisciplined Youth and a Moral Panic in Independent India में विस्तार से बताया गया है।
21वीं सदी में डिजिटल युग का प्रभाव: सोशल मीडिया, ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और ऐप्स के माध्यम से युवा कैसे स्थानीय मुद्दों को उठाते हैं, इसके उदाहरण
अब जब हर हाथ में स्मार्टफोन है, तब युवा आंदोलन की ताकत और तेज़ हो चुकी है। आज युवा ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक, और वॉट्सऐप जैसे प्लेटफ़ॉर्म से न सिर्फ आवाज़ उठा रहे हैं, बल्कि सरकार को चुनौतियाँ भी दे रहे हैं।
- सोशल मीडिया कैंपेन: हैशटैग #FridaysForFutureIndia, #SaveMollem और #NoMoreDeforestation ऐप और प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुँचे।
- लोकेल मुद्दों पर कार्रवाई: हाल ही में हैदराबाद के छात्रों ने पेड़ कटाई के खिलाफ ऑनलाइन पिटीशन, वॉकआउट, और भूख हड़तालें कीं। नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट को दखल देनी पड़ी और पेड़ काटने पर रोक लगा दी गई। इससे स्पष्ट है कि युवा अब सिर्फ विरोध नहीं करते, प्रशासन को सीधे जवाबदेह भी बनाते हैं।
- इन्नोवेशन व चुनौती: Youth Co:Lab National Innovation Challenge 2024-2025 जैसे कार्यक्रमों में युवा टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप के जरिए समाज में व्यावहारिक बदलाव ला रहे हैं, खासकर दिव्यांग साथियों के लिए।
- पर्यावरण आंदोलन: From Chipko movement to global youth climate movement लेख बताता है कि कैसे बेंगलुरु, गोवा जैसे शहरों के छात्र स्थानीय पर्यावरण के मुद्दों को बड़े स्तर पर उठा रहे हैं।
इस तेजी से बदलती दुनिया में भारतीय युवाओं की पहचान अब सिर्फ आंदोलनों और नारों में ही नहीं, बल्कि प्रौद्योगिकी, नवाचार और स्थानीय सरकारों को बेहतर बनाने के प्रयासों में भी झलक रही है।
स्थानीय निकायों में युवा सहभागिता के प्रमुख रूप
स्थानीय सरकारों में नई सोच और ऊर्जा की सबसे बड़ी मिसाल है युवाओं की बढ़ती भागीदारी। गाँव की पंचायत से लेकर शहर की म्युनिसिपलटी तक, युवा अपने विचार, जोश और तकनीक के साथ कई अहम जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं। ये भागीदारी सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बल्कि असली बदलाव के केंद्र में है। चलिए जानते हैं ऐसे प्रमुख मॉडल, जिनसे स्थानीय निकायों में युवा आए दिन फर्क ला रहे हैं।
पार्षद सभा में युवा प्रतिनिधि: युवा पार्षदों की नियुक्ति प्रक्रिया, उनके कार्यक्षेत्र और सफल केसों का विवरण
शहरों और कस्बों की पार्षद सभाओं या नगरपालिकाओं में अब ज्यादा से ज्यादा युवा चुने जा रहे हैं। 21 से 35 वर्ष की उम्र के युवाओं की नियुक्ति दो तरह से होती है:
- चुनाव के जरिये — जैसे कि वार्ड पार्षद, जिनके पास वार्ड के विकास, बजट और नीतियों में सीधे फैसले का अधिकार होता है।
- नामांकन के जरिये — कई नगरपालिकाओं में विशेष कोटा या युवा आरक्षित सीटों के माध्यम से युवाओं की नियुक्ति की जाती है।
इन युवा पार्षदों का रोल सिर्फ प्रस्ताव पास करना नहीं है, बल्कि नए मुद्दों को उठाना, बच्चों और महिलाओं की समस्याएँ सुनना, सोशल मीडिया-जनित शिकायतों पर त्वरित एक्शन लेना भी है।
कुछ उदाहरणों में दिल्ली की नगर पालिका में 2022 में सबसे अधिक 21-30 वर्ष के युवा पार्षद चुने गए, जिन्होंने न केवल शहर की सड़कों को बेहतर कराया, बल्कि डिजिटल शिकायत तंत्र भी शुरू किया।
सफल केस:
2019 में पटना नगर निगम की युवा पार्षद ने स्वच्छता और प्लास्टिक बैन अभियान को अपने वार्ड में युवाओं की टास्क फोर्स से चलाया, जिसका नतीजा रहा स्वच्छ सर्वेक्षण में वार्ड का चयन टॉप 5 में होना।
Youth council जैसे वैश्विक मॉडल दिखाते हैं कि अच्छा प्रतिनिधित्व युवाओं का आत्मविश्वास कितना बढ़ाता है।
नगर योजना में युवा परामर्श समूह: युवा परामर्श समूह कैसे शहरी योजना, बुनियादी ढांचा और पर्यावरणीय पहल में इनपुट देते हैं, उदाहरण दें
कई शहरों की नगर योजनाओं में अब युवाओं के लिए सलाहकार समूह बनाए जा रहे हैं।
इनका मुख्य काम है ग्राउंड लेवल की समस्याएँ पहचानना और स्थानीय समाधान देना।
युवा परामर्श समूह निम्न तरह से योगदान करते हैं:
- शहरी ट्रैफिक और पार्किंग: नई बाइक स्ट्रिप, बेहतर फुटपाथ, साइकिल ट्रैक
- ग्रीन ज़ोन/पार्क: छठ घाट या स्थानीय उद्यानों के लिए इको-क्लब की सिफारिश
- डिजिटल सुझाव: कचरा प्रबंधन ऐप्स, जलापूर्ति की ट्रैकिंग
उदाहरण के तौर पर पुणे में 2023 में युवा छात्रों का ग्रीन कमेटी बनी जिसने पेड़ लगाने, रेन वाटर हार्वेस्टिंग और कचरा पुनः उपयोग अभियान चलाए।
इसी तरह, बंगलूरू ‘यूथ-एफरेन्डली पब्लिक स्पेसेज’ विकसित करने में कॉलेज विद्यार्थियों के सुझाव पर नया मॉडल तैयार कर रहा है।
Understanding young people’s political participation रिपोर्ट में इस तरह के इनोवेशन के लाभ विस्तार से उल्लेखित हैं।
स्थानीय सेवाओं में स्वयंसेवक पहल: स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा में युवा स्वयंसेवकों की भूमिका और प्रभाव को रेखांकित करें
गाँव‑कस्बे और शहरों में स्थानीय सेवाओं का असली चेहरा बदल रहा है युवाओं के जोश से।
सबसे ज्यादा बदलाव आता है जब युवा खुद सेवा के लिए आगे आते हैं, जैसे:
- स्वच्छ भारत अभियान: गाँव की सफाई, नालियों की सफाई, प्लास्टिक हटाओ अभियान
- स्वास्थ्य: मुफ्त हेल्थ कैंप, ब्लड डोनेशन, महिलाओं के लिए हेल्थ अवेयरनेस वर्कशॉप
- शिक्षा: साप्ताहिक ट्यूशन क्लास, बालसभा, ड्रॉप‑आउट बच्चों के लिए रीडिंग क्लब
मुंबई के धारावी इलाके के युवा ‘वॉलेंटियर्स फॉर चेंज’ के प्लेटफॉर्म के जरिए हर महीने करीब 500 ट्रिप में कचरा साफ करते हैं।
पंजाब के मोहाली में युवाओं के ग्रुप ने ‘नो स्कूल ड्रोपआउट मिशन’ शुरू किया जिसमें बच्चों की घर-घर ट्रैकिंग से 97% अटेंडेंस दर्ज हुई।
इन अभियानों की वजह से समाज का नज़रिया भी बदला है, अब युवा सिर्फ शिकायत नहीं करते, बदलाव की कमान खुद लेते हैं।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में युवा इनपुट: स्मार्ट सिटी योजनाओं में युवा टेक्नोलॉजी समूहों के योगदान और नवाचारों का उल्लेख करें
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट भारत में शहरी विकास की पहचान बन चुका है।
यहाँ युवा टेक्नोलॉजी ग्रुप्स, स्टार्टअप्स और कॉलेज टोली डिजिटल नवाचार में सबसे आगे हैं:
- स्मार्ट पार्किंग सॉल्यूशन: युवा इंजीनियरों ने स्मार्ट ऐप बनाया, जिससे पार्किंग की समस्या कम हुई
- डिजिटल शिकायत पोर्टल: बैंगलोर के युवाओं ने “Namma Appu” विकसित की, जिससे लोग गड्ढ़े या स्ट्रीट लाइट के खराब होने की शिकायत मोबाइल पर दर्ज करा पाते हैं
- कचरा ट्रैकिंग सिस्टम: वाराणसी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में युवाओं ने IOT बेस्ड कचरा ट्रैकिंग सिस्टम डेवेलप किया जिसके जरिये साफ-सफाई में बड़ा सुधार आया
Meaningful Youth Engagement in Policy and Decision- … के अनुसार, स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में युवाओं की डिजिटल समझ और समस्या-सुलझाने के रवैए ने कई शहरों को नई दिशा दी है।
इनके अलावा, नई भर्ती में युवाओं की हिस्सेदारी, ड्रोन तकनीक या डेटा एनालिटिक्स जैसी मदद से स्थानीय स्तर पर पहले से कई गुना बेहतर प्लानिंग और सेवाएं दी जा रही हैं।
सरकारी नीतियां, चुनौतियां और आगे का रास्ता
भारत में युवा आंदोलन तेजी से सरकारी तंत्र का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं। अब सरकारें युवाओं को केवल नीति के उपभोक्ता मानने के बजाय उन्हें नीति निर्धारण में भी सक्रिय रूप से शामिल करने लगी हैं। इस बदलाव के केंद्र में राष्ट्रीय योजनाएं, जमीनी कार्यान्वयन, और बढ़ती तकनीकी संभावनाएं हैं। लेकिन अभी भी कई चुनौतियां रास्ता रोकती हैं। आइए जानते हैं कि कौन सी सरकारी पहलें असर डाल रही हैं, बाधाएं क्या हैं और नई उम्मीदें किन तरकीबों में छिपी हैं।
राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्र्म (RYSK): कार्यक्रम की प्रमुख पहल, फंडिंग, और स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन की स्थिति
राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्र्म (RYSK) युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहन देने वाली सबसे बड़ी छतरी स्कीम है। इसका मकसद है युवाओं को सामुदायिक सेवा, नेतृत्व और विकास संबंधी पहल में सक्रिय बनाना। इस योजना के तहत मुख्य बिंदु ये हैं:
- प्रमुख घटक: नेहरू युवा केंद्र संघटन (NYKS), राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय युवा नेतृत्व कार्यक्रम, स्काउट एंड गाइड, युवा आदान-प्रदान यात्रा।
- फंडिंग: केंद्र सरकार से सीधी अनुदान मदद (Grant-in-Aid) मिलती है, जिसका आवंटन यहां उपलब्ध है।
- स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन:
- ब्लॉक और पंचायत स्तर पर NYKS और NYC के माध्यम से युवाओं की पहचान और प्रशिक्षण।
- सामुदायिक सेवा के लिए युवाओं के ग्रुप बनाना (जैसे स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य)।
- स्कूल, कॉलेज और गांव स्तर पर युवा नेतृत्व शिविर और रैली।
- परिणाम:
RYSK के तहत, देश में लाखों युवा हर साल सामुदायिक सेवा और लीडरशिप प्रोग्राम में जुड़ रहे हैं। सेवा क्षेत्रों की विविधता इसकी मजबूती है।
विस्तृत सरकारी जानकारी के लिए आधिकारिक सूत्र देख सकते हैं।
नेहरू युवा केंद्र संघटन (NYKS) की भूमिका: प्रशिक्षण, सामुदायिक सेवा और स्थानीय प्रशासन के साथ साझेदारी
NYKS दुनिया का सबसे बड़ा ग्रामीण युवा संगठन है। देशभर के गांवों और कस्बों में इसके हज़ारों केंद्र युवाओं की शक्ति को सही दिशा देने का काम करते हैं।
- प्रशिक्षण:
- युवक-युवतियों के लिए लीडरशिप कैंप्स।
- ग्रामीण विकास, डिजिटलीकरण, स्वास्थ्य और पर्यावरण जागरुकता के सत्र।
- सामुदायिक सेवा:
- स्वच्छता अभियान, वृक्षारोपण, रक्तदान व स्वास्थ्य शिविर।
- शिक्षा संबंधी कार्य, ड्रॉपआउट रुकावट और साक्षरता कार्यक्रम।
- कोविड और आपदा के समय राहत कार्यों में बढ़-चढ़कर भागीदारी।
- स्थानीय प्रशासन से साझेदारी:
- पंचायत, नगरनिगम और स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर युवा मंडल और स्वयंसेवी समूह सक्रिय करना।
- सरकार की योजनाओं (जैसे चुनावी जागरूकता, स्वास्थ्य मिशन) के जमीनी प्रचारक बनना।
NYKS की मदद से युवाओं की आवाजें पंचायतों तक पहुँचती हैं और वे फैसलों में भागीदारी सीखते हैं। इस संगठन की गतिविधियों की पूरी रिपोर्ट यहां देख सकते हैं।
युवा प्रतिनिधित्व में वर्तमान बाधाएं: कम प्रतिनिधित्व की आँकड़े, सामाजिक-आर्थिक बाधाएँ और राजनीतिक संरचना की चुनौतियों
आज भी भारतीय स्थानीय सरकार में युवा प्रतिनिधि कम ही हैं। आंकड़ों के मुताबिक:
- देश भर की पंचायतों में 21-35 उम्र वर्ग का औसतन केवल 17% प्रतिनिधित्व है।
- शहरी वार्ड या नगरपालिकाओं में महिलाओं की तरह युवाओं की हिस्सेदारी भी बेहद कम है।
- अधिकांश युवा या तो छात्र हैं या बेरोज़गार, इस कारण वे राजनीति में सक्रिय रहना जोखिम वाला मानते हैं।
मुख्य बाधाएं:
- सामाजिक-आर्थिक: गरीबी, उच्च शिक्षा की कमी, घर-परिवार का दबाव, सामाजिक विषयों पर खुलकर बोलने से हिचक।
- राजनीतिक संरचना:
- युवाओं के लिए आरक्षित सीटों का अभाव।
- चुनाव में धन-दबदबा और जातिगत राजनीतिक समीकरण।
- पारिवारिक राजनीति का हावी होना, जिससे नए युवा आगे नहीं आ पाते।
- नवाचार और फीडबैक सिस्टम की कमी: युवाओं के उठाए मुद्दे अक्सर प्रशासनिक स्तर पर अनसुने रह जाते हैं।
इन सबके बीच, कई जगहों पर प्रयास हो रहे हैं कि युवा पंचायतों और नगरपालिकाओं में आगे आएं। मिथकों को तोड़ना, नेतृत्व का अनुभव बढ़ाना और युवा-मित्र वातावरण बनाना इन बाधाओं को दूर करने की कुंजी है। इसपर और जानकारी के लिए यह विश्लेषण जरूर पढ़ें।
डिजिटल टूल्स और भविष्य की संभावनाएं: डेटा पोर्टल, मोबाइल ऐप, ऑनलाइन वोटिंग और नागरिक सहभागिता के लिए नई तकनीकों की संभावनाओं पर चर्चा
तकनीक ने युवाओं की सरकारी भागीदारी को बिल्कुल नया रूप दिया है। हर हाथ में स्मार्टफोन, डेटा पोर्टल, और सोशल मीडिया उन्हें सिर्फ ज्ञाता नहीं, असली भागीदार बना रहा है।
- डेटा पोर्टल और मोबाइल ऐप:
- पंचायत और नगर निगम के पोर्टल पर बजट, योजनाएं और शिकायत दर्ज करने की सुविधा।
- कई शहरों में “महापौर एप”, “स्वच्छता ऐप” जैसी डिजिटल टूल्स युवाओं को लोकल प्रशासन से जोड़ रहे हैं।
- Scheme-wise fund allocation data युवाओं के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही को आसान बनाते हैं।
- ऑनलाइन वोटिंग और ओपन प्लेटफॉर्म:
- भविष्य में डिजिटल वोटिंग के जरिए खासकर शहरी युवाओं की मतदान में भागीदारी बढ़ाई जा सकती है।
- E-participation प्लेटफ़ॉर्म जैसे “MyGov”, “UMANG” ऐप।
- नागरिक सहभागिता:
- सोशल मीडिया अभियान, ऑनलाइन सर्वे/पोल और व्हाट्सएप ग्रुप का उपयोग बड़े मुद्दों को राज्य और केंद्र सरकार तक ले जाता है।
- डिजिटल वॉलेंटियरिंग, जहां युवा घर बैठे भी सरकारी परियोजनाओं में योगदान दे सकते हैं।
आगे की दिशा:
डिजिटल साधनों के अपग्रेड और युवाओं के लिए कस्टम इंटरफेस बनाकर, स्थानीय प्रशासन और लोगों के बीच पारदर्शिता और सहभागिता बूस्ट की जा सकती है। आने वाले वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्राउडसोर्सिंग प्लेटफ़ॉर्म और खुली बैठकें लोकल डेमोक्रेसी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं।
भारत की वास्तविक तस्वीर यही है—युवाओं के बिना कोई भी बदलाव अधूरा है, चाहे बात लोकतंत्र की हो या टेक्नोलॉजी की।
निष्कर्ष
भारत के युवा आंदोलन ने स्थानीय सरकारों में बदलाव की लकीर खींच दी है। मोबाइल, सोशल मीडिया और अपने नए विचारों की ताकत से ये युवा नीति, पारदर्शिता और सरकारी सेवा में असली फर्क ला रहे हैं। चाहे वह हैदराबाद के छात्रों का पर्यावरण के लिए संघर्ष हो या स्थानीय ग्रुप्स की शिक्षा, स्वास्थ्य और सफाई अभियान का नेतृत्व, हर कदम पर इनकी भागीदारी दिख रही है।
युवाओं की इसी सक्रियता ने नीति-निर्माताओं को सोचने पर मजबूर किया है कि बदलाव लाना है तो युवा शक्ति को साथ जोड़ना ही होगा। अब ज़रूरत है, समाज और प्रशासन मिलकर इन्हें और जिम्मेदारी दें, उनकी आवाज भागीदारी में बदले।
अगर हम सब मिलकर युवा नेतृत्व को बढ़ावा दें, उनकी सोच और समाधान को अपनाएँ, तो भारत की स्थानीय सरकार और समाज दोनों ही और मजबूत बन सकते हैं। आप भी अपनी पंचायत या नगरपालिका में भाग लें, सुझाएँ, सवाल पूछें और बदलाव की इस नई बयार का हिस्सा बनें।
आपका साथ और सुझाव बेहद अहम हैं। पढ़ने के लिए शुक्रिया! अपनी राय और अनुभव नीचे साझा जरूर करें, जिससे और लोग भी प्रेरित हो सकें।
